Friday, August 31, 2018

बांधवगढ़ का इतिहास

बांधवगढ़ का इतिहास ( विक्रम संवत 1234 से अब तक)उमरिया की सांस्कृतिक यात्रा काफी लंबी और पुरानी है इस संपूर्ण क्षेत्र का राजनीतिक प्रभुत्व मध्यकाल में बांधवगढ़  ही था बांधवगढ़ अपनी दुर्गमता के कारण अजेय था तथा सामाजिक दृष्टि से परवर्ती काल तक उपयोग में लाया जाता रहा बांधवगढ़ शब्द बांधव अर्थात बंधु या भाई और गढ़ अर्थात किला से मिलकर बना हैकिंवदन्ती है कि भगवान राम ने लंका पर नजर रखनेके लिए यह किला बनवाकर अपने भाई लक्ष्मण को दिया था  इस क्षेत्र का इतिहास काफी प्राचीन है जो तीसरी शताब्दी से प्रारंभ होता है उपलब्ध इतिहास के अनुसार तीसरी से पांचवी शताब्दी तक बांधवगढ़ किला वाकाटक वंश, 5वीं सदी के बाद सांगकारा, और उसके उपरांत कलचुरी राजपूतों के कब्जे में रहा यह किला बघेल राजवंशियों को दहेजके रूप में प्राप्त हुआ और 1494 तक उनके पास रहा|विक्रम संवत 1234 में गुजरात के महाराजा गणदेव सोलंकी के छोटे भाई सारंगदेव के नाती व्याघ्रदेव कैमोर पर्वत श्रेणी के पाद तल में स्थित ग्राम  भड़का जिला बांदा में गुजरात से आकर निवास करने लगे बाद में इन्होंने गहोरा को विजित किया| रतनपुर शाखा के कलचुरी वंश से संबंधित सामंत सोमदत्त की कन्या के साथ उनका विवाह हुआ इस वैवाहिक संबंध में बांधवगढ़ दुर्ग और उसके आसपास का क्षेत्र उन्हें दहेज में प्राप्त हुआसन् 1495 से 1520 ईस्वी तक यह  कुर्मवंशियों के पास रहा और इसके बाद पुनः बघेल शासक महाराजा वीरभानु सिंह ने सन 1535 में इस पर कब्जा कर लिया तब से यह किला बघेल शासकों के पास ही रहा महाराजा वीरभानु सिंह के समय प्रख्यात संत कवि कबीरदास जी ने अपना कुछ समय यहां पर बिताया महाराजा अकबर के समकालीन महाराजा रामचंद्र ने हुमायूं की बेगम को शेरशाह सूरी के द्वारा किए गए हमले के समय यहां पनाह दी थी जिससे उपकृत अकबर ने बांधवगढ़ किले के नाम पर चांदी का सिक्का जारी किया था बांधवगढ़ की प्राचीनता इस क्षेत्र में पाए गए कुषाणकालीन 751 सिक्कों से पुष्ट होती है, ई.पू. दूसरी-तीसरी शती में मघवंशी राजाओं के आधिपत्य के जकारी सिक्के तथा शिलालेखों के माध्यम से ज्ञात होता है कि बांधवगढ़ मघ नरेशों का राजनीतिक केंद्र रहा है बांधवगढ़ के मघ  शासकों ने कुषाणसत्ता का प्रबलविरोध किया पुरातत्व की दृष्टि से भी यह क्षेत्र अत्यंत समृद्ध रहा है बांधवगढ़ किले में स्थित मत्स्य कच्छप वाराह नृसिंह आदि अवतारों की जीवन्त प्रतिमाएं पथरहटा सिंहपुर बिरसिंहपुर पाली आदि स्थानों से जैन धर्म के तीर्थंकर मूर्ति अवशेष प्राप्त हुए हैंवर्ष 1617 में बघेल राजाओं ने अपनी राजधानी गोविंदगढ़ रीवा स्थानांतरित कर ली जिसके कारण किले और उसके आसपास की बस्तियां धीरे-धीरे वीरान होती गई और वर्ष 1935 में यह क्षेत्र पूरी तरह वीरान हो गया उसके बाद इस क्षेत्र को रीवा रियासत की शिकारगाह के रूप में संरक्षण मिला और यह बाघ क्षेत्र के रूप में प्रसिद्ध हुआ बांधवगढ़ पहाड़ के आसपास 32 छोटी बड़ी पहाड़ियां इसकी नैसर्गिक सुंदरता में चार चांदलगाती हैं
महाराजा मार्तण्ड सिंह जू देव के प्रयाश के कारण बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान 1968 में बना। बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान में मुख्यत: साल बांस एवं मिश्रित बन पाए जाते हैं इसके अतिरिक्त यहां इन वन क्षेत्रों के बीच पाएजाने वाले दलदली घास के मैदान शाकाहारी वन्य प्राणियों की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण वासस्थल हैं|

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