Friday, May 22, 2020

रीवा के जंगलों में है लम्बी आयु प्रदान करने वाली दुर्लभ औषधि सोमवल्ली

मनुष्य और देवताओं में एक ही अंतर होता है। वो चिरायु होते हैं। उन्हे रोग नहीं जकड़ते। वो प्रदूषण से प्रभावित नहीं होते। वो वृद्ध नहीं होते लेकिन सवाल यह है कि उनके पास ऐसा क्या होता है जो मनुष्यों के पास नहीं होता। जवाब है कुछ ऐसी चमत्कारी आयुर्वेदिक औषधियां जो दुर्लभ हैं और मनुष्यों की सामान्य पहुंच से दूर होतीं हैं। ऐसी ही एक जड़ी बूटी का नाम है सोमवल्ली। यह मप्र के रीवा जिले के जंगलों में पाई जाती है।




सोमवल्ली को औषधियों की रानी भी कहते है। प्राचीन ग्रंथों, वेदों में सोमवल्ली के महत्व एवं उपयोगिता का व्यापक उल्लेख मिलता है। अनादिकाल से देवी देवताओं एवं मुनियों को चिरायु बनाने और उन्हें बल प्रदान करने वाला पौधा है सोमवल्ली। इसे महासोम, अंसुमान, रजत्प्रभा, कनियान, कनकप्रभा, प्रतापवान, स्वयंप्रभ, स्वेतान, चन्द्रमा, गायत्र, पवत, जागत, साकर आदि नामो से जानते हैं।

इसका वानस्पतिक नाम Sarcostemma acidum बताया जाता है। इसकी कई तरह की प्रजातियाँ होती हैं । इस पौधे की खासियत है कि इसमें पत्ते नहीं होते । यह पौधा सिर्फ डंठल के आकार में लताओं के समान है। हरे रंग के डंठल वाले इस पौधे को सोमवल्ली लता भी कहा जाता है। सोम की लताओं से निकले रस को सोमरस कहा जाता है । उल्लेखनीय है कि यह न तो भांग है और न ही किसी प्रकार की नशे की पत्तियाँ। सोम लताएँ पर्वत श्रृंखलाओं में पाई जातीं हैं। राजस्थान के अर्बुद, उड़ीसा के महेंद्र गिरि, विंध्यांचल, मलय आदि पर्वतीय क्षेत्रों में इसकी लताओं के पाये जाने का जिक्र है। कुछ विद्वान मानते हैं कि अफगानिस्तान की पहाड़ियों पर ही सोम का पौधा पाया जाता है। यह गहरे बादामी रंग का पौधा है।

कोई भी व्यक्ति देव श्रेणी में पहुंच सकता है
समस्त जड़ी बूटियों में सोम जिसे संजीवनी बूटी के रूप में जानते  है, एक मात्र इतनी महत्त्वपूर्ण है  जिससे आठो प्रकार के ऐश्वर्य प्राप्त किये जा सकते हैं । आगे विशेषता बताते हुए कहा है कि अगर कोई भी जहरीला जानवर काट ले तो इस जड़ी का एक तोला चूर्ण शहद में मिलाकर लेने से कैसा भी जहर उतर जाता है । दूसरा प्रयोग बताते हुए कहा कि इस जड़ी का एक तोला चूर्ण शहद के साथ मिलाकर नित्य 30 दिनों तक सेवन करे तो किसी भी  व्यक्ति का कायाकल्प हो जाता है। मांस पेशीय सुदृढ़ होकर  शरीर की पुरानी चमड़ी उतर जाती है और उसके स्थान पर नयी चमड़ी निकल आती है।

जीवन की उच्चता प्राप्त करे "सफलता का राज श्रद्धा, धैर्य और विश्वास" कमजोर नेत्र ज्योति भी बढ़ जाती है और तो और कम सुनाई देने की समस्या ख़त्म होकर कानो से पूरा सुनाई देने लगता है और व्यक्ति हर प्रकार से नवीनता को प्राप्त कर लेता है । नागार्जुन के शिष्य समश्रुवा ने तो अपना पूरा जीवन ही इस संजीवनी के नए नए प्रयोगो में खपा दिया। जीवन के अंत समय में उसने कहा "आकाश के तारो को गिना जा सकता है मगर इस जड़ी के प्रभाव और महत्त्व को नहीं गिना जा सकता।" उसने बताया "इस प्रयोग के माध्यम से जमीन से ऊपर हवा में उठा जा सकता है। व्यक्ति वायु वेग से एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा सकता है।" उसने आगे कहा कि "मुझे कुछ और समय मिलता तो मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि इसके प्रभाव से व्यक्ति अजर अमर हो सकता है क्योकि मृत्यु इससे नियंत्रण में रहती है। अतः आयुर्वेद के लिए यह औषधि वरदान से कम नहीं है।

रीवा के क्योटी, चचाई की घाटियों में पायी जाती है विश्व की दुर्लभतम औषधि सोमबल्ली, पावन घिनौची धाम "पियावन" में भी है मिलने की संभावना"

कहा जाता है कि यह दुर्लभतम औषधि आज भी रीवा के क्योटी एवं चचाई जलप्रपात की घाटियों में एवं कुण्ड के आस पास बहुतायत मात्रा में पाई जाती है ।

छह  वर्ष पहले जैव विविधता बोर्ड, मध्यप्रदेश शासन ने क्योटी को जैव विविधता संरक्षित क्षेत्र घोषित करने वन मंडल रीवा से माँगा था प्रस्ताव

रीवा के क्योटी में सोमबल्ली, मोरशिखा एवं पथरचटा जैसी दुर्लभतम औषधियाँ प्रचुर मात्रा में पायी जाती हैं। मध्यप्रदेश राज्य जैव विविधता बोर्ड, भोपाल ने उपरोक्त औषधियों के बिना अनुमति व्यापारिक उपयोग हेतु संग्रहण प्रतिबंधित किया हुआ है। साथ ही संग्रहण करते पाये जाने पर दंडात्मक कार्रवाई का भी प्रावधान है।

--✍️✍️ पंडित पंकज द्विवेदी  संचालक ब्लॉग
Vindhya pradesh the land of white tiger

Monday, May 18, 2020

विंध्यप्रदेश विधानसभा


15 अगस्‍त, 1947 के पूर्व देश में कई छोटी-बड़ी रियासतें एवं देशी राज्‍य अस्तित्‍व में थे। स्‍वाधीनता पश्‍चात् उन्‍हें स्‍वतंत्र भारत में विलीन और एकीकृत किया गया। 26 जनवरी, 1950 को संविधान लागू होने के बाद देश में सन् 1952 में पहले आम चुनाव हुए, जिसके कारण संसद एवं विधान मण्‍डल कार्यशील हुए। प्रशासन की दृष्टि से इन्‍हें श्रेणियों में विभाजित किया गया था। सन् 1956 में राज्‍यों के पुनर्गठन  के फलस्‍वरूप 1 नवंबर, 1956 को नया राज्‍य मध्‍यप्रदेश अस्तित्‍व में आया। इसके घटक राज्‍य मध्‍यप्रदेश, मध्‍यभारत, विन्‍ध्‍य प्रदेश एवं भोपाल थे, जिनकी अपनी विधान सभाएं थीं।
                    पुनर्गठन के फलस्‍वरूप सभी चारों विधान सभाएं एक विधान सभाएं एक विधान सभा में समाहित हो गईं। अत: 1 नवंबर, 1956 को पहली मध्‍यप्रदेश विधान सभा अस्तित्‍व में आई। इसका पहला और अंतिम अधिवेशन 17 दिसम्‍बर, 1956 से 17 जनवरी, 1957 के बीच संपन्‍न हुआ।
                 

विन्‍ध्‍य प्रदेश विधान सभा
                    4 अप्रैल, 1948 को विन्‍ध्‍यप्रदेश की स्‍थापना हुई और इसे ''ब'' श्रेणी के राज्‍य का दर्जा दिया गया। इसके राजप्रमुख श्री मार्तण्‍ड सिंह हुए। सन् 1950 में यह राज्‍य ''ब'' से ''स'' श्रेणी में कर दिया गया। सन् 1952 के आम चुनाव में यहां की विधान सभा के लिए 60 सदस्‍य चुनें गये, जिसके अध्‍यक्ष श्री शिवानन्‍द थे। 1 मार्च, 1952 से यह राज्‍य उप राज्‍यपाल का प्रदेश बना दिया गया। पं. शंभूनाथ शुक्‍ल उसके मुख्‍यमंत्री बने। विन्‍ध्‍यप्रदेश विधान सभा की पहली बैठक 21 अप्रैल, 1952 को हुई। इसका कार्यकाल लगभग साढ़े चार वर्ष रहा और लगभग 170 बैठकें हुई। श्री श्‍याम सुंदर 'श्‍याम' इस विधान सभा के उपाध्‍यक्ष रहे।




(तत्‍कालीन विन्‍ध्‍यप्रदेश की विधान सभा का रीवा स्थित भवन)


केन्द्रीय सरकार के संरक्षण और दायित्व के आधार पर और श्री वी.पी.मेनन सचिव (रियासत संबंधी) भारत सरकार के परामर्श से  दिनांक १२ मार्च १९४८ को बुंदेलखंड और बघेलखंड के ३५ राजाओं ने मिलकर एक प्रसंविदा ( covenant ) तैयार किया जिसके अनुसार बघेलखंड-बुंदेलखंड की ३५ स्वतंत्र रियासतों ने एक यूनियन बनाने का निर्णय लिया जिसका नाम ‘’यूनाइटेड स्टेट ऑफ विंध्य प्रदेश’’ रखा गया था. रीवा राजा राज प्रमुख और पन्ना के राजा उप राज प्रमुख बनाए गए .दिनांक ४ अप्रैल १९४८ से इस नवीन राज्य का कार्य संचालन किया गया . “यूनाइटेड स्टेट ऑफ विंध्य प्रदेश” के राजप्रमुख को उच्च विधिकारी अधिकार दिए गए जो संघटित होने वाली देशी रियासतों के शासकों ने प्रसंविदा के अनुसार स्वीकार किया था.राज प्रमुख ने इस प्रदत्त अधिकार को अमल में लाते हुए राजस्व कानून को छोड़कर, रीवा रियासत के अन्य सभी क़ानून पूरे विंध्य प्रदेश में लागू कर दिए.सन १९४८ और १९४९ में ७२ आर्डिनेंस भी,जिन्हें क़ानून की मान्यता दी गयी,विंध्य प्रदेश में लागू हुए.
           “यूनाइटेड स्टेट ऑफ विंध्य प्रदेश” अधिक समय तक अपना कार्य नहीं कर सका .दिनांक २६ सितम्बर सन १९४९ को भारत सरकार और विंध्य प्रदेश की रियासतों के शासकों के मध्य एक एग्रीमेंट हुआ जिसके अनुसार १२ मार्च १९४८ का प्रसंविदा (covenant ) रद्द कर दिया गया और यूनाइटेड स्टेट ऑफ विंध्य प्रदेश १ जनवरी १९५० से समाप्त कर दिया गया .सभी ३५ रियासतों ने अपनी सत्ता,सारी शक्तियां और क्षेत्राधिकार  भारत सरकार को सौंप दिए .
          केंद्रीय सरकार ने विंध्य प्रदेश (एडमिनिस्ट्रेशन )आर्डर १९५० पारित किया जिसके तहत वह सभी क़ानून जो ३१ दिसंबर १९४९ तक विंध्य प्रदेश में लागू थे यथावत लागू रखे गए, जब तक वह सक्षम विधान सभा द्वारा संशोधित या निरसित न किये जायें . १६ अप्रैल १९५० से विंध्य प्रदेश पार्ट ‘‘सी’’ स्टेट हो गया और केन्द्रीय शासित प्रदेश बना. जनवरी ५० से जनवरी ५२ तक यह चीफ कमिश्नर के आधीन रहा..पार्ट सी स्टेट्स (लॉज) एक्ट १९५० के अनुसार २६० केन्द्रीय अधिनियम और अध्यादेश विंध्य प्रदेश में लागू कर दिए गए .इससे मिलते जुलते या तदनुरूप पहले से ही लागू अधिनियम निरस्त कर दिए गए तथा पार्ट ए स्टेट के ८ अधिनियम भी लागू कर दिए गए . १ मार्च १९५२ को श्री के. संथानम विंध्य प्रदेश के उपराज्यपाल हुए. पार्ट ‘‘सी’’ एक्ट में विधान सभा गठित करने का अधिकार था. अतः विंध्य प्रदेश में  अप्रैल १९५२ में विधान सभा बनी, जिसकी प्रथम बैठक दिनांक २१ अप्रैल १९५२ से  प्रारम्भ हुई.



          विंध्य प्रदेश विधान सभा ने अपने कार्यकाल में कुल ४४ अधिनियम बनाए . विंध्य प्रदेश में छोटी बड़ी जागीरें मिलाकर कुल २२०० जागीरें थीं. पवाईदार काश्तकारों और शिकमी काश्तकारों को सीर की जमीन से मनमाने ढंग से बेदखल कर देते थे और उन्हें बहुत परेशान करते थे.राज्य शासन के पास इस प्रकार की हजारों शिकायतें थीं .विधान सभा में सन १९५२ में विंध्य प्रदेश सीर  (बेदखली रोकने के लिए) विधेयक १९५२  पारित हुआ ,जिसके अनुसार पवाईदारों पर रोक लगाईं गयी जिससे किसानों को राहत मिली. इसी वर्ष जागीरदारी उन्मूलन एवं भूमि सुधार अधिनियम बना जिसने इस भू-भाग में एक सामाजिक क्रान्ति की. कृषि व्यवस्था में आमूल परिवर्तन हुआ .किसान तथा सरकार  के बीच सीधा संपर्क स्थापित हुआ .भूमि को जोतने वाला भूमि का मालिक बना .जागीरदारी तथा पवाईदारी व्यवस्था उचित प्रतिकार देकर समाप्त कर दी गयी.१ जुलाई १९५४ से सभी २२०० छोटी बड़ी जागीरें समाप्त कर सरकार ने अपने आधीन में ले लीं.
        विधान सभा ने सन १९५५ में भूमि राजस्व और काश्तकारी अधिनियम स्वीकार किया . इसके अनुसार राजस्व और कृषि व्यवस्था में सुधार हुआ .काश्तकारों को अधिकार मिले .प्रदेश के विभिन्न भागों में प्रचलित कानूनों में एकरूपता आई और किसानों की हालत सुधरी.
     विधान सभा ने प्राथमिक शिक्षा विधेयक स्वीकार किया और राज्य शासन को प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य कर देने को अधिकृत किया .स्वायत्त शासन के क्षेत्र में ग्राम पंचायत और नगर पालिका अधिनियम बने तथा १९५६ में भूदान यज्ञ अधिनियम बना जिसने आचार्य विनोबा भावे के भूदान आंदोलन को विधिमत मान्यता प्रदान कर दान में प्राप्त हुई भूमि की कानूनी व्यवस्था की.
       सदन की कुल १७० बैठकें हुईं. विधान सभा ने समितियों के माध्यम से प्रशंसनीय कार्य किया. विशेषाधिकार समिति,प्रार्थना पत्र समिति,आश्वासन समिति, सार्वजनिक लेखा समिति,प्राक्कलन समिति,वित्त समिति और नियमावली समिति  ने अत्यंत परिश्रम से समय समय पर अपने प्रतिवेदन प्रस्तुत किये.
        विधान सभा में कुछ अविस्मरणीय घटनाएं हुईं . राज्य शासन ने सन १९५२ में विधान सभा के सदस्यों को जिला सलाहकार समिति का सदस्य मनोनीत किया और उन्हें दैनिक भत्ता व  यात्रा व्यय मिलने लगा . विधान सभा में प्रश्न उठाया गया और यह लाभ का पद माना गया और अधिकाँश सदस्य निर्योग्य होने की स्थिति में आ गए . लोक सभा ने विंध्य प्रदेश लेजिस्लेटिव एसेम्बली प्रेवेंशन आफ डिस्क्वालिफिकेशन एक्ट १९५३ दिनांक २८-५-१९५३ को पारित कर उसे २६ अप्रैल १९५२ से लागू किया और सदस्य निर्योग्य होने से बच गए .
        विधान सभा में १६ नवंबर १९५४ को जब काश्तकारी क़ानून पर बहस चल रही थी , प्रदर्शनकारियों की भीड़ विधान सभा के अहाते में पुलिस का घेरा तोड़ कर घुस आयी. दिनांक २३-११-१९५५ को जब  विधान सभा में राज्य पुनर्गठन आयोग के प्रतिवेदन पर विचार हो रहा था , विन्ध्य विलय विरोधी प्रदर्शनकारी न केवल विधान सभा के अहाते में आ गए बल्कि वह सब सदन में भी प्रवेश पा गए और सदस्यों के साथ मारपीट की . इन दोनों घटनाओं पर विशेषाधिकार समिति का निर्णय तथा प्रतिवेदन संसदीय इतिहास में सदैव अमर रहेगा .
         विधान सभा की सभी बैठकें सजीव व सफल रहीं . विवाद का स्तर ऊंचा और सदन की मर्यादा के अनुकूल रहा .सभी सदस्यों ने सदन की कार्यवाही में रूचि ली और उसकी गरिमा रखी तथा अनुशासन में बंधे रहे. लोगों को भ्रम था कि विंध्य प्रदेश में घोर अशिक्षा और सामंतवादी परम्पराओं के कारण प्रजातांत्रिक शासन चलना संभव न होगा परन्तु सदस्यों ने अपनी योग्यता , लगन और परिश्रम से इस भ्रम को झुठला दिया .
         सदन में प्रजातांत्रिक परम्पराओं को बनाने और कायम रखने में पंडित शम्भूनाथ शुक्ल , सरदार नर्मदा प्रसाद सिंह , श्री जगदीशचंद्र जोशी , श्री श्रीनिवास तिवारी , श्री रामकिशोर शुक्ल , श्री चंद्रप्रताप तिवारी , श्री दशरथ जैन, श्री रामाधार पांडे और श्री सरस्वती प्रसाद पटेल आदि ने अपना महान योगदान दिया . विधान सभा सचिवालय को श्री रमेशचंद्र श्रीवास्तव के रूप में कुशल सचिव प्राप्त हुए थे . उन्होंने सचिवालय का संगठन और संचालन बड़ी दक्षता से किया तथा सदन के कार्य में सहायता दी .
           विधान सभा में कई बार कठिन समस्याएँ उत्पन्न हो गयीं जिसका हल निकालने में विंध्य प्रदेश के उपराज्यपाल श्री के. संथानम और भारत के प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने स्वयं दिलचस्पी लेकर सदन की मदद की .
           संसदीय प्रणाली की सफलता इस बात पर निर्भर है कि अध्यक्ष को सदन में बिना किसी पक्षपात और भय के अपना कर्तव्य पालन करना चाहिए . उसे किसी दबाव में न आना चाहिए .सदस्यों को अध्यक्ष के आदेश का तत्काल पालन करना चाहिए .उसके साथ विवाद में उलझना नहीं चाहिए . तभी सदन में अनुशासन रहेगा और वह प्रजातंत्र का पवित्र भवन कहलायेगा.
                                                 ( मध्य प्रदेश विधान सभा रजत जयन्ती स्मारक ग्रन्थ १९८१ से )
लेखक- श्री शिवानंद जी पूर्व विधानसभा अध्यक्ष, विंध्यप्रदेश 
साभार- शिवानंद सतना आरकाईब (Dr. P.N. Shrivastava)
--✍️✍️✍️  पंडित पंकज द्विवेदी   संचालक ब्लॉग
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Wednesday, May 13, 2020

विंध्यप्रदेश की पुनःस्थापना के प्रयास में विंध्यवासी - बघेली डिजिटल प्रमोटर और सपोर्टर श्रीवेन्द त्रिपाठी जी द्वारा विशेष जानकारी

जय विंध्य प्रदेश, जय बघेली॥
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विंध्य प्रदेश की पुनर्स्थापना के प्रयास में विंध्यवासी-  बघेली डिजिटल प्रमोटर और सपोर्टर श्रीवेन्द त्रिपाठी द्वारा विशेष जानकारी :

वर्तमान समय में विंध्य प्रदेश में कई ऐसे संगठन बन चुकें है. जिनका सपना विंध्य प्रदेश को पुनः स्थापित करने के साथ ही बघेली बोली को बघेली भाषा का दर्जा दिलाना है. इसके साथ ही विंध्य प्रदेश के बेरोजगारी की समस्या पर विषेश ध्यान देने के साथ ही भ्रष्टाचार मुक्त प्रदेश बनाने की भी रणनीति तैयार कर चुके हैं, ये संगठन रीवा सीधी से लेकर भोपाल, दिल्ली तक फैले हुए है. विंध्य प्रदेश की स्थापना के लिए इन्होंने उसका नक्सा (मैप) , जनसंख्या और क्षेत्रफल के साथ साथ उसके आय के साधन, खनिज संपदा इत्यादि पर भी पूरी शोध करने के बाद विंध्य प्रदेश की स्थापना की मांग कर रहे हैं जो कि सर्वथा उचित है.
विंध्य प्रदेश के विलीनीकरण के समय शहादत देने वाले वीरों को विंध्यवासी भूले नहीं है. और उनकी शहादत किसी भी कीमत पर बेकार नहीं जाने देगे. साथ ही इस मिसन में विंध्य प्रदेश के साहित्यकार, रंगकर्मी और मीडिया भी अपनी विशेष भूमिका अदा कर रहीं हैं कहने का तात्पर्य यह है कि कलमकार और कलाकार दोनों कंधा से कंधा मिलाकर प्रयासरत है
. विंध्य प्रदेश में सभी तरह के खनिज संपदा के मौजूद होने के बाद भी ये अपने अस्तित्व में नहीं है यह एक बहुत ही चिंता का विषय है. आज भी यहाँ पर बेरोजगारी अपने चरम सीमा पर है. लोग रोजी रोटी कमाने के लिए महानगरों की ओर पलायन करने को मजबूर है. जिसके कारण हमारी कला, संस्कृति, रीति रिवाज, परंपराये भी विलीन हो रही है. हमारे विंध्य प्रदेश में अपार प्राकृतिक संपदा भी है यहाँ तक कि ऐसी ऐसी संपदा है जो पूरे भारत में कहीं नहीं है समृद्धि का प्रतीक हीरा की खदानें भी विंध्य की धरातल पर विद्यमान है, कोयला के विसाल भंडार के साथ साथ पर्वत, नदी, और उपजाऊ भूमि की भी भरमार है, मौसम और जलवायु भी अब्बल दर्जे का है फिर भी विंध्य प्रदेश अपने अस्तित्व में क्यों नहीं है? यह एक विचारणीय  पहलू है. आखिर कब तक विंध्य प्रदेश के निवासी ये सब कुछ जानते हुए भी रोजी रोटी के लिए दर दर भटकता रहेगा...!
अब विंध्यवासी हर प्रयास के लिए तैयार है लेकिन विंध्य प्रदेश को अपने अस्तित्व में लायेंगे जरूर
जय विंध्य प्रदेश, जय बघेली॥

रीवा_एयरपोर्ट के निर्माण से विन्ध्य के विकास को मिलेगा नया आयाम

👉#रीवा_एयरपोर्ट के निर्माण से विन्ध्य के विकास को मिलेगा नया आयाम 👉प्रधानमंत्री श्री Narendra Modi बनारस से वर्चुअली करेंगे रीवा एयरपोर्ट ...