Vindhya pradesh the land of white tiger
विंध्य प्रदेश के इतिहास ,सांस्कृतिक,एवं पर्यटन की जानकारी का संपूर्ण समावेश
Sunday, October 20, 2024
रीवा_एयरपोर्ट के निर्माण से विन्ध्य के विकास को मिलेगा नया आयाम
Monday, December 26, 2022
रीवा विधायक राजेन्द्र शुक्ल के अथक प्रयासों से निपनिया-तमरा व्हाइट टाइगर सफारी रोड निर्माण को मिली हरी झंडी
*रीवा विधायक राजेन्द्र शुक्ल के अथक प्रयासों से व्हाइट टाइगर सफारी रोड निर्माण को मिली हरी झंडी*
निपनिया-तमरा व्हाइट टाइगर सफारी मार्ग |
रीवा..! रीवा के लोकप्रिय विधायक श्री राजेन्द्र शुक्ल के अथक प्रयासों से व्हाइट टाइगर सफारी मार्ग को निपानिया तिराहे से तमरा मार्ग को प्रशासकीय स्वीकृति लोक निर्माण विभाग की वित्तीय व्यय समिति द्वारा हरी झंडी मिल गई । राज्य शासन द्वारा 18/11/2022 को अतिरिक्त मुख्य सचिव वित्त विभाग के अध्यक्षता में व्यय समिति द्वारा बैठक में अनुमोदन अनुसार रीवा जिले के निपानिया तिराहे मार्ग से तमरा मार्ग व्हाइट टाइगर सफारी मार्ग जिसकी लंबाई 12.84 किलोमीटर जिसकी लागत 2435.36 चौबीस करोड़ पैतीस लाख छत्तीस हजार की प्रशासकीय स्वीकृति प्रदान की गई है।
भाजपा किसान मोर्चा प्रदेश उपाध्यक्ष व भाजपा नेता प्रबोध व्यास,जिला कार्य समिति सदस्य तरुरेन्द्र शेखर पांडेय,उपेन्द्र चंद्र दुबे, गोपाल दास माझी,भाजपा नेत्री उषा शर्मा,कपिल देव पांडेय दीपू, डॉ सी एल रावत,शिवाकर कुशवाहा राजू,पूर्णिमा रावत,पवन तिवारी प्रकाश पाठक ओमनारायण तिवारी जीवनलाल साकेत रजनीश बारी उमेश प्रजापति,हिफजूल सिद्दीकी, राजू मिश्र मंडल अध्यक्ष प्रदीप त्रिपाठी कमला बरगाही सहित अन्य भाजपा नेताओं ने खुशी व्यक्त करते हुये कहा कि यह रोड भाजपा सरकार में ही बनी थी
लेकिन अधिक लोड बालू के हाइवा अधिक निकलने के कारण यह रोड काफी खराब हो गई थी जिस पर रीवा विधायक श्री राजेन्द्र शुक्ल जी की नजर पड़ी और उन्होंने तुरंत इस पर पहल की और तुरंत 25 करोड़ रुपये की लागत से व्हाइट टाइगर सफारी रोड को निर्माण होने जा रहा है यह रोड व्हाइट टाइगर सफारी को जाती है और यह रोड रिंग रोड फेस 2 से भी मिल जाएगी यह रोड बन जाने से निपनिया रौसर तमरा का विकास तेजी से होगा।भाजपा सहित निपनिया-तमरा व्हाइट टाइगर सफारी रोड के रहवासी अपने ऐसे जुझारू नेता के प्रति आभार व्यक्त करते है।
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-✍️ पं. पंकज द्विवेदी, संचालक ब्लॉग
VINDHYA PRADESH THE LAND OF WHITE TIGER
Monday, October 31, 2022
विंध्य प्रदेश का उदय और विलीनीकरण -✍️ पं. कपिलदेव तिवारी रीवा
विंध्य प्रदेश का उदय और विलीनीकरण
पहले रीवा राज्य और कालांतर में विंध्य प्रदेश की राजधानी बनाने के बाद से रीवा राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बना रहा है। विंध्य प्रदेश के गठन विघटन और समाजवादी आंदोलन की वजह से सन 1946 से 1956 तक लगातार यहां की राजनीतिक गतिविधियां राष्ट्रीय सुर्खियों में रही। महात्मा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस द्वारा चलाए जा रहे स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन का यहां व्यापक प्रभाव रहा ।कप्तान अवधेश प्रताप सिंह ,राजभान सिंह तिवारी,यहां कांग्रेश की नींव रखने वालों में से थे।दोनों नेताओं ने कांग्रेस के कराची अधिवेशन में भाग लिया। सन 1920 में नागपुर अधिवेशन के निर्णय के मुताबिक बघेलखंड कांग्रेस कमेटी का गठन हुआ। 30 मई 1931 को कटनी के धर्मशाला में बघेलखंड कांग्रेस कमेटी का विधिवत गठन किया गया । यादवेंद्र सिंह इसके प्रथम अध्यक्ष, कप्तान अवधेश प्रताप सिंह मंत्री व राजभान सिंह तिवारी कोषाध्यक्ष हुए । 1932 के चुनाव में कप्तान अवधेश प्रताप सिंह बघेल खंड कांग्रेस कमेटी के निर्वाचित अध्यक्ष बने। कांग्रेस कमेटी ने उस समय छेड़े गए सभी राष्ट्रव्यापी आंदोलन में सक्रिय भूमिका अदा की । चाहे वह सविनय अवज्ञा आंदोलन हो या फिर भारत छोड़ो आंदोलन। आजादी के बाद से मध्य प्रदेश के गठन तक यहां की राजनीति संक्रमण काल के दौर से गुजरी
। इसी दरमियान समाजवादी दल का अभ्युदय हुआ, जो आगे चलकर कांग्रेश के मुकाबले एक सशक्त राजनीतिक रूप में स्थापित हुआ। विंध्य के प्रमुख राजनीतिक घटनाओं को दो काल खंडों में बांटा जा सकता है ,विंध्य प्रदेश व उसके बाद।
देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हो गया। रीवा राज्य के राज्य प्रमुख नरेश मार्तण्ड सिंह ही थे।कांग्रेस का समानांतर संगठन था।आजादी के बाद आसन्न प्रश्न था कि रीवा राज्य के भारत संघ में विलय का। तत्कालीन गृह मंत्री बल्लभ भाई पटेल ने इसे अंजाम देने कैबिनेट सचिव मेनन को भेजा। श्री मेनन राज्य प्रमुख मार्तण्ड सिंह की उपस्थिति में कांग्रेस के प्रमुख नेताओं से बातचीत की। अंततः यह सहमति बनी कि बघेलखंड और बुंदेलखंड की उस रियासतों को मिलाकर विंध्य प्रदेश का गठन हो। इसके दो मुख्य मंडल हों एक बुंदेलखंड का, जिसकी राजधानी नौगांव हो और दूसरा बघेलखंड का। रीवा नरेश राज्य प्रमुख बने और पन्ना नरेश को उप राज्य प्रमुख बनाने पर सहमत हुई। इस तरह 4 अप्रैल 1948 को विंध्य प्रदेश का विधिवत गठन हुआ । बुंदेलखंड मंत्रिमंडल के प्रधानमंत्री कामता प्रसाद सक्सेना व मंत्री गण थे लालाराम बाजपेई, रामसहाय तिवारी और गोपाल शरण सिंह बघेल खंड मंत्रिमंडल के प्रधानमंत्री बने आर. एन. देशमुख मंत्री गण थे यशवंत सिंह, यादवेंद्र सिंह, इंद्र बहादुर सिंह और शंभूनाथ शुक्ला ।
3 जून 1948 को बघेलखंड बुंदेलखंड को मिलाकर संयुक्त विंध्य प्रदेश बना। 10 जुलाई को कप्तान अवधेश प्रताप सिंह के प्रधानमंत्रित्व में मंत्रिमंडल का गठन किया गया। जिसमें कामता प्रसाद सक्सेना उप प्रधानमंत्री, राव शिव बहादुर सिंह, हारौल नर्मदा प्रसाद सिंह, सत्यदेव, गोपाल शरण सिंह, चतुर्भुज पाठक मंत्री बने। यह मंत्रिमंडल 14 अप्रैल 1949 तक चला।
इसी बीच कांग्रेस में सोशलिस्ट गुट सक्रिय हो गया। रीवा में जगदीश जोशी के नेतृत्व में कांग्रेस सोशलिस्ट की नींवें सन 1946 में रखी जा चुकी थी। राष्ट्रीय सचिव मोहनलाल गौतम ने इसे विधिवत मान्यता दे दी। श्री जोशी के नेतृत्व में सोशलिस्ट गुट में यमुना प्रसाद शास्त्री, कृष्णपाल सिंह, श्रीनिवास तिवारी, अच्युतानंद मिश्र, शिवकुमार शर्मा सिद्धिविनायक द्विवेदी, आदि सक्रिय हो गए। यह सभी नेता किशोर उम्र के थे, फिर भी पूरी शिद्दत के साथ राजनीति में दखल रखते थे। सोशलिस्ट गुट के जरिए यहां की राजनीति में दो समानांतर धाराएं खड़ी हो गई। एक बुजुर्ग के वर्चस्व वाली कांग्रेस पार्टी जो कि सत्ता में काबिज थी। और दूसरी युवा तुर्कों का सोशलिस्ट गुट। जब तक यह गुट कांग्रेसका एक अंग बना रहा, तब तक यह सत्ता प्रतिष्ठान के खिलाफ मुखर था।
महाराजा गुलाब सिंह निर्वासन व्यतीत कर रहे थे। समाजवादी युवाओं की सहानुभूति गुलाब सिंह के साथ थी। वह उनके पक्ष में यहां वातावरण तैयार करने में लगे थे। सत्ता प्रतिष्ठान से जुड़े कांग्रेश के बुजुर्ग नेता राजप्रमुख मार्तण्ड सिंह के साथ थे । आशय यह कि समकालीन राजनीति में राजपरिवार की केंद्रीय भूमिका थी।
स्टूडेंट कांग्रेस पूरी तरह सोशलिस्ट के प्रभाव में थी। जगदीश जोशी जैसे तत्कालीन युवा नेताओं के पीछे छात्रों, युवाओं का हुजूम मर मिटने को तत्पर था। जयप्रकाश नारायण यहां की युवकों के लिए आदर्श थे,और जगदीश जोशी उनके हीरो।समाजवादी गुट तत्कालीन मंत्रिमंडल के खिलाफ था। क्योंकि इनका मानना था कि विंध्य प्रदेश का मंत्रिमंडल भूतपूर्व सामंतों से भरा पड़ा है।
सन 1948 में नाशिक सम्मेलन में सोशलिस्ट गुट कांग्रेस से अलग हो गया। समाजवादी दल (सोशलिस्ट पार्टी) का विधिवत गठन हो गया।इसी दरम्यान शासन की शह पर किसानों को बेदखली शुरू हुई। नवगठित सोशलिस्ट पार्टी की ज्वलंत मुद्दा किसानों व मजदूरों से जुड़ा हुआ मिल गया। इन मुद्दों को लेकर वे अपने आंदोलन को समूचे विंध्य में फैलाया। उसे धारदार बनाया।
रीवा में समाजवादियों के आंदोलन ने डॉ राम मनोहर लोहिया को काफी प्रभावित किया। आजादी की पहली सालगिरह 15 अगस्त 1948 को डॉ राम मनोहर मनोहर लोहिया यहां आए, तो युवकों का सैलाब उमड़ पड़ा। किसानों का आंदोलन समाजवादियों के नेतृत्व में तेजी से फैला। उसी समय डॉक्टर लोहिया जी जिनका रीवा से निरंतर संपर्क बना रहा, एक "पाँव रेल में , एक पाँव जेल में" नारा दिया 1949 के सोशलिस्ट पार्टी के पटना सम्मेलन में रीवा से जगदीश जोशी, यमुना प्रसाद शास्त्री, श्री निवास तिवारी के नेतृत्व में समाजवादी युवकों का जत्था पटना भाग लेने गया। इस अधिवेशन में श्री जोशी जी सोपा की राष्ट्रीय कार्यसमिति में आ गए। जबकि उनकी उम्र चुनाव लड़ने तक कि नहीं थी। वही आचार्य नरेंद्र देव, डॉक्टर लोहिया, जयप्रकाश,अच्युत वर्धन का मार्गदर्शन मिला व नए जोश के साथ समाजवादी रीवा लौटे।
इस दरम्यान विंध्य प्रदेश के कप्तान अवधेश प्रताप सिंह के नेतृत्व वाले मंत्रिमंडल 9 माह की अल्प अवधि में ही बर्खास्त कर दिया गया। राज्य में प्रशासनिक अस्थिरता और अराजकता थी। गृहमंत्री सरदार पटेल यह धारणा बना चुके थे कि विंध्य प्रदेश को मध्य प्रदेश, मध्य प्रांत के साथ विलय कर दिया जाए।किसानों की बेदखली के खिलाफ आंदोलन के बाद समाजवादियों को यह बड़ा मुद्दा मिल गया। डॉक्टर लोहिया ने आंदोलन छेड़ने का निर्देश दिया। 2 जनवरी 1950 से आंदोलन की विधिवत शुरुआत हुई।आंदोलनकारी चक्का जाम करने बस स्टैंड पहुंचे। वहां पुलिस से झड़प हुई आंदोलन के पहले दिन ही पुलिस ने गोली चलाई। अजीज,गंगा और चिंताली,विंध्य प्रदेश के विलीनीकरण आंदोलन के खिलाफ शहीद हो गए।
जगदीश जोशी, यमुना प्रसाद शास्त्री,श्री निवास तिवारी, सिद्धिविनायक द्विवेदी, शिवकुमार शर्मा, अच्युतानंद मिश्रा आदि नेता गिरफ्तार कर केंद्रीय कारागार में डाल दिए गए । यहां आंदोलनकारियों और अधिकारियों के बीच कहासुनी हुई, तो उन्हें मैहर जेल भेज दिया गया।फरवरी 1950 को सोशलिस्ट पार्टी की ओर से हिंद किसान पंचायत का सम्मेलन आयोजित किया गया।यह ऐतिहासिक सम्मेलन शहर के बाहर पुष्पराज नगर (तब निपनिया) में आयोजित किया गया। 2 महीने तक आंदोलनकारी नेताओं को मैहर जेल में रखा गया। सम्मेलन के दिन ही मैहर से इन्हें रिहा कर दिया गया। सम्मेलन प्रारंभ होने के कुछ पश्चात, यह नेता जब पहुंचे तो खुद डॉक्टर लोहिया ने जोशी, यमुना, श्रीनिवास जिंदाबाद जिंदाबाद का नारा लगवाकर इनका अभिवादन किया। समाजवादियों ने आंदोलन को इस मुकाम तक पहुंचा दिया कि सरकार को हारकर विंध्य प्रदेश का विलय रोकना पड़ा। पर विंध्य प्रदेश को सी क्लास प्रदेश घोषित कर दिया। जो कि सीधे केंद्र शासन आधीन था। केंद्र ने यहां चीफ कमिश्नर की जगह लेफ्टिनेंट गवर्नर की पदस्थापना कर दी। श्री के.सन्यानम को गवर्नर बनाकर भेजा ।
इसी बीच समाजवादियों ने नए नारे के साथ नया आंदोलन शुरू कर दिया। " विंध्य प्रदेश बचाएंगे, धरना सभा बनाएंगे। अंततः विंध्य प्रदेश की विधानसभा के लिए विधिवत चुनाव की घोषणा कर दी गई।
तत्कालीन विंध्य प्रदेश में विधानसभा की 60 सीटें थी।युवा तुर्क समाजवादियों ने नए जोश के साथ चुनाव की तैयारी शुरू कर दी ।तब तक कांग्रेस के मुकाबले समाजवादी दल स्थापित हो चुका था। सन 1954 में आचार्य जे.बी. कृपलानी ने किसान मजदूर प्रजा पार्टी का गठन कर दिया। अवधेश प्रताप सिंह मंत्रिमंडल में सदस्य रहे बैकुंठपुर के इलाकेदार हारौल नर्मदा प्रसाद सिंह को पार्टी की प्रदेश इकाई का अध्यक्ष बना दिया गया। विधानसभा के गठन की प्रक्रिया शुरू हो गई। चुनाव मैदान में कांग्रेस,सोशलिस्ट पार्टी, किसान मजदूर प्रजा पार्टी,राम राज्य परिषद प्रमुख राजनीतिक दल के रूप में उभरे ।
1952 के प्रथम लोकसभा व विधानसभा के चुनाव के कशमकश मे मुख्यरूप से कांग्रेस समाजवादी दल के बीच ही रही। लोकसभा में कांग्रेस के उम्मीदवार विजयी हुए, जबकि विधानसभा चुनाव में समाजवादियों को कुछ सफलता जरूर मिली। विंध्य प्रदेश के समय रीवा जिले में 11 विधानसभा क्षेत्र थे। मऊगंज विधानसभा क्षेत्र से 2 सदस्य निर्वाचित होते थे । अन्य विधानसभा क्षेत्र थे हनुमना, त्योंथर, गढ़ी ,सेमरिया, सिरमौर रीवा, रायपुर (,मुकुंदपुर) । इस चुनाव में कांग्रेस को 6 सीटों पर त्योंथर, गढ़ी,सेमरिया, सिरमौर मनगवां, गुढ़, रीवा रायपुर तथा मुकुंदपुर में विजय मिली। सोशलिस्ट पार्टी में 11 विधानसभा क्षेत्रों में 12 स्थानों पर अपने उम्मीदवार खड़े सोपा ने रीवा,मनगवां,मऊगंज की आरक्षित सीट जीत ली। जगदीश जोशी रीवा से, श्रीनिवास तिवारी मनगवां से निर्वाचित हो गए। जबकि तीसरे प्रमुख नेता यमुना प्रसाद शास्त्री सिरमौर क्षेत्र से हारौल नर्वदा प्रसाद सिंह से चुनाव हार गए। हरौल की किसान मजदूर पार्टी को 1 सीट सिरमौर की मिली। शेष चुनाव हार गए। रीवा के प्रथम अजा विधायक मऊगंज से सोपा के सहदेई निर्वाचित हुए। मऊगंज सामान्य से निर्दलीय सोमेश्वर सिंह जीते। जबकि हनुमना की सीट रामराज परिषद की ईश्वराचार्य ने जीती। विंध्य प्रदेश की विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी पूर्ण बहुमत के साथ उभरी।कांग्रेस की राजनीति में पंडित शंभूनाथ शुक्ल सर्वमान्य नेता के रूप में उभरे। वहां कप्तान अवधेश प्रताप सिंह, राजभान सिंह तिवारी व यादवेंद्र सिंह का अवसान प्रारंभ हो गया। अवधेश प्रताप सिंह यद्दपि राज्यसभा के निर्वाचित हुए।
दूसरी ओर समाजवादी नेता धूमकेतु तरह राजनीति में छा गए। सन 1952 में चुनाव जीतकर आए जगदीश जोशी व श्रीनिवास तिवारी दोनों के चुनाव की वैधता के उम्र को लेकर चुनौती दी गई। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि समाजवादी युवा तुर्कों को यहां की जनता ने सिर माथे पर बिठाया।
विंध्य प्रदेश के 60 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस को 44 सीटें, सोशलिस्ट पार्टी को 11 सीटें,किसान मजदूर प्रजा पार्टी को 3 सीटें, रामराज परिषद को 2 सीटें मिली। विधायिका के इतिहास में जगदीश जोशी को सबसे कम उम्र का नेता प्रतिपक्ष बनने का गौरव प्राप्त हुआ। उनका चुनाव अदालत ने उम्र के सवाल पर रद्द कर दिया।पंडित शम्भूनाथ शुक्ला, विंध्य प्रदेश के प्रथम निर्वाचित मुख्यमंत्री बने। जबकि प्रजामंडल के अध्यक्ष रहे शिवानंद( सतना) प्रथम विधानसभा अध्यक्ष बने । पंडित शंभूनाथ शुक्ला मंत्रिमंडल के सदस्यों में थे लालाराम बाजपेई(गृह) श्री गोपाल शरण सिंह( कृषि लोक निर्माण) महेंद्र कुमार मानव (शिक्षा), दान बहादुर सिंह (वन)विस्तारोपरांत दशरथ जैन शामिल किए गए। इस विस्तार में बाजपेई व मानव हटा दिए गए।
इस चुनाव में समाजवादी राजनीति को उस वक्त गहरा धक्का लगा, जब इसके शीर्ष नेता आचार्य नरेंद्र देव व जे.बी. कृपलानी चुनाव हार गए। डॉक्टर लोहिया और जयप्रकाश नारायण चुनाव लड़े ही नहीं। इसी निराश के बीच सन 1953 में पचमढ़ी में सोपा का सम्मेलन हुआ। यहां यह तय हुआ कि समान विचारधारा वाली पार्टियों का विलय होना चाहिए। सोपा की बंबई में कार्यसमिति की बैठक हुए, उसमें किसान मजदूर प्रजा पार्टी का विलय स्वीकार कर लिया गया।नए राजनीतिक दल का नाम प्रजा सोशलिस्ट पार्टी रखा गया। हारौल नर्मदा प्रसाद सिंह को विंध्य की इकाई का अध्यक्ष बना दिया गया। सन् 1955 में हैदराबाद सम्मेलन में प्रसोपा का पुनः विघटन हुआ।दो दल अस्तित्व में आए प्रसोपा व सोपा । प्रसोपा के नेता आचार्य नरेंद्र देव थे।व सोपा के डॉक्टर राम मनोहर लोहिया। रीवा में यमुना प्रसाद शास्त्री ने प्रसोपा की कमान संभाली। जबकि सोपा जगदीश जोशी, श्रीनिवास तिवारी के नेतृत्व में संगठित हुआ।
इसी बीच राज्यों के पुनर्गठन आयोग ने विंध्य प्रदेश, मध्य प्रांत और महाकौशल को मिलाकर मध्य प्रदेश के गठन का प्रारूप बना। विलीनीकरण की तलवार विंध्य प्रदेश पर लटकी हुई थी। सरदार पटेल ने इस पर दखल दिया। समाजवादी दल के नेताओं ने विलीनीकरण के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया। लोहिया का मार्गदर्शन इस आंदोलन को मिला। यहां कांग्रेस का पूर्ण बहुमत था। बुंदेलखंड क्षेत्र के प्रायः सभी जनप्रतिनिधि विलय के पक्ष में थे। कांग्रेस के स्थानीय प्रमुख नेता बिल के मसौदे पर दबाव बस या स्वेच्छा से दस्तखत कर आए।आंदोलन और उग्र हुआ जिसकी परिणति विधानसभा के भवन के भीतर प्रदर्शनकारियों ने बलात प्रवेश किया व सत्ताधारी दल के प्रतिनिधियों के साथ मारपीट व छीना झपटी हुई। प्रदर्शन और आंदोलन विंध्य प्रदेश के अस्तित्व को नहीं बचा सका । नवंबर 1956 को मध्यप्रदेश की विधिवत घोषणा कर दी गई। प्रदेश का अस्तित्व विलीन हो गया।
साभार-
✍️लेखक:पं. कपिल देव तिवारी,रीवा (म0प्र0)
(यह पोस्ट वरिष्ठ विंध्यप्रदेश पुनरोदय सेनानी श्री Umashankar Tiwari जी की काॅपी पेस्ट है )
-✍️✍️पंडित पंकज द्विवेदी, संचालक ब्लॉग
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Thursday, March 10, 2022
रीवा से टाइगर सफारी मुकुन्दपुर का सुगम होगा मार्ग,एवं रीवा की अन्य 14 सड़के भी चमकेंगी सरकार ने दिए बजट
रीवा
रीवा से टाइगर सफारी मुकुन्दपुर का सुगम होगा मार्ग,एवं रीवा की अन्य 14 सड़के भी चमकेंगी सरकार दिए बजट
रीवा। एमपी सरकार ने जो बजट तैयार किया है उसमें रीवा की 14 सड़कों को बेहतर बनाने के लिए धनराशि का आवटन करने की घोषणा की है। जिससे उक्त क्षेत्र का आवागमन सुगम हो सकेगा तो वही लोगो को बेहतर सड़क मिल सकेगी।
खास बात यह है कि जिन 14 सड़को का निर्माण किया जाएगा। उनमें रीवा से तमरा टाइगर सफारी को जोड़ने वाले मार्ग भी शामिल है। उक्त मार्गो को अच्छा बनाने का काम बजट मिल जाने से जल्द ही शुरू हो सकेगा।
बजट में रीवा को दो सौगाते
मध्यप्रदेश शिवराज सरकार के वित्त मंत्री द्वारा पेश किए गए वर्ष 2021-2022 के बजट में रीवा को दो बडी सौगातें मिली है। बजट में सरकार ने रीवा की 14 सड़कों के विकाश सहित ऐतिहासिक गोविंगदगढ़ किले को विकशित कर हैरीटेज होटल के रुप में तैयार किया जाएगा। इसके अलावा सरकार द्वारा निजी सेक्टरों में बेरोजगार युवाओं को रोजगार देने का दावा किया गया। जसके बाद रीवा सहित विंध्य क्षेत्र के लगभग 10 हजार युवाओं को रोजागार मिलने की उम्मीद जताई जा रही है।
दरअसल सरकार के इस बजट में रीवा के ऐतिहासिक गोविंदगढ़ किले को टूरिज्म की संभावनाओं को देखते हुये गोविंदगढ़ किले को निजी हाथों में सौंपा जाएगा। जिसे हैरिटेज होटल के रुप में विकशित किया जाएगा।
रीवा शहर की बनाई जाएगी ये सड़के
सरकार के नए बजट में रीवा की जिन 14 सड़कों के विकाश का प्रस्ताव है उसमें शहर के विक्रम पुल से निपनिया पुल बाया घोघर मार्ग का चौड़ीकरण, रीवा शहर के एजी कॉलेज तिराहा से निपनिया तिराहे तक मार्ग, निपनिया तिराहे से तमरा मार्ग टाइगर सफारी तक चौड़ीकरण किया जाएगा। बता दें ये ऐसे प्रमुख मार्ग है जो कि पर्यटन को देखते हुए तैयार किए जाएगा। ज्ञात हो कि जंहा मुंकुदपुर में टाइगर सफारी है तो वही उक्त सड़क के बीच बीहर नदी का दोनों छोर विकसित किया जा रहा है। ऐसे में उक्त मार्गो का चौड़ीकरण एव निर्माण किए जाने की महती आवश्यकता थी।
जिले की बनाई जाएगी ये सड़के
इसी तहर रीवा जिले के हनुमना क्षेत्र के पिपराही से जड़कुड मार्ग, मऊगंज और हनुमना में सड़क में डिवाइडर निर्माण, देवतालाब से तमरी रोड में ढनगन से हटवा सारैहान पुलिया मार्ग, मनगवां हनुमना रोड पर पहाड़ से दुअरा मार्ग, शिवपुरवा से उमरी होकर पहाड़ से बाया टिकरी मार्ग, क्योटी जनकहाई मार्ग पनियारी घाट तक, चौखण्डी से तोमरनपूर्ण एवं कल्याणपुर मोड़ होते हुए दुअरानाथ मंदिर तक मार्ग निर्माण एवं पुलिया, डभौरा क्षेत्र के पिपरहा पहुंच मार्ग डभौरा बस्ती तक प्रधानमंत्री सड़क, सेमरिया बाईपास से यमुना प्रसाद शास्त्री महाविद्यालय रोड का सुद्रढ़ीकरण, सोहागी बड़ागांव भुराय मार्ग से धोबा नाला के पास से स्कंद माता मार्ग का डमरी करण का काम शामिल है।
-पंडित पंकज द्विवेदी,संचालक ब्लॉग
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Monday, February 28, 2022
आप सभी को महाशिवरात्रि के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं - पंडित पंकज द्विवेदी
हर साल फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि (Maha Shivratri) का पर्व मनाया जाता है. ये दिन महादेव और माता पार्वती (Mahadev and Mata Parvati) की विशेष पूजा का दिन माना गया है. मान्यता है कि इस दिन महादेव और माता पार्वती का विवाह हुआ था. लिहाजा ये दिन शिव और माता गौरी के लिए उत्सव का दिन है. इस दिन भोलेनाथ और मां पार्वती के भक्त महादेव के लिए व्रत रखते हैं और उनकी विशेष पूजा और अर्चना करते हैं. कई मंदिरों में भंडारों का आयोजन किया जाता है. सुबह से ही मंदिरों में बम बम भोले की गूंज सुनाई देने लगती है. इस बार महाशिवरात्रि का ये पर्व 1 मार्च 2022 को मनाया जाएगा.
कर्ता करे न कर सके, शिव करे सो होय,
तीन लोक नौ खंड में, महादेव से बड़ा न कोय
ॐ_नमः_शिवाय !
भोले आएं आपके द्वार,
भर दें जीवन में खुशियों की बहार,
ना रहे जीवन में कोई भी दुख,
हर ओर फैल जाए सुख ही सुख.
शिव सत्य है, शिव अनंत है,
शिव अनादि है, शिव भगवंत है,
शिव ओंकार है, शिव ब्रह्म है,
शिव शक्ति है, शिव भक्ति है.
भोले की महिमा है अपरम्पार
करते हैं अपने भक्तों का उद्धार
शिव की दया आप पर बनी रहे
और आपके जीवन में खुशियां भरी रहें.
आप सभी को महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं
- पंडित पंकज द्विवेदी, संचालक ब्लॉग
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Monday, February 21, 2022
हमारी 'बोली-भाखा' का कालजयी महाकाव्य है रामचरित मानस..! मातृभाषा दिवस / जयराम शुक्ल
हमारी 'बोली-भाखा' का
कालजयी महाकाव्य है
रामचरित मानस..!
मातृभाषा दिवस/जयराम शुक्ल
जिन किन्हीं ने भी वार्षिक कैलेण्डर में मातृभाषा दिवस को एक तिथि के रूप में टांका है उनके चरणों में मुझ अकिंचन का प्रणाम्।
प्रणाम् इसलिए भी कि जिन-जिन के साथ माता का विशेषण जुड़ा है वे सब खतरे में हैं। धरती माता बुखार से तप रही है। गंगा माता का दम संडांध में घुट रहा है। गोमाता सड़कों पर डंडे खाने और विष्ठा खाकर पेट भरने, पन्नी खाकर मरने के लिए छोड़ दी गईं हैं। गीता माता के वैभव पर धर्म और सांस्कृतिक फूहड़ता का ग्रहण है।
और वे माताएं जिन्होंने अपनी कोख से हमें जना हैं उनके जीवन का उत्तरार्द्ध या तो वृद्धाश्रम में खप रहा है या फिर कनाडा, अस्ट्रेलिया, अमेरिका कमाने गए बेटों के इंतजार में ड्राइंग रूम में बैठे-बैठे मम्मी से ममी में बदल रही हैं।
मातृभाषा पर भी ऐसा ही संकट है। संकट पर विस्तार से व्याख्या फिर कभी, आज तो हम अपनी मातृभाषा के रूपरंग, कद-काठी पर बात करेंगे।
हमारा अस्तित्व माँ नर्मदा से है। जिन्हें रेवा कहा जाता है। स्कंदपुराण में रेवाखंड नाम का एक अध्याय ही है। इसी में सत्यनारायण की कथा है। सांस्कृतिक और पारंपारिक तौर पर यह कथा हमारे अत्यंत निकट है। तो हमारी संस्कृति रेवाखंडी है..यहीं से रीवा शब्द उपजा, और रीमा, रिमहा, रिमही बना।
उससे पहले रेवापत्तनम् जैसै -जैसे राजा आए यहां राज करने वैसे वैसे कुछ न कुछ जुड़ता या घटता रहा।
जब यह बघेल राजाओं का रीमाराज्य बना तब यहां की बोली को रिमही का नाम मिला। रीमाराज्य के ऊपर अँग्रेज बैठे तो इसे बघेलखंड बना दिया और इस तरह अपनी रिमही बन गई बघेली..!
...तो पहले तय किया जाए कि हम अपनी बोली को बघेली कहें या रिमही। यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इससे हमारी बोली का भूगोल, इतिहास और भविष्य का निर्धारण होना है।
भाषा का इतिहास लिखने वालों ने अपने सर्वेक्षण और वर्गीकरण में अपनी बोली को बघेली का नाम दिया है। यही नाम अब चलन में भी है।
अंगे्रज शिक्षाविद् गियर्सन महाशय ने भाषा-बोली के सर्वेक्षण व वर्गीकरण में इसे अवधी से निकली हुई उपबोली बताया और बघेली नाम दिया।
बांधवगद्दी के रीमा स्थानांतरित होने व रीमाराज्य बनने के बाद अंग्रेजों का पहला हस्तक्षेप महाराजा अजीत सिंह (1755-1809) के शासनकाल में हुआ। इसी बीच एक अंग्रेजी यात्री लेकी ने भी राज्य की यात्रा की। उसने अपनी डायरी में यहां की तत्कालीन संस्कृति, रीति-रिवाज, परंपराएं परिवेश, बोली-भाषा का उल्लेख किया।
अंग्रेज हुकूमत की पहली विधिवत संधि महाराज जयसिंह (1809-1833) के समय हुई। इसके बाद उनका दखल बढ़ता गया और महाराज विश्वनाथ सिंह के समय तक सत्ता के सूत्र के तरह से अंग्रेजों के हाथों में ही आ गया।
इतिहास में जिसे हम रीमाराज्य कहते हैं वस्तुत: अंग्रेजी हुकूमत के शासन प्रबंधन की दृष्टि से यह बघेलखंड पॉलटिकल रीजेंसी हो गया। ब्रिटिश हुकूमत ने रीमाराज्य शब्द को अपने बात व्यवहार और शासन-प्रशासन से तिरोहित कर दिया।
राज्य के शासन प्रबंधन के लिए अंगे्रजों ने प्रत्येक क्षेत्र में अध्ययन व सर्वेक्षण शुरू किया। इसी काल में कनिघंम महाशय भी आए और इस क्षेत्र के पुरातत्व का विशद सर्वेक्षण किया। गोर्गी-भरहुत तभी चर्चा में आए बौद्धकालाीन और कल्चुरिकालीन पुरासंपदाएं रिकार्ड में दर्ज हुईं।
उधर गोड़वाने में वॉरियर आल्विन जनजातियों पर अध्ययन कर रहे थे, तो इधर वॉल्टर जी ग्रिफिथ महोदय। वॉलटर ग्रिफिथ ने बघेलखंड के जनजातियों की बोली, भाषा, संस्कृति, रहन-सहन का विशद अध्ययन कर 'ट्राइब्स इन सेंट्रल इंडिया' नाम की महत्वपूर्ण पुस्तक लिखी, जिसे कलकत्ता की एशियाटिक सोसायटी ने छापा। पूरी किताब में गिफिथ ने कहीं भी बघेली बोली का उल्लेख नहीं किया।
इसके बाद आए ग्रियर्सन। उन्होंने उत्तर भारत की भाषाओं और बोलियों का सर्वेक्षण वर्गीकरण किया। बघेलखंड पॉलिटकल रीजेंसी में जो बोली जाती थी उसका नाम वैसे ही बघेली रख दिया जैसे कि बुंदेलखंड की बुंदेली। यानी कि बघेलखंड पॉलटिकल एजेंसी की स्थापना को बाद से ही बघेली शब्द आया।
अपनी बोली के इस नए नाम को किसी भी राजा ने स्वीकार नहीं किया। विश्वनाथ सिंह से लेकर गुलाब सिंह तक। यहां तक कि अंतिम शासक मार्तण्ड सिंह की जुबान में भी रिमही जनता और रिमही बोली जमी रहीं न कि बघेली जनता व बघेली बोली।
महाराजा गुलाबसिंह के पुष्पराजगढ़ घोषणापत्र में ऐलान किया था कि राज्य सभी कामकाज रिमही बोली होंगे। इन्हीं कार्यकाल में उर्दू-फारसी में लिखी
जानेवाली अर्जियां रिमही बोली में लिखी जाने लगीं।
अभी भी उस समय के
करारनामें, अर्जियां, सनद लोगों के पास हैं जो रिमही में लिख गई हैं। गजब
यह हुआ कि जिस बघेली शब्द को यहां के राजे-महाराजों ने खारिजकर दिया उसे स्वतंत्र भारत के हिंदी के पंडों ने आगे बढ़ाया व महिमामण्डित किया।
अव्वल तो हमारी बोली के शोध, अनुसंधान व दस्तावेजीकरण की दिशा में कोई खास काम हुआ ही नहीं, जिन्होंने किया वो ग्रियर्सन की खींची लकीर व दी गई स्थापना के इर्द-गिर्द ही खुद को शामिल रखा।
बोली और भाषा जाति की नहीं जमीन की होती है। विन्ध्य के यशस्वी समालोचक कुंवर सूर्यबली सिंह 'बघेली की स्थापना को खंडित करने में लगे रहे। उन्होंने सबसे पहले अपने आलेखों में लिखा कि गोस्वामी तुलसीदास का रामचरित मानस रिमही में लिखा गया महाकाव्य है।
चूंकि हिन्दी में उत्तरप्रदेश के विद्धानों का वर्चस्व रहा इसलिए रामचरित मनास जैसे कालजयी महाकाव्य को बलात् अवधी के खाते में डाल दिया गया। गोस्वामी जी ने रामचरित मानस का तीन चौथाई हिस्सा चित्रकूट में रहकर लिखा है।
बांदा में जो बोली व्यवहार व चलन में है व खलिस रिमही है। मानस में कई ऐसे शब्द हैं जो रिमही के अलावा किसी बोली और भाषा में नहीं हैंं।
इस दृष्टि से हमें यह कहने व प्रचारित करने में गर्व होना चाहिए कि विश्वभर में सबसे अधिक पढ़ा और बाचा जाने वाला महाग्रंथ रामचरित मानस रिमही बोली की कृति है।
हिंदी के जो इतिहासकार इसे अवधी का कहते व मानते हैं उनके लिए जवाब है कि यदि रामचरित मानस अवधी का महाकाव्य है तो समझिए के अवधी ही मूलरूप से रिमही है।
गोस्वामी तुलसीदास महाराजा रामचंद्र (1555-1592) के समकालीन थे, उस समय यह बोली समूचे बांधवगढ़ में न सिर्फ चलन में थी, अपितु इस बोली पर एक से एक रचनाएं रची जा रहीं थी। संगीत सम्राट तानसेन की ध्रुपद रचनाओं में भी इसकी छाप थी।
यद्यपि तब इस बोली को रिमही नहीं कहा जा सकता। क्योंकि तब रीमा अस्तित्व में ही नहीं था। अब आती है रिमही के विस्तार की बात। रिमही कोई रीमराज्य (इतिहासोल्लिखित) या अंग्रजों के द्वारा घोषित किए गए बघेलखंड तक सीमित नहीं है, जैसे कि भोजपुरी बिहार के छोटे जिले भोजपुर तक सीमित नहीं हैं।
भोजपुरी तो सात समंदर पार, कई देशों, मारीशिश, फिजी, त्रिनिनाद, टोबेगो जैसे देशों की मातृभाषा है। अपने देश में भोजपुरी हिंदी व अन्य भाषाओं के समानांतर खड़ी है। कहने का आशय यह कि यदि रिमही के साथ रीमा जुड़ा है तो इसका दायरा यहीं तक नहीं सिमट जाता।
इलाहाबादी हरिवंशराय बच्चन ने चार खण्डों में प्रकाशित अपनी आत्मकथा में जिन पारंपरिक गीतों का उल्लेख किया है वे अपने यहा भी गाए जो हैं। बच्चन जी के बहु प्रसिद्ध लोकगीत ..पिया जा लावा किया नदिया से सोन मछरी, या ...महुआ के नीचे मोती झरै..महुआ के, किस बोली के हैं। आल इंडिया रेडियो के आरकाइव के सौजन्य से मैंने ये गीत उनके ही स्वरों से सुने हैं।
बच्चन जी प्रतापगढ़ जिले के बाबू की पट्टी गांव के हैं उनका वास्ता राठ उरई से भी है। इलाहाबाद, प्रतापगढ़, जौनपुर, एटा से लेकर उधर लखनऊ तक जो बोली व्यवहार में है उसका रिमही से उतना ही फरक है जितना कि
नागौद की रिमही और हनुमना की रिमही में।
इलाहाबाद के एक और यशस्वी कवि हुए हैं कैलाश गौतम। उनकी कोई भी रचना सुनें अपनी रिमही से ज्यादा फरक नहीं। फिल्मी दुनिया के महाअभिनेता अमिताभ बच्चन हर दूसरी फिल्म में जो देसी बोली बोलते हैं, उसे ज्ञानी लोग भोजपुरी बताते हैं, वस्तुत: वह रिमही ही है। ऐसी किसी भी फिल्म में उनके संवादों की एक बार गौर से सुने।
रिमही का इतिहास समुन्नत व समृद्ध है। महाराज वीरभान (1540-1555) के समयकाल के पहले से ही यही बोली व भाषा चलन में थी। उस समय बांधवगद्दी का साम्राज्य आधे छत्तीसगढ़ (रतनपुर) बुंदेलखंड में केन तक व उधर इलाहाबाद में अरैल पार तक थी।
संत कबीर इसी समय काल में हुए। नानक का भी बांधवगगद्दी से रिश्ता रहा। महाराज वीरभान कबीर के शिष्य थे। बांधवगढ़ के नगर सेठ धरमदास तो कबीर की गद्दी के उत्तराधिकारी ही बने। कबीर के शब्द और साखी में आम रिमही ढूंढ़ सकते हैं। उनका एक प्रसिद्ध दोहा है-
कबिरा कूता राम का मोतिया मेरा नाऊ
गरे पड़ी है जेउरी जित खीचे तित जाऊं।
सो जरूरी है कि अपनी बोली रिमही के इतिहास व उसके वृस्तित भूगोल पर फिर से नजर डाली जाए। बोली-भाषा के सतही इतिहासकारों ने बड़ा-कबाड़ा किया है।
छत्तीसगढ़ी भी रिमही का ही एक रूप है। रिमही बोली को तै-तुकार से लैस कर दीजिए। झट-पट छत्तीसगढ़ी में बदल जाएगी। पर छत्तीसगढ़ की बोली जाति की नहीं जमीन की थी। इसलिए इतनी फली-फूली आगे बढ़ी और अब प्रदेश की राजकीय भाषा बनने की स्थिति में है। वहां के साहित्यकारों में अपनी बोली भाषा को लेकर ललक है। वैसे ही जैसे कि भोजपुरी को लेकर वहां के साहित्यकारों में।
भाषा के बोली सर्वेक्षण को लेकर कई गड़बड़झाले हैं। जैसे जबलपुर से लेकर होशंगाबाद तक समूची नमर्दापट्टी में जो बोली चलन में है व बुंदेली तो कदापि नहीं, पर हिंदी के पंडे इसे बुंदेली ही कहते हैं। इधर कटनी से लेकर सिहोरा तक रिमही ही बोली जाती है, पर दर्ज है बुंदेली के खाते में।
सो इसलिए मेरा बार-बार निवेदन है रहता है कि अपनी भाषा-बोली को लेकर हिंदी साहित्य के इतिहास में जो भूलचूक हुई है उसे दुरुस्त करिए।..
संपर्कः 8225812813
लेख- वरिष्ठ पत्रकार आदरणीय जयराम शुक्ल जी के फेसबुक से सादर साभार
-पंडित पंकज द्विवेदी, संचालक ब्लॉग
VINDHYA PRADESH THE LAND OF WHITE TIGER
Friday, December 31, 2021
अंग्रेजी नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं - पं. पंकज द्विवेदी
आप सभी को VINDHYA PRADESH THE LAND OF WHITE TIGER की तरफ से आप सभी को अंग्रेजी नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं ।
कुछ इस तरह से नव वर्ष की शुरुआत हो,
चाहत अपनों की सबके साथ हो,
न फिर गम की कोई बात हो,
नए साल में आप पर खुशियों की बरसात हो.
Happy New Year 2022
-✍️✍️ पं.पंकज द्विवेदी, ब्लॉग संचालक
VINDHYA PRADESH THE LAND OF WHITE TIGER
Tuesday, November 2, 2021
धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएं -पंकज द्विवेदी |Pankaj dwivedi
आप सभी को धन-संपत्ति, समृद्धि, वैभव और आरोग्य के पावन पर्व 'धनतेरस' की हार्दिक बधाई व अनंत शुभकामनाएं...!!
माता लक्ष्मी और आरोग्य के देवता भगवान धन्वन्तरि की असीम कृपा हम सभी पर बनी रहे।
#Dhanteras2021
#धनतेरस२०२१
#धन्वंतरि_त्रयोदशी
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#विंध्यप्रदेश
Friday, January 29, 2021
विन्ध्य नायक पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीयुत श्रीनिवास तिवारी की स्मृति प्रसंग के अवसर पर आगामी 27 एवं 28 फरवरी 2021 को दो दिवसीय बघेली लोक रचना शिविर आयोजित होने जा रहा है।
🌸*हार्दिक आमंत्रण* 🌸
रीवा 28 जनवरी। विन्ध्य नायक पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीयुत श्रीनिवास तिवारी की स्मृति प्रसंग के अवसर पर आगामी 27 एवं 28 फरवरी 2021 को दो दिवसीय बघेली लोक रचना शिविर आयोजित होने जा रहा है। बघेली लोक रचना शिविर का पूरा मंच विन्ध्य की लोककला, संस्कृति एवं बघेली लोक साहित्य को समर्पित रहेगा। इस दो दिवसीय आयोजन में पुराने समाचार पत्र पत्रिकाओं के साथ बघेलखण्ड के लेखकों की प्रकाशित पुस्तकों की प्रदर्शनी, सम्मान समारोह, बघेली कवि सम्मेलन, बौद्धिक संगोष्ठी के साथ ही बघेली लोक कलाओं का प्रदर्शन एवं अखिल भारतीय कवि सम्मेलन के कार्यक्रम सम्पन्न होगें।
बघेलखण्ड सांस्कृतिक महोत्सव समिति के अध्यक्ष जगजीवनलाल तिवारी, कार्यक्रम संयोजक डा.मुकेश ऐंगल ने जानकारी देते हुए बताया कि यह कार्यक्रम पिछले वर्ष 2020 में आयोजित किया जाना था परन्तु कोरोना काल के चलते कार्यक्रम स्थगित करना पड़ा था अब उक्त कार्यक्रम 27 एवं 28 फरवरी को आयोजित होने जा रहा है। 27 फरवरी को दोपहर 12 बजे से पत्र पत्रिकाओं की प्रदर्शनी के साथ पद्मश्री बाबूलाल दाहिया सहित विन्ध्य के विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान करने बाले 20 सख्शियतों को सम्मानित किया जायेगा।
इसी क्रम में बघेली के जनकवि शम्भू काकू की कविताओं का संग्रह ‘‘बोले चला निरा लबरी’’ के साथ अन्य प्रकाशित पुस्तकों का विमोचन अतिथियों द्वारा किया जायेगा। कार्यक्रम के दूसरे सत्र में बघेली कवि सम्मेलन एवं तीसरे सत्र में सायंकाल 6 बजे से रात्रि 9 बजे तक बघेली लोककलाओं का प्रदर्शन होगा जिसमें बघेलखण्ड की अहिरहाई, कोलदहका, ढिमरहाई, वसुदेवा गीत, आल्हागीत के साथ इन्द्रवती नाट्य संस्था सीधी एवं मण्डप आर्ट रीवा के कलाकारों द्वारा बघेली लोक नाटकों की प्रस्तुती होगी। आयोजन के दूसरे दिन 28 फरवरी को दोपहर 12 बजे से बौद्धिक संगोष्ठी में ‘‘सूचना क्रांति में लोकभाषाओं की उपादेयता’’ पर चर्चा की जायेगी जिसमें प्रमुख वक्ता के रूप में पद्मश्री डा.कपिल तिवारी के साथ पद्मश्री बाबूलाल दाहिया, सोमदत्त त्रिपाठी, डा.विजेन्द्र वैद्य, डा.लहरी सिंह, पूणेन्द्र सिंह, डा.दिनेश कुशवाह, डा.विजय अग्रवाल एवं चन्द्रिका प्रसाद चन्द्र सामिल होगें। कार्यक्रम के दूसरे सत्र में वाल कलाकारों की विशेष प्रस्तुतियांे के साथ अर्चना पाण्डेय, सुषमा शुक्ला, मणिमाला सिंह, नेहा अग्रवाल, राजकुमार तिवारी की बघेली प्रस्तुतियां होगी। कार्यक्रम का समापन अखिल भारतीय कवि सम्मेलन से होगा जिसमें देश के चर्चित कवि भाग लेगें। संस्था के अध्यक्ष श्री तिवारी ने नगरवासियों से कार्यक्रम में सामिल होकर सफल बनाने की अपील की है।
-पंडित पंकज द्विवेदी , संचालक ब्लॉग
VINDHYA PRADESH THE LAND OF WHITE TIGER
Wednesday, January 27, 2021
दुनिया भर में मिलेगी रीवा के सुपारी कला को पहचान (Supari Art Rewa)
दुनिया भर में मिलेगी रीवा के सुपारी कला को पहचान (Supari Art Rewa)
सुपारी कलाकृति को रीवा में देखने के बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अभिभूत हो गये। उन्होने घोषणा किया है कि इस कलाकृति को दुनिया भर में भेजा जायेगा। जिससे इस कला को देश-दुनिया के लोग जान सकें और कला को पूरा महत्वं मिले।
प्रस्तुत की गई थी झांकी
दरअसल गणतंत्र दिवस समारोह एसएएफ मैदान रीवा में आयोजित किया गया था। इस सामारोह में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मुख्य अतिथी के रूप में शामिल हुये। इस दौरान निकाली गई विभिन्न झांकियों में सुपारी से बने भगवान गणेश की प्रतिमा शमिल रही। इस प्रतिमा को देखने के बाद मुख्यमंत्री ने इसे देश ही नही बल्कि विश्व के अन्य देशों में भी भेजने की घोषणा किये है।
कुंदेर परिवार करता है तैयार
रीवा के फोर्ट रोड में रहने वाले कुंदेर परिवार के लोग सुपारी (Rewa Supadi Art) को कला कृति देते आ रहे है। जिसमें वे सुपारी की कटिग करके उसे सुन्दर बनाते है। इसमें से भगवान की प्रतिमा एंव खिलौने भी तैयार करते आ रहे है। बदलते बाजार बाद के चलते इस कला को सही स्वरूप नही मिल पा रहा। जिसके चलते कलाकारों में भी मायुसी है। मुख्यमंत्री की इस घोषणा के बाद सुपारी कला एंव कलाकारों को उम्मीद की उड़ान नजर आने लगी है।
सुपारी के खिलौनों ने रीवा को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाया है। यहां के कलाकारों की कलाकृतियों की दूसरे राज्यों में भी काफी मांग हैं। जिस तरह से रीवा में सुपारी के खिलौने बनाए जाते हैं वह दूसरे स्थानों में बहुत कम हैं। शहर के कुंदेर परिवार के कुछ लोगों के लिए यह चाहे भले ही जीवन यापन का एक जरिया हो लेकिन इससे रीवा की ख्याति भी जुड़ी है।
इन खिलौनों को गिफ्ट देने में इस्तेमाल किया जा रहा है। इनकी मांग इतनी अधिक है कि एक से अधिक की संख्या में जरूरत पड़ने पर एडवांस में आर्डर देना पड़ता है। शहर में आने वाले राजनेताओं और अन्य सेलीब्रिटी को भी यही भेंट किए जा रहे हैं। जिससे इनकी ब्रांडिंग भी हो रही है।
ऐसे हुई थी शुरुआत
इसकी शुरुआत रीवा राजघराने द्वारा सुपारी को पान के साथ इस्तेमाल करने के लिए अलग-अलग डिजाइन से कटवाने से शुरुआत की गई थी। उसी की डिजाइन बनाते-बनाते कलाकृतियां भी सामने आने लगीं। कुंदेर परिवार तीन पीढ़ियों से यह काम कर रहा है। इनका यह प्रमुख पेशा है। रीवा की पहचान सुपारी के खिलौने बन गए हैं।
इंदिरा गांधी कला से थीं प्रभावितः
1968 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी रीवा आई थीं। उस दौरान उन्हें सुपारी के खिलौने भेंट किए गए थे। दिल्ली पहुंचने पर उन्होंने सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के बोर्ड आफ डायरेक्टर के पैनल में सुपारी के खिलौने बनाने वाले रामसिया कुंदेर को भी शामिल किया। कई बड़े कार्यक्रम में इंदिरा गांधी ने परिचय कराकर कलाकार का सम्मान भी बढ़ाया।
सिंदूर की डिब्बी से हुई थी शुरुआतः
शहर के फोर्ट रोड में सुपारी से मूर्तियां और खिलौने बनाने वाले दुर्गेश कुंदेर तीसरी पीढ़ी के कलाकार हैं। वह बताते हैं कि सबसे पहले 1942 में उनके दादा भगवानदीन कुंदेर ने सुपारी की सिंदूरदान बनाकर महाराजा गुलाब सिंह को गिफ्ट किया था। इसके पहले महाराजा के आदेश पर ही राज दरबार के लिए लच्छेदार सुपारी काटी जाती थी। महाराजा मार्तण्ड सिंह को छड़ी गिफ्ट की गई थी, जिस पर 51 रुपए का इनाम दिया गया था। समय के साथ बाजार की मांग के अनुसार खिलौने बनाए जाने लगे। इन दिनों शहर का ऐसा कोई भी बड़ा कार्यक्रम नहीं होता जिसमें सुपारी की गणेश प्रतिमा गिफ्ट नहीं की जाती हो। बाहर से आने वाले अतिथि को सुपारी के ही खिलौने दिए जाते हैं।
गणेश प्रतिमा सबसे अधिक लोकप्रियः
पहले सुपारी की स्टिक, मंदिर सेट, कंगारू सेट, टी-सेट, महिलाओं के गहने, लैंप आदि पर अधिक फोकस रहता था लेकिन इन दिनों गणेश प्रतिमा ही सबसे अधिक लोकप्रिय हो रही है। दुर्गेश कुंदेर का कहना है कि लक्ष्मी जी की मूर्ति लोग गिफ्ट करने के लिए नहीं बल्कि अपने घरों में रखने के लिए लेते हैं। गिफ्ट करने के लिए गणेश प्रतिमा ही सबसे अधिक खरीदी जा रही है।
Thursday, December 31, 2020
VINDHYA PRADESH THE LAND OF WHITE TIGER की तरफ से नए साल की हार्दिक शुभकामनाएं (कैलेंडर 2021)
आप सबको नमस्कार मैं नये साल के शुभ अवसर पर आप सबको हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं। आप सब स्वस्थ रहे मस्त रहे।यही भगवान से प्रार्थना करता हूं ।
नववर्ष 2021 का कैलेंडर VINDHYA PRADESH THE LAND OF WHITE TIGER ब्लॉग की तरफ से आप सबके लिए कैलेंडर पोस्ट कर रहा हूँ।
इस कैलेंडर में विंध्य क्षेत्र के धार्मिक स्थल एवं पर्यटक स्थल की फ़ोटो भी डाला गया है जिससे लोगों को विंध्य के धार्मिक स्थलों एवं पर्यटक स्थलों के बारें में जानकारी हो सके ।
कैलेंडर डाउनलोड करने के लिए लिंक- https://drive.google.com/file/d/1gAhrWnGMOUGSJlZMnB0iZKELZxuHrgNe/view?usp=drivesdk
अभी तक आप लोगों ने हमारे ब्लॉग को इतना प्यार एवं सहयोग दिया है आशा करता हूं कि आप लोग आगे भी ऐसे ही प्यार एवं सहयोग देंगे।
धन्यवाद 🙏🙏
©Pankajdwivedi |
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Monday, November 23, 2020
ईको टूरिज़्म पार्क पर्यटको के आकर्षण का केंद्र होगा-मुकुंदपुर में व्हाइट टाइगर सफारी के पास ईको टूरिज्म एडवेंचर पार्क का शुभारम्भ( Eco tourism park may be the centre of attraction to tourists, mukundpur near white tiger safari in eco tourism adventure park opening now. )
ईको टूरिज़्म पार्क पर्यटको के आकर्षण का केंद्र होगा-मुकुंदपुर में व्हाइट टाइगर सफारी के पास ईको टूरिज्म एडवेंचर पार्क का शुभारम्भ
ईको पार्क मुकुन्दपुर |
Eco tourism park may be the centre of attraction to tourists, mukundpur near white tiger safari in eco tourism adventure park opening now.
पर्यटन के लिहाज से विंध्य क्षेत्र ने रविवार को मील का एक और पत्थर पार कर लिया। विंध्य के सतना जिले के मुकुंदपुर को व्हाइट टाइगर सफारी के बाद अब एडवेंचर पार्क की सौगात भी मिल गई है। पर्यटकों को आकर्षित करने के साथ ही इको टूरिज्म से जुड़ा यह एडवेंचर पार्क रीवा , सतना ,सीधी सहित विंध्य क्षेत्र के लोगों के मनोरंजन के लिहाज से एक बेहतर पिकनिक स्थल भी बन गया है। रविवार को एक गरिमामय समारोह में प्रदेश के पंचायत राज्य मंत्री रामखेलावन पटेल ने सतना सांसद गणेश सिंह , रीवा सांसद जनार्दन मिश्रा तथा रीवा के विधायक व प्रदेश के पूर्व मंत्री राजेंद्र शुक्ल की मौजूदगी में मुकुंदपुर में व्हाइट टाइगर सफारी के समीप इस एडवेंचर पार्क का लोकार्पण किया।
मौज मस्ती के साथ साहसिक कारनामे
जो अब तक आपने रील लाइफ में देखा है वो अब रियल लाइफ में आप खुद भी कर सकेंगे । अब आप अपने परिवार अथवा दोस्तों के साथ घूमने – फिरने , छुट्टियां और पिकनिक मनाने जा सकेंगे। मुकुंदपुर में व्हाइट टाइगर सफारी के साथ साथ अब एडवेंचर्स पार्क में भी मनोरंजन और मौज मस्ती करने की एक ऐसी जगह अस्तित्व में आ गई है जहां बच्चे तो बच्चे बड़ों का भी मन खूब रमेगा। ईको टूरिज्म के तहत विकसित किये गए एडवेंचर्स पार्क में बच्चे झूले झूल सकेंगे, खेलकूद सकेंगे और अब तक फिल्मों और टेलीविजन शो में दिखाई पड़ने वाले साहसिक कारनामों का भी मजा ले सकेंगे। सतना वन मंडल द्वारा बनाया गया यह इको पार्क मुकुंदपुर में व्हाइट टाइगर सफारी एवं जू सेंटर के समीप ही बनाया गया है ताकि टाइगर सफारी का भ्रमण करने आने वाले लोग विंध्य की शान सफ़ेद शेर के दीदार के साथ ही एडवेंचर पार्क में भी मौज मस्ती कर सकें।
रस्सी पर चलिए , तार पर झूल कर नदी पार करिये-
विंध्य क्षेत्र में अपनी किस्म के इस इकलौते पार्क में रोप वाकिंग, रोप क्लाइम्बिग, टायर वाक, जिप लाइन, कैनोपी वाक, साइकिलिंग व तीरंदाजी आदि जैसी साहसिक गतिविधियों के साथ बच्चों के लिये कई तरह के झूले लगाये गये हैं ताकि बड़े व बच्चे सभी इसका आनंद उठा सकें। वनमंडलाधिकारी राजीव कुमार राय ने बताया कि आने वाले समय में यहां और भी कई एडवेंचर्स गतिविधियां शुरू किये जाने के प्लान पर काम चल रहा है। योजना है कि यहां वाटर स्पोर्ट्स की भी कुछ गतिविधियां शुरू की जाएं। पार्क में औषधीय और ग्रहों – नक्षत्रों से जुड़े वृक्षों – पौधों का उद्यान भी विकसित किया गया है। मुकुंदपुर के जंगलों के प्राकृतिक सौंदर्य को सुरक्षित और संरक्षित रखते हुए विकसित किये गए इस पार्क में ट्री हाउस, वाच टावर्स आदि भी बनाये गए हैं।
मुकुंदपुर से मार्कण्डेय तक बनाएंगे पर्यटन कॉरिडोर – पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री राम खेलावन पटेल
प्रदेश के पंचायत एवं ग्रामीण विकास राज्य मंत्री रामखेलावन पटेल ने एडवेंचर्स पार्क के लोकार्पण अवसर पर विंध्य की झोली में आई इस एक और सौगात का श्रेय रीवा के विधायक एवं पूर्व मंत्री राजेंद्र शुक्ला को देते कहा कि विंध्य को विकास की ऊंचाइयों तक ले जाने में श्री शुक्ल का विशेष योगदान है। उन्होंने कहा वाइट टाइगर सफारी एवं जू को विंध्य के लिए एक धरोहर बताते हुए कहा कि इको टूरिज्म इसकी पूर्णता सिद्ध करेगा। यह स्थान पर्यटकों को आकर्षित करेगा। मंत्री श्री पटेल ने कहा कि मुकुंदपुर से रामनगर के मार्कण्डेय तक एक पर्यटन कॉरिडोर बनाने के प्रयास किये जा रहे हैं ताकि पर्यटकों को ऐतिहासिक और धार्मिक महत्त्व के स्थलों को देखने – जानने का मौका मिल सके।
उन्होंने मुकुंदपुर तालाब का जीर्णोद्धार कराने , पुलिस चौकी की स्थापना कराने का भरोसा दिलाया तथा टाइगर सफारी का एक गेट मुकुंदपुर की तरफ किये जाने का प्रस्ताव तैयार करने के निर्देश विभागीय अधिकारियों को दिए।
देश – विदेश में बनेगी पहचान –सतना सांसद गणेश सिंह
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए सांसद सतना गणेश सिंह ने कहा कि व्हाइट टाइगर सफारी ने विश्व में अपनी अलग पहचान स्थापित की है। अब विकास के दूसरे चरण में ईको टूरिज्म पार्क की पहचान भी देश व विदेश में बनेगी। विन्ध्य की धरा में धार्मिक, प्राकृतिक सौंदर्य के साथ खनिज संपदाओं के प्रचुर भण्डार हैं। पार्क के प्रारंभ हो जाने से पर्यटक इन सबका दीदार कर सकेंगे। उन्होंने कहा कि रीवा विधायक श्री शुक्ल के प्रयासों से यह क्षेत्र औद्योगिक कॉरीडोर से जुड़ेगा तथा इसका चहुंमुखी विकास होगा।
संयुक्त प्रयासों का फल – रीवा सांसद जनार्दन मिश्रा
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि सांसद रीवा जनार्दन मिश्र ने कहा कि रीवा संभाग में पर्यटन के विकास के लिये किये गये संयुक्त प्रयासों का ही फल है कि आज यह क्षेत्र सैलानियों को प्रकृति के सौंदर्य के दर्शन के साथ मनोरंजन के भी संसाधन उपलब्ध करा पा रहा है।
होगी क्षेत्र की तरक्की बढ़ेंगे आय के माध्यम – पूर्व मंत्री व रीवा विधायक राजेंद्र शुक्ल
इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के तौर पर अपने उद्बोधन में पूर्व मंत्री एवं रीवा विधायक राजेन्द्र शुक्ल ने कहा कि व्हाइट टाइगर सफारी में आने वाले पर्यटकों को ईको टूरिज्म पार्क सोने में सुहागा जैसा है। व्हाइट टाइगर सफारी एवं जू में आने वाले सैलानी वन्य प्राणियों को देखने के साथ पार्क में एडवेंचर का पूरा मौका उठा सकेंगे। भाग दौड़ भरी जिंदगी में लोग वन्य प्राणियों के दीदार के साथ टूरिज्म पार्क में सुकून के दो पल बिता सकेंगे। यहां बच्चों व बड़ों के लिये मनोरंजन के पूरे इंतजाम किये गये हैं जिसमें लोग साहसिक गतिविधि भी कर सकेंगे।
उन्होंने कहा कि पर्यटन आर्थिक गतिविधि को बढ़ाने का सबसे बड़ा माध्यम है। विन्ध्य में देशी एवं विदेशी सैलानियों के आने से क्षेत्र की तरक्की होगी तथा यह समृद्धशाली क्षेत्र के तौर पर विकसित होगा। उन्होंने कहा कि विन्ध्य प्राकृतिक संपदा से सम्पूर्ण क्षेत्र है। इसे पर्यटन का केन्द्र बनाया जायेगा तथा पर्यटन कॉरीडोर से जोड़ने के सभी कार्य कराये जायेंगे। फोरलेन की सड़कों से जुड़ जाने के कारण अब यह मुख्य धारा में शामिल हो चुका है। सिंगरौली तक रेल लाइन से जुड़ जाने पर विकास के नये मापदण्ड स्थापित होंगे तथा रीवा/सतना में हवाई अड्डा बन जाने से पर्यटकों को यहां आने की सुविधा मिल जायेगी।
ये भी रहे उपस्थित –
- पंडित पंकज द्विवेदी संचालक ब्लॉग
VINDHYA PRADESH THE LAND OF WHITE TIGER
Saturday, November 21, 2020
मुकुंदपुर में मनोरंजन से भरा ईको पार्क बनकर तैयार 22 नवंबर 2020 को होगा उद्घाटन
मुकुंदपुर में मनोरंजन से भरा ईको पार्क बनकर तैयार 22 नवंबर 2020 को होगा उद्घाटन
मुकुंदपुर व्हाइट टाइगर सफारी के बगल में ईको पार्क बनकर पूरी तरह से तैयार हो गया है। इस पार्क में मनोरंजन के कई साधन बनाये गए है। इस पार्क का उद्घाटन 22 नवंबर को पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री रामखेलावन पटेल करेंगे। लिहाजा जू प्रबंधन इसकी तैयारी में जुटा हुआ है।
उल्लेखनीय है कि मुकुंदपुर को पर्यटन क्षेत्र में तेजी के साथ विकसित किया जा रहा है। व्हाइट टाइगर सफारी के बाद अब ईको पार्क बनाया गया है। इस पार्क में कई तरह के झूले, प्राकृतिक सौंदर्य से युक्त पार्क समेत मनोरंजन के कई साधन स्थापित किये गए है। पूरी तरह से बनकर तैयार हो चुका है। उसे अंतिम रूप दिया जा रहा है। इसके शुभारंभ की तिथि भी निर्धारित कर दी गईं है। प्रदेश के पिछड़ावर्ग तथा अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री(स्वतंत्र प्रभार ),पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री रामखेलावन पटेल 22 नवम्बर को ईको पार्क का उद्घाटन करेंगे। कार्यक्रम की अध्यक्षता सांसद सतना गणेश सिंह करेंगे। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि रीवा के सांसद जनार्दन मिश्रा एवं पूर्व मंत्री तथा रीवा विधायक राजेन्द्र शुक्ल होंगे।मुख्य वन संरक्षक ऐ के सिंह एवं डीएफओ सतना राजेश कुमार राय ने कार्यक्रम में उपस्थिति का अनुरोध किया है।
ईको पार्क का निरीक्षण करते हुए पूर्व मंत्री एवं रीवा विधायक राजेन्द्र शुक्ल जी |
30 रुपये होगी इंट्री फीस
कई एकड़ में विकसित ईको पार्क में भीतर जाने के लिए पर्यटकों को 30 रुपये बतौर इंट्री फीस अदा करना होगा । इसमे वह कई तरह के झूले ,पार्क व प्राकृतिक सौंदर्य का लुत्फ उठा सकेंगे। इसके खुलने का समय सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक रहेगा। इस दौरान पर्यटक पार्क में रह सकेंगे।
जिपलाइन , तीरंदाजी और डार्टिंग भी
बताया जा रहा है कि ईको पार्क में मनोरंजन के भरपूर साधन उपलब्ध कराए गए हैं। इसमे तीरंदाजी, डार्टिंग और जिपलाइन भी है। लेकिन इसके लिए अलग से फीस निर्धारित की गई है। पार्क में भीतर जाने पर पर्यटको को अगर मनोरंजन का लुफ़्त उठाना है ,तो इसकी फीस देनी होगी। जबकि झूले, पार्क और अन्य सभी साधनो को मुफ्त रखा गया है।
" ईको पार्क बनकर तैयार हो चुका है। 22 नवम्बर को माननीय पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री रामखेलावन पटेल द्वारा उद्धघाटन किया जाएगा। इसके बाद पार्क पर्यटकों के लिए खोल दिया जाएगा। पार्क में मनोरंजन के कई साधन मौजूद हैं।"
संजय रायखेड़े
जू संचालक
--✍️ पंडित पंकज द्विवेदी संचालक ब्लॉग
VINDHYA PRADESH THE LAND OF WHITE TIGER
Sunday, November 1, 2020
विंध्य को नहीं मिला शर्तों के अनुरूप विकास, अलग राज्य की मांग केन्द्र सरकार के पास लंबित
मध्यप्रदेश स्थापना दिवस : विंध्य को नहीं मिला शर्तों के अनुरूप विकास, अलग राज्य की मांग केन्द्र सरकार के पास लंबित
विंध्य प्रदेश गठन की संभावनाएं अभी भी जिंदा हैं, केन्द्र के पास लंबित है मामला
- आज के दिन ही विंध्य प्रदेश का अस्तित्व समाप्त होकर मध्यप्रदेश का हुआ था गठन
- विधानसभा ने संकल्प पारित कर शासन के पास भेजा था प्रस्ताव
- लगातार होती रही उपेक्षा, अब भी बड़े प्रोजेक्ट से किया जा रहा वंचित
रीवा। मध्यप्रदेश का गठन एक नवंबर 1956 को हुआ था, उसके पहले विंध्य प्रदेश का अपना अस्तित्व था। नए प्रदेश के गठन के बाद से इसका अस्तित्व समाप्त हो गया। इसमें आने वाले बघेलखंड और बुंदेलखंड के साथ अन्य कई क्षेत्र मध्यप्रदेश का हिस्सा हो गए।
उस दौरान विलय के समय इस क्षेत्र में जो संसाधन दिए जाने थे, वह नहीं मिले। जिसकी वजह से फिर विंध्य प्रदेश के पुनर्गठन की मांग उठी, हालांकि विलय का भी व्यापक रूप से विरोध हुआ था, बड़ा आंदोलन हुआ गोलियां चली गंगा, चिंताली और अजीज नाम के लोग शहीद भी हुए, सैकड़ों लोग जेल भी गए लेकिन सरकारी तंत्र ने उस आवाज को शांत कर दिया था। बढ़ती मांग के चलते मध्यप्रदेश विधानसभा ने 10 मार्च 2000 को संकल्प पारित कर 'विंध्य प्रदेश' अलग राज्य गठित करने केन्द्र सरकार से मांग की थी।
यह संकल्प विधानसभा में अमरपाटन के तत्कालीन विधायक शिवमोहन सिंह ने प्रस्तुत किया था। जिसका विंध्य के सभी विधायकों ने समर्थन कर इस क्षेत्र के दावे के बारे में बताया था। उस दौरान कांग्रेस की सरकार थी, इस संकल्प का समर्थन भाजपा के विधायकों ने भी किया था। सर्व सम्मति से पारित किए गए इस प्रस्ताव के बाद तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी ने केन्द्र सरकार से कई बार इस पर विचार करने की मांग की थी।
अब तक करीब 19 वर्ष का समय बीत गया लेकिन विंध्यप्रदेश के पुनर्गठन की संभावनाएं अभी मरी नहीं हैं। केन्द्र सरकार की ओर से इस पर स्वीकृति या अस्वीकृति का कोई निर्णय नहीं दिया गया है। राजनीतिक परिस्थितियां अब फिर उसी तरह आ गई हैं। मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार है तो केन्द्र में भाजपा नेतृत्व की। राजनीतिक विरोधाभाष के बीच विंध्य प्रदेश गठन की संभावनाएं जीवित हैं।
- लोकसभा में संकल्प के अध्ययन का दिया था आश्वासन
लोकसभा में मध्यप्रदेश पुनर्गठन विधेयक 2000 पेश किया गया था, चर्चा में भाग लेते हुए रीवा के तत्कालीन सांसद सुंदरलाल तिवारी ने मांग उठाई थी कि छत्तीसगढ़ के साथ ही विंध्यप्रदेश का भी संकल्प पारित हुआ है, इसके गठन की प्रक्रिया भी अपनाई जाए। उस दौरान गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने कहा था कि यदि जनभावनाओं के आधार पर प्रदेश सरकार ने संकल्प पारित कराया है तो इसका अध्ययन किया जाएगा और संभावनाओं पर विचार होगा। इसके बाद से विंध्यप्रदेश गठन की मांग का मुद्दा धीरे-धीरे कमजोर होता गया।
- टूटते गए विभागों के प्रदेश मुख्यालय
स्टेट रि-आर्गनाइजेशन बिल पर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि जिन राज्यों का विलय हो रहा है, उनका गौरव बनाए रखने के लिए प्रदेश स्तर के संसाधन दिए जाएंगे। विंध्यप्रदेश के विलय के बाद इसकी राजधानी रहे रीवा में वन, कृषि एवं पशु चिकित्सा के संचालनालय खोले गए। पूर्व में यहां हाईकोर्ट, राजस्व मंडल, एकाउंटेंट जनरल ऑफिस भी था। धीरे-धीरे इनका स्थानांतरण होता गया। उस दौरान भी यही समझाया गया कि विकास रुकेगा नहीं, लेकिन उस पर अमल नहीं हुआ। इसी तरह ग्वालियर में हाईकोर्ट की बेंच, राजस्व मंडल, आबकारी, परिवहन, एकाउंटेंट जनरल आदि के प्रदेश स्तरीय कार्यालय खोले गए। इंदौर को लोकसेवा आयोग, वाणिÓयकर, हाईकोर्ट की बेंच, श्रम विभाग आदि के मुख्यालय मिले। जबलपुर को हाईकोर्ट, रोजगार संचालनालय मिला था। रीवा के अलावा अन्य स्थानों पर राज्य स्तर के कार्यालय अब भी संचालित हैं, लेकिन यह केवल संभागीय मुख्यालय रह गया है।
- बड़े संस्थान देने में भी हो रही उपेक्षा
विंध्य क्षेत्र को बड़े संस्थान अन्य क्षेत्रों के तुलना में बहुत कम मिल रहे हैं। विंध्यप्रदेश पुनर्गठन को लेकर माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पूर्व समन्वयक जयराम शुक्ला कहते हैं कि मध्यप्रदेश में आइआइटी, एम्स, युनिवर्सिटी सहित कई बड़े संस्थान इंदौर, भोपाल और जबलपुर को दिए जा रहे हैं। विंध्य में प्रतिभाओं की कमी नहीं है, वह शिक्षा और रोजगार के लिए बाहर जा रहे हैं। यहां उद्योग भी आए तो धुएं और धूल वाले। विंध्यप्रदेश की राजधानी रहे रीवा को स्मार्ट सिटी जैसे प्रोजेक्ट से भी अलग रखा गया। जब रीवा राजधानी था तो यह लखनऊ, पटना, भुवनेश्वर जैसे शहरों के बराबर माना जाता था। उस समय भोपाल से बड़ा इसे माना जाता था। यहां राजनीतिक जागरुकता से सबसे अधिक रही लेकिन क्षेत्र के विकास में इसका फायदा जनप्रतिनिधि नहीं दिला सके।
- ऐसा था विंध्यप्रदेश
विंध्यप्रदेश में रीवा, सीधी(सिंगरौली), सतना, शहडोल(अनूपपुर,उमरिया), पन्ना, छतरपुर, टीकमगढ़(निवाड़ी), दतिया आदि जिले आते थे। 1300 ग्राम पंचायतें और 11 नगर पालिकाएं थीं। विधानसभा की 60 सीटें थीं और लोकसभा की छह सीटें थी। विंध्यप्रदेश की राजधानी रीवा हुआ करती थी।
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अलग प्रदेश होने से तेजी के साथ विकास होता। केन्द्रीय सेवाओं में राज्य का कोटा होता तो अधिक संख्या में अफसर तैयार होते। यहां शिक्षा और रोजगार के अवसर कम होते गए, जिसकी वजह से लोग दूसरे शहरों की ओर जा रहे हैं। सरकारों की उपेक्षा से यहां हताशा का भाव बढ़ता जा रहा है। विधानसभा का संकल्प अभी भी केन्द्र के पास लंबित है। मेरा मानना है कि अवसर जैसे-जैसे कम होते जाएंगे यहां जरूरतें बढ़ेंगी और फिर आवाज उठेगी। अलग प्रदेश का गठन आगे चलकर होगा।
शिवमोहन सिंह, पूर्व विधायक ( विंध्यप्रदेश का संकल्प प्रस्तुत करने वाले)
-पंडित पंकज द्विवेदी, संचालक ब्लॉग
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