मनुष्य और देवताओं में एक ही अंतर होता है। वो चिरायु होते हैं। उन्हे रोग नहीं जकड़ते। वो प्रदूषण से प्रभावित नहीं होते। वो वृद्ध नहीं होते लेकिन सवाल यह है कि उनके पास ऐसा क्या होता है जो मनुष्यों के पास नहीं होता। जवाब है कुछ ऐसी चमत्कारी आयुर्वेदिक औषधियां जो दुर्लभ हैं और मनुष्यों की सामान्य पहुंच से दूर होतीं हैं। ऐसी ही एक जड़ी बूटी का नाम है सोमवल्ली। यह मप्र के रीवा जिले के जंगलों में पाई जाती है।
सोमवल्ली को औषधियों की रानी भी कहते है। प्राचीन ग्रंथों, वेदों में सोमवल्ली के महत्व एवं उपयोगिता का व्यापक उल्लेख मिलता है। अनादिकाल से देवी देवताओं एवं मुनियों को चिरायु बनाने और उन्हें बल प्रदान करने वाला पौधा है सोमवल्ली। इसे महासोम, अंसुमान, रजत्प्रभा, कनियान, कनकप्रभा, प्रतापवान, स्वयंप्रभ, स्वेतान, चन्द्रमा, गायत्र, पवत, जागत, साकर आदि नामो से जानते हैं।
इसका वानस्पतिक नाम Sarcostemma acidum बताया जाता है। इसकी कई तरह की प्रजातियाँ होती हैं । इस पौधे की खासियत है कि इसमें पत्ते नहीं होते । यह पौधा सिर्फ डंठल के आकार में लताओं के समान है। हरे रंग के डंठल वाले इस पौधे को सोमवल्ली लता भी कहा जाता है। सोम की लताओं से निकले रस को सोमरस कहा जाता है । उल्लेखनीय है कि यह न तो भांग है और न ही किसी प्रकार की नशे की पत्तियाँ। सोम लताएँ पर्वत श्रृंखलाओं में पाई जातीं हैं। राजस्थान के अर्बुद, उड़ीसा के महेंद्र गिरि, विंध्यांचल, मलय आदि पर्वतीय क्षेत्रों में इसकी लताओं के पाये जाने का जिक्र है। कुछ विद्वान मानते हैं कि अफगानिस्तान की पहाड़ियों पर ही सोम का पौधा पाया जाता है। यह गहरे बादामी रंग का पौधा है।
कोई भी व्यक्ति देव श्रेणी में पहुंच सकता है
समस्त जड़ी बूटियों में सोम जिसे संजीवनी बूटी के रूप में जानते है, एक मात्र इतनी महत्त्वपूर्ण है जिससे आठो प्रकार के ऐश्वर्य प्राप्त किये जा सकते हैं । आगे विशेषता बताते हुए कहा है कि अगर कोई भी जहरीला जानवर काट ले तो इस जड़ी का एक तोला चूर्ण शहद में मिलाकर लेने से कैसा भी जहर उतर जाता है । दूसरा प्रयोग बताते हुए कहा कि इस जड़ी का एक तोला चूर्ण शहद के साथ मिलाकर नित्य 30 दिनों तक सेवन करे तो किसी भी व्यक्ति का कायाकल्प हो जाता है। मांस पेशीय सुदृढ़ होकर शरीर की पुरानी चमड़ी उतर जाती है और उसके स्थान पर नयी चमड़ी निकल आती है।
जीवन की उच्चता प्राप्त करे "सफलता का राज श्रद्धा, धैर्य और विश्वास" कमजोर नेत्र ज्योति भी बढ़ जाती है और तो और कम सुनाई देने की समस्या ख़त्म होकर कानो से पूरा सुनाई देने लगता है और व्यक्ति हर प्रकार से नवीनता को प्राप्त कर लेता है । नागार्जुन के शिष्य समश्रुवा ने तो अपना पूरा जीवन ही इस संजीवनी के नए नए प्रयोगो में खपा दिया। जीवन के अंत समय में उसने कहा "आकाश के तारो को गिना जा सकता है मगर इस जड़ी के प्रभाव और महत्त्व को नहीं गिना जा सकता।" उसने बताया "इस प्रयोग के माध्यम से जमीन से ऊपर हवा में उठा जा सकता है। व्यक्ति वायु वेग से एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा सकता है।" उसने आगे कहा कि "मुझे कुछ और समय मिलता तो मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि इसके प्रभाव से व्यक्ति अजर अमर हो सकता है क्योकि मृत्यु इससे नियंत्रण में रहती है। अतः आयुर्वेद के लिए यह औषधि वरदान से कम नहीं है।
रीवा के क्योटी, चचाई की घाटियों में पायी जाती है विश्व की दुर्लभतम औषधि सोमबल्ली, पावन घिनौची धाम "पियावन" में भी है मिलने की संभावना"
कहा जाता है कि यह दुर्लभतम औषधि आज भी रीवा के क्योटी एवं चचाई जलप्रपात की घाटियों में एवं कुण्ड के आस पास बहुतायत मात्रा में पाई जाती है ।
छह वर्ष पहले जैव विविधता बोर्ड, मध्यप्रदेश शासन ने क्योटी को जैव विविधता संरक्षित क्षेत्र घोषित करने वन मंडल रीवा से माँगा था प्रस्ताव
रीवा के क्योटी में सोमबल्ली, मोरशिखा एवं पथरचटा जैसी दुर्लभतम औषधियाँ प्रचुर मात्रा में पायी जाती हैं। मध्यप्रदेश राज्य जैव विविधता बोर्ड, भोपाल ने उपरोक्त औषधियों के बिना अनुमति व्यापारिक उपयोग हेतु संग्रहण प्रतिबंधित किया हुआ है। साथ ही संग्रहण करते पाये जाने पर दंडात्मक कार्रवाई का भी प्रावधान है।
--✍️✍️ पंडित पंकज द्विवेदी संचालक ब्लॉग
Vindhya pradesh the land of white tiger
सोमवल्ली को औषधियों की रानी भी कहते है। प्राचीन ग्रंथों, वेदों में सोमवल्ली के महत्व एवं उपयोगिता का व्यापक उल्लेख मिलता है। अनादिकाल से देवी देवताओं एवं मुनियों को चिरायु बनाने और उन्हें बल प्रदान करने वाला पौधा है सोमवल्ली। इसे महासोम, अंसुमान, रजत्प्रभा, कनियान, कनकप्रभा, प्रतापवान, स्वयंप्रभ, स्वेतान, चन्द्रमा, गायत्र, पवत, जागत, साकर आदि नामो से जानते हैं।
इसका वानस्पतिक नाम Sarcostemma acidum बताया जाता है। इसकी कई तरह की प्रजातियाँ होती हैं । इस पौधे की खासियत है कि इसमें पत्ते नहीं होते । यह पौधा सिर्फ डंठल के आकार में लताओं के समान है। हरे रंग के डंठल वाले इस पौधे को सोमवल्ली लता भी कहा जाता है। सोम की लताओं से निकले रस को सोमरस कहा जाता है । उल्लेखनीय है कि यह न तो भांग है और न ही किसी प्रकार की नशे की पत्तियाँ। सोम लताएँ पर्वत श्रृंखलाओं में पाई जातीं हैं। राजस्थान के अर्बुद, उड़ीसा के महेंद्र गिरि, विंध्यांचल, मलय आदि पर्वतीय क्षेत्रों में इसकी लताओं के पाये जाने का जिक्र है। कुछ विद्वान मानते हैं कि अफगानिस्तान की पहाड़ियों पर ही सोम का पौधा पाया जाता है। यह गहरे बादामी रंग का पौधा है।
कोई भी व्यक्ति देव श्रेणी में पहुंच सकता है
समस्त जड़ी बूटियों में सोम जिसे संजीवनी बूटी के रूप में जानते है, एक मात्र इतनी महत्त्वपूर्ण है जिससे आठो प्रकार के ऐश्वर्य प्राप्त किये जा सकते हैं । आगे विशेषता बताते हुए कहा है कि अगर कोई भी जहरीला जानवर काट ले तो इस जड़ी का एक तोला चूर्ण शहद में मिलाकर लेने से कैसा भी जहर उतर जाता है । दूसरा प्रयोग बताते हुए कहा कि इस जड़ी का एक तोला चूर्ण शहद के साथ मिलाकर नित्य 30 दिनों तक सेवन करे तो किसी भी व्यक्ति का कायाकल्प हो जाता है। मांस पेशीय सुदृढ़ होकर शरीर की पुरानी चमड़ी उतर जाती है और उसके स्थान पर नयी चमड़ी निकल आती है।
जीवन की उच्चता प्राप्त करे "सफलता का राज श्रद्धा, धैर्य और विश्वास" कमजोर नेत्र ज्योति भी बढ़ जाती है और तो और कम सुनाई देने की समस्या ख़त्म होकर कानो से पूरा सुनाई देने लगता है और व्यक्ति हर प्रकार से नवीनता को प्राप्त कर लेता है । नागार्जुन के शिष्य समश्रुवा ने तो अपना पूरा जीवन ही इस संजीवनी के नए नए प्रयोगो में खपा दिया। जीवन के अंत समय में उसने कहा "आकाश के तारो को गिना जा सकता है मगर इस जड़ी के प्रभाव और महत्त्व को नहीं गिना जा सकता।" उसने बताया "इस प्रयोग के माध्यम से जमीन से ऊपर हवा में उठा जा सकता है। व्यक्ति वायु वेग से एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा सकता है।" उसने आगे कहा कि "मुझे कुछ और समय मिलता तो मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि इसके प्रभाव से व्यक्ति अजर अमर हो सकता है क्योकि मृत्यु इससे नियंत्रण में रहती है। अतः आयुर्वेद के लिए यह औषधि वरदान से कम नहीं है।
रीवा के क्योटी, चचाई की घाटियों में पायी जाती है विश्व की दुर्लभतम औषधि सोमबल्ली, पावन घिनौची धाम "पियावन" में भी है मिलने की संभावना"
कहा जाता है कि यह दुर्लभतम औषधि आज भी रीवा के क्योटी एवं चचाई जलप्रपात की घाटियों में एवं कुण्ड के आस पास बहुतायत मात्रा में पाई जाती है ।
छह वर्ष पहले जैव विविधता बोर्ड, मध्यप्रदेश शासन ने क्योटी को जैव विविधता संरक्षित क्षेत्र घोषित करने वन मंडल रीवा से माँगा था प्रस्ताव
रीवा के क्योटी में सोमबल्ली, मोरशिखा एवं पथरचटा जैसी दुर्लभतम औषधियाँ प्रचुर मात्रा में पायी जाती हैं। मध्यप्रदेश राज्य जैव विविधता बोर्ड, भोपाल ने उपरोक्त औषधियों के बिना अनुमति व्यापारिक उपयोग हेतु संग्रहण प्रतिबंधित किया हुआ है। साथ ही संग्रहण करते पाये जाने पर दंडात्मक कार्रवाई का भी प्रावधान है।
--✍️✍️ पंडित पंकज द्विवेदी संचालक ब्लॉग
Vindhya pradesh the land of white tiger
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