Monday, October 31, 2022

विंध्य प्रदेश का उदय और विलीनीकरण -✍️ पं. कपिलदेव तिवारी रीवा

विंध्य प्रदेश का उदय और विलीनीकरण



पहले रीवा राज्य और कालांतर में विंध्य प्रदेश की राजधानी बनाने के बाद से रीवा राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बना रहा है। विंध्य प्रदेश के  गठन विघटन और समाजवादी आंदोलन की वजह से सन 1946 से 1956 तक लगातार यहां की राजनीतिक गतिविधियां राष्ट्रीय सुर्खियों में रही। महात्मा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस द्वारा चलाए जा रहे स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन का यहां व्यापक प्रभाव रहा ।कप्तान अवधेश प्रताप सिंह ,राजभान सिंह तिवारी,यहां कांग्रेश की नींव रखने वालों में से थे।दोनों नेताओं ने कांग्रेस के कराची अधिवेशन में भाग लिया। सन 1920 में नागपुर अधिवेशन के निर्णय के मुताबिक बघेलखंड कांग्रेस कमेटी का गठन हुआ। 30 मई 1931 को कटनी के धर्मशाला में बघेलखंड कांग्रेस कमेटी का विधिवत गठन किया गया । यादवेंद्र सिंह इसके प्रथम अध्यक्ष, कप्तान अवधेश प्रताप सिंह मंत्री व राजभान सिंह तिवारी कोषाध्यक्ष हुए । 1932 के चुनाव में कप्तान अवधेश प्रताप सिंह बघेल खंड कांग्रेस कमेटी के निर्वाचित अध्यक्ष बने। कांग्रेस कमेटी ने उस समय छेड़े गए सभी राष्ट्रव्यापी आंदोलन में सक्रिय भूमिका अदा की । चाहे वह सविनय अवज्ञा आंदोलन हो या फिर भारत छोड़ो आंदोलन। आजादी के बाद से मध्य प्रदेश के गठन तक यहां की राजनीति संक्रमण काल के दौर से गुजरी

। इसी दरमियान समाजवादी दल का अभ्युदय हुआ, जो आगे चलकर कांग्रेश के मुकाबले एक सशक्त राजनीतिक रूप में स्थापित हुआ। विंध्य के प्रमुख राजनीतिक घटनाओं को दो काल खंडों में बांटा जा सकता है ,विंध्य प्रदेश व उसके बाद।

 देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हो गया। रीवा राज्य के राज्य प्रमुख नरेश मार्तण्ड सिंह ही थे।कांग्रेस का समानांतर संगठन था।आजादी के बाद आसन्न प्रश्न था कि रीवा राज्य के भारत संघ में विलय का। तत्कालीन गृह मंत्री बल्लभ भाई पटेल ने इसे अंजाम देने कैबिनेट सचिव मेनन को भेजा। श्री मेनन राज्य प्रमुख मार्तण्ड सिंह की उपस्थिति में कांग्रेस के प्रमुख नेताओं से बातचीत की। अंततः यह  सहमति बनी कि बघेलखंड और बुंदेलखंड की उस रियासतों को मिलाकर विंध्य प्रदेश का गठन हो। इसके दो मुख्य मंडल हों एक बुंदेलखंड का, जिसकी राजधानी नौगांव हो और दूसरा बघेलखंड का। रीवा नरेश राज्य प्रमुख बने और पन्ना नरेश को उप राज्य प्रमुख बनाने पर सहमत हुई। इस तरह 4 अप्रैल 1948 को  विंध्य प्रदेश का विधिवत गठन हुआ । बुंदेलखंड मंत्रिमंडल के प्रधानमंत्री कामता प्रसाद सक्सेना व मंत्री गण थे लालाराम बाजपेई, रामसहाय तिवारी और गोपाल शरण सिंह बघेल खंड मंत्रिमंडल के प्रधानमंत्री बने आर. एन. देशमुख मंत्री गण थे यशवंत सिंह, यादवेंद्र सिंह, इंद्र बहादुर सिंह और शंभूनाथ शुक्ला । 

3 जून 1948 को बघेलखंड बुंदेलखंड को मिलाकर संयुक्त विंध्य प्रदेश बना। 10 जुलाई को कप्तान अवधेश प्रताप सिंह के प्रधानमंत्रित्व में मंत्रिमंडल का गठन किया गया। जिसमें कामता प्रसाद सक्सेना उप प्रधानमंत्री, राव शिव बहादुर सिंह, हारौल नर्मदा प्रसाद सिंह, सत्यदेव, गोपाल शरण सिंह, चतुर्भुज पाठक मंत्री बने। यह मंत्रिमंडल 14 अप्रैल 1949 तक चला।

 इसी बीच कांग्रेस में सोशलिस्ट गुट सक्रिय हो गया। रीवा में जगदीश जोशी के नेतृत्व में कांग्रेस सोशलिस्ट की नींवें सन 1946 में रखी जा चुकी थी। राष्ट्रीय सचिव मोहनलाल गौतम ने इसे विधिवत मान्यता दे दी। श्री जोशी के नेतृत्व में सोशलिस्ट गुट में यमुना प्रसाद शास्त्री, कृष्णपाल सिंह, श्रीनिवास तिवारी, अच्युतानंद मिश्र, शिवकुमार शर्मा सिद्धिविनायक द्विवेदी, आदि सक्रिय हो गए। यह सभी नेता किशोर उम्र के थे, फिर भी पूरी शिद्दत के साथ राजनीति में दखल रखते थे। सोशलिस्ट गुट के जरिए यहां की राजनीति में दो समानांतर धाराएं खड़ी हो गई। एक बुजुर्ग के वर्चस्व वाली कांग्रेस पार्टी जो कि सत्ता में काबिज थी। और दूसरी युवा तुर्कों का सोशलिस्ट गुट। जब तक यह गुट कांग्रेसका एक अंग बना रहा, तब तक यह सत्ता प्रतिष्ठान के खिलाफ मुखर था।

 महाराजा गुलाब सिंह निर्वासन व्यतीत कर रहे थे। समाजवादी युवाओं की सहानुभूति गुलाब सिंह के साथ थी। वह उनके पक्ष में यहां वातावरण तैयार करने में लगे थे। सत्ता प्रतिष्ठान से जुड़े कांग्रेश के बुजुर्ग नेता राजप्रमुख मार्तण्ड सिंह के साथ थे । आशय यह कि समकालीन राजनीति में राजपरिवार की केंद्रीय भूमिका थी।

 स्टूडेंट कांग्रेस पूरी तरह सोशलिस्ट के प्रभाव में थी। जगदीश जोशी जैसे तत्कालीन युवा नेताओं के पीछे छात्रों, युवाओं का हुजूम मर मिटने को तत्पर था। जयप्रकाश नारायण यहां की युवकों के लिए आदर्श थे,और जगदीश जोशी उनके हीरो।समाजवादी गुट तत्कालीन मंत्रिमंडल के खिलाफ था। क्योंकि इनका मानना था कि विंध्य प्रदेश का मंत्रिमंडल भूतपूर्व सामंतों से भरा पड़ा है।

 सन 1948 में नाशिक सम्मेलन में सोशलिस्ट गुट कांग्रेस से अलग हो गया। समाजवादी दल (सोशलिस्ट पार्टी) का विधिवत गठन हो गया।इसी दरम्यान शासन की शह पर किसानों को बेदखली शुरू हुई। नवगठित सोशलिस्ट पार्टी की ज्वलंत मुद्दा किसानों व मजदूरों से जुड़ा हुआ मिल गया। इन मुद्दों को लेकर वे अपने आंदोलन को समूचे विंध्य में फैलाया। उसे धारदार बनाया।

 रीवा में समाजवादियों के आंदोलन ने डॉ राम मनोहर लोहिया को काफी प्रभावित किया। आजादी की पहली सालगिरह 15 अगस्त 1948 को डॉ राम मनोहर मनोहर लोहिया यहां आए, तो युवकों का सैलाब उमड़ पड़ा। किसानों का आंदोलन समाजवादियों के नेतृत्व में तेजी से फैला। उसी समय डॉक्टर लोहिया जी जिनका रीवा से निरंतर संपर्क बना रहा, एक "पाँव रेल में , एक पाँव जेल में" नारा दिया 1949 के सोशलिस्ट पार्टी के पटना सम्मेलन में रीवा से जगदीश जोशी, यमुना प्रसाद शास्त्री, श्री निवास तिवारी के नेतृत्व में समाजवादी युवकों का जत्था पटना भाग लेने गया। इस अधिवेशन में श्री जोशी जी सोपा की राष्ट्रीय कार्यसमिति में आ गए। जबकि उनकी उम्र चुनाव लड़ने तक कि नहीं थी। वही आचार्य नरेंद्र देव, डॉक्टर लोहिया, जयप्रकाश,अच्युत वर्धन का मार्गदर्शन मिला व नए जोश के साथ समाजवादी रीवा लौटे।

 इस दरम्यान विंध्य प्रदेश के कप्तान अवधेश प्रताप सिंह के नेतृत्व वाले मंत्रिमंडल 9 माह की अल्प अवधि में ही बर्खास्त कर दिया गया। राज्य में प्रशासनिक अस्थिरता और अराजकता थी। गृहमंत्री सरदार पटेल यह धारणा बना चुके थे कि विंध्य प्रदेश को मध्य प्रदेश, मध्य प्रांत के साथ विलय कर दिया जाए।किसानों की बेदखली के खिलाफ आंदोलन के बाद समाजवादियों को यह बड़ा मुद्दा मिल गया। डॉक्टर लोहिया ने आंदोलन छेड़ने का निर्देश दिया। 2 जनवरी 1950 से आंदोलन की विधिवत शुरुआत हुई।आंदोलनकारी चक्का जाम करने बस स्टैंड पहुंचे। वहां पुलिस से झड़प हुई आंदोलन के पहले दिन ही पुलिस ने गोली चलाई। अजीज,गंगा और चिंताली,विंध्य प्रदेश के विलीनीकरण आंदोलन के खिलाफ शहीद हो गए।

जगदीश जोशी, यमुना प्रसाद शास्त्री,श्री निवास तिवारी, सिद्धिविनायक द्विवेदी, शिवकुमार शर्मा, अच्युतानंद मिश्रा आदि नेता गिरफ्तार कर केंद्रीय कारागार में डाल दिए गए । यहां आंदोलनकारियों और अधिकारियों के बीच कहासुनी हुई, तो उन्हें मैहर जेल भेज दिया गया।फरवरी 1950 को सोशलिस्ट पार्टी की ओर से हिंद किसान पंचायत का सम्मेलन आयोजित किया गया।यह ऐतिहासिक सम्मेलन शहर के बाहर पुष्पराज नगर (तब निपनिया) में आयोजित किया गया। 2 महीने तक आंदोलनकारी नेताओं को मैहर जेल में रखा गया।  सम्मेलन के दिन ही मैहर से इन्हें रिहा कर दिया गया। सम्मेलन प्रारंभ होने के कुछ पश्चात, यह नेता जब पहुंचे तो खुद डॉक्टर लोहिया ने जोशी, यमुना, श्रीनिवास जिंदाबाद जिंदाबाद का नारा लगवाकर इनका अभिवादन किया। समाजवादियों ने आंदोलन को इस मुकाम तक पहुंचा दिया कि सरकार को हारकर विंध्य प्रदेश का विलय रोकना पड़ा। पर विंध्य प्रदेश को सी क्लास प्रदेश घोषित कर दिया। जो कि सीधे केंद्र शासन आधीन था। केंद्र ने यहां चीफ कमिश्नर की जगह लेफ्टिनेंट गवर्नर की पदस्थापना कर दी। श्री के.सन्यानम को गवर्नर बनाकर भेजा । 

इसी बीच समाजवादियों ने नए नारे के साथ नया आंदोलन शुरू कर दिया। " विंध्य प्रदेश बचाएंगे, धरना सभा बनाएंगे। अंततः विंध्य प्रदेश की विधानसभा के लिए विधिवत चुनाव की घोषणा कर दी गई।

तत्कालीन विंध्य प्रदेश में विधानसभा की 60 सीटें थी।युवा तुर्क समाजवादियों ने नए जोश के साथ चुनाव की तैयारी शुरू कर दी ।तब तक कांग्रेस के मुकाबले समाजवादी दल स्थापित हो चुका था। सन 1954 में आचार्य जे.बी. कृपलानी ने किसान मजदूर प्रजा पार्टी का गठन कर दिया। अवधेश प्रताप सिंह मंत्रिमंडल में सदस्य रहे बैकुंठपुर के इलाकेदार हारौल नर्मदा प्रसाद सिंह को पार्टी की प्रदेश इकाई का अध्यक्ष बना दिया गया। विधानसभा के गठन की प्रक्रिया शुरू हो गई। चुनाव मैदान में कांग्रेस,सोशलिस्ट पार्टी, किसान मजदूर प्रजा पार्टी,राम राज्य परिषद प्रमुख राजनीतिक दल के रूप में उभरे ।

1952 के प्रथम लोकसभा व विधानसभा के चुनाव के कशमकश मे मुख्यरूप से कांग्रेस समाजवादी दल के बीच ही रही। लोकसभा में कांग्रेस के उम्मीदवार विजयी हुए, जबकि विधानसभा चुनाव में समाजवादियों को कुछ सफलता जरूर मिली। विंध्य प्रदेश के समय रीवा जिले में 11 विधानसभा क्षेत्र थे। मऊगंज विधानसभा क्षेत्र से 2 सदस्य निर्वाचित होते थे । अन्य विधानसभा क्षेत्र थे हनुमना, त्योंथर, गढ़ी ,सेमरिया, सिरमौर रीवा, रायपुर (,मुकुंदपुर) । इस चुनाव में कांग्रेस को 6 सीटों पर त्योंथर, गढ़ी,सेमरिया, सिरमौर मनगवां, गुढ़, रीवा रायपुर तथा मुकुंदपुर में विजय मिली। सोशलिस्ट पार्टी में 11 विधानसभा क्षेत्रों में 12 स्थानों पर अपने उम्मीदवार खड़े सोपा ने रीवा,मनगवां,मऊगंज की आरक्षित सीट जीत ली।  जगदीश जोशी रीवा से, श्रीनिवास तिवारी मनगवां से निर्वाचित हो गए। जबकि तीसरे प्रमुख नेता यमुना प्रसाद शास्त्री सिरमौर क्षेत्र से हारौल नर्वदा प्रसाद सिंह से चुनाव हार गए। हरौल की किसान मजदूर पार्टी को 1 सीट सिरमौर की मिली। शेष चुनाव हार गए। रीवा के प्रथम अजा विधायक मऊगंज से सोपा के सहदेई निर्वाचित हुए। मऊगंज सामान्य से निर्दलीय सोमेश्वर सिंह जीते। जबकि हनुमना की सीट रामराज परिषद की ईश्वराचार्य ने जीती। विंध्य प्रदेश की विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी पूर्ण बहुमत के साथ उभरी।कांग्रेस की राजनीति में पंडित शंभूनाथ शुक्ल सर्वमान्य नेता के रूप में उभरे। वहां कप्तान अवधेश प्रताप सिंह, राजभान सिंह तिवारी व यादवेंद्र सिंह का अवसान प्रारंभ हो गया। अवधेश प्रताप सिंह यद्दपि राज्यसभा के निर्वाचित हुए।

 दूसरी ओर समाजवादी नेता धूमकेतु तरह राजनीति में छा गए। सन 1952 में चुनाव जीतकर आए जगदीश जोशी व श्रीनिवास तिवारी दोनों के चुनाव की वैधता के उम्र को लेकर चुनौती दी गई। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि समाजवादी युवा तुर्कों को यहां की जनता ने सिर माथे पर बिठाया।

 विंध्य प्रदेश के 60 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस को 44 सीटें, सोशलिस्ट पार्टी को 11 सीटें,किसान मजदूर प्रजा पार्टी को 3 सीटें, रामराज परिषद को 2 सीटें मिली। विधायिका के इतिहास में जगदीश जोशी को सबसे कम उम्र का नेता प्रतिपक्ष बनने का गौरव प्राप्त हुआ। उनका चुनाव अदालत ने उम्र के सवाल पर रद्द कर दिया।पंडित शम्भूनाथ शुक्ला, विंध्य प्रदेश के प्रथम निर्वाचित मुख्यमंत्री बने। जबकि प्रजामंडल के अध्यक्ष रहे शिवानंद( सतना) प्रथम विधानसभा अध्यक्ष बने । पंडित शंभूनाथ शुक्ला मंत्रिमंडल के सदस्यों में थे लालाराम बाजपेई(गृह) श्री गोपाल शरण सिंह( कृषि लोक निर्माण) महेंद्र कुमार मानव (शिक्षा), दान बहादुर सिंह (वन)विस्तारोपरांत दशरथ जैन शामिल किए गए। इस विस्तार में बाजपेई व मानव हटा दिए गए।

 इस चुनाव में समाजवादी राजनीति को उस वक्त गहरा धक्का लगा, जब इसके शीर्ष नेता आचार्य नरेंद्र देव व जे.बी. कृपलानी चुनाव हार गए। डॉक्टर लोहिया और जयप्रकाश नारायण चुनाव लड़े ही नहीं। इसी निराश के बीच सन 1953 में पचमढ़ी में सोपा का सम्मेलन हुआ। यहां यह तय हुआ कि समान विचारधारा वाली पार्टियों का विलय होना चाहिए। सोपा की बंबई में कार्यसमिति की बैठक हुए, उसमें किसान मजदूर प्रजा पार्टी का विलय स्वीकार कर लिया गया।नए राजनीतिक दल का नाम प्रजा सोशलिस्ट पार्टी रखा गया। हारौल नर्मदा प्रसाद सिंह को विंध्य की इकाई का अध्यक्ष बना दिया गया। सन् 1955 में हैदराबाद सम्मेलन में प्रसोपा का पुनः विघटन हुआ।दो दल अस्तित्व में आए प्रसोपा व सोपा । प्रसोपा के नेता आचार्य नरेंद्र देव थे।व  सोपा के डॉक्टर राम मनोहर लोहिया। रीवा में यमुना प्रसाद शास्त्री ने प्रसोपा की कमान संभाली। जबकि सोपा जगदीश जोशी, श्रीनिवास तिवारी के नेतृत्व में संगठित हुआ।

 इसी बीच राज्यों के पुनर्गठन आयोग ने विंध्य प्रदेश, मध्य प्रांत और महाकौशल को मिलाकर मध्य प्रदेश के गठन का प्रारूप बना। विलीनीकरण की तलवार विंध्य प्रदेश पर लटकी हुई थी। सरदार पटेल ने इस पर दखल दिया। समाजवादी दल के नेताओं ने विलीनीकरण के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया। लोहिया का मार्गदर्शन इस आंदोलन को मिला। यहां कांग्रेस का पूर्ण बहुमत था। बुंदेलखंड क्षेत्र के प्रायः सभी जनप्रतिनिधि विलय के पक्ष में थे। कांग्रेस के स्थानीय प्रमुख नेता बिल के मसौदे पर दबाव बस या स्वेच्छा से दस्तखत कर आए।आंदोलन और उग्र हुआ जिसकी परिणति विधानसभा के भवन के भीतर प्रदर्शनकारियों ने बलात प्रवेश किया व सत्ताधारी दल के प्रतिनिधियों के साथ मारपीट व छीना झपटी हुई। प्रदर्शन और आंदोलन  विंध्य प्रदेश के अस्तित्व को नहीं बचा सका । नवंबर 1956 को मध्यप्रदेश की विधिवत घोषणा कर दी गई। प्रदेश का अस्तित्व विलीन हो गया।

साभार-

✍️लेखक:पं. कपिल देव तिवारी,रीवा (म0प्र0)

(यह पोस्ट वरिष्ठ विंध्यप्रदेश पुनरोदय सेनानी  श्री Umashankar Tiwari जी की काॅपी पेस्ट है )




-✍️✍️पंडित पंकज द्विवेदी, संचालक ब्लॉग

VINDHYA PRADESH THE LAND OF WHITE TIGER



No comments:

Post a Comment

रीवा_एयरपोर्ट के निर्माण से विन्ध्य के विकास को मिलेगा नया आयाम

👉#रीवा_एयरपोर्ट के निर्माण से विन्ध्य के विकास को मिलेगा नया आयाम 👉प्रधानमंत्री श्री Narendra Modi बनारस से वर्चुअली करेंगे रीवा एयरपोर्ट ...