Monday, May 18, 2020

विंध्यप्रदेश विधानसभा


15 अगस्‍त, 1947 के पूर्व देश में कई छोटी-बड़ी रियासतें एवं देशी राज्‍य अस्तित्‍व में थे। स्‍वाधीनता पश्‍चात् उन्‍हें स्‍वतंत्र भारत में विलीन और एकीकृत किया गया। 26 जनवरी, 1950 को संविधान लागू होने के बाद देश में सन् 1952 में पहले आम चुनाव हुए, जिसके कारण संसद एवं विधान मण्‍डल कार्यशील हुए। प्रशासन की दृष्टि से इन्‍हें श्रेणियों में विभाजित किया गया था। सन् 1956 में राज्‍यों के पुनर्गठन  के फलस्‍वरूप 1 नवंबर, 1956 को नया राज्‍य मध्‍यप्रदेश अस्तित्‍व में आया। इसके घटक राज्‍य मध्‍यप्रदेश, मध्‍यभारत, विन्‍ध्‍य प्रदेश एवं भोपाल थे, जिनकी अपनी विधान सभाएं थीं।
                    पुनर्गठन के फलस्‍वरूप सभी चारों विधान सभाएं एक विधान सभाएं एक विधान सभा में समाहित हो गईं। अत: 1 नवंबर, 1956 को पहली मध्‍यप्रदेश विधान सभा अस्तित्‍व में आई। इसका पहला और अंतिम अधिवेशन 17 दिसम्‍बर, 1956 से 17 जनवरी, 1957 के बीच संपन्‍न हुआ।
                 

विन्‍ध्‍य प्रदेश विधान सभा
                    4 अप्रैल, 1948 को विन्‍ध्‍यप्रदेश की स्‍थापना हुई और इसे ''ब'' श्रेणी के राज्‍य का दर्जा दिया गया। इसके राजप्रमुख श्री मार्तण्‍ड सिंह हुए। सन् 1950 में यह राज्‍य ''ब'' से ''स'' श्रेणी में कर दिया गया। सन् 1952 के आम चुनाव में यहां की विधान सभा के लिए 60 सदस्‍य चुनें गये, जिसके अध्‍यक्ष श्री शिवानन्‍द थे। 1 मार्च, 1952 से यह राज्‍य उप राज्‍यपाल का प्रदेश बना दिया गया। पं. शंभूनाथ शुक्‍ल उसके मुख्‍यमंत्री बने। विन्‍ध्‍यप्रदेश विधान सभा की पहली बैठक 21 अप्रैल, 1952 को हुई। इसका कार्यकाल लगभग साढ़े चार वर्ष रहा और लगभग 170 बैठकें हुई। श्री श्‍याम सुंदर 'श्‍याम' इस विधान सभा के उपाध्‍यक्ष रहे।




(तत्‍कालीन विन्‍ध्‍यप्रदेश की विधान सभा का रीवा स्थित भवन)


केन्द्रीय सरकार के संरक्षण और दायित्व के आधार पर और श्री वी.पी.मेनन सचिव (रियासत संबंधी) भारत सरकार के परामर्श से  दिनांक १२ मार्च १९४८ को बुंदेलखंड और बघेलखंड के ३५ राजाओं ने मिलकर एक प्रसंविदा ( covenant ) तैयार किया जिसके अनुसार बघेलखंड-बुंदेलखंड की ३५ स्वतंत्र रियासतों ने एक यूनियन बनाने का निर्णय लिया जिसका नाम ‘’यूनाइटेड स्टेट ऑफ विंध्य प्रदेश’’ रखा गया था. रीवा राजा राज प्रमुख और पन्ना के राजा उप राज प्रमुख बनाए गए .दिनांक ४ अप्रैल १९४८ से इस नवीन राज्य का कार्य संचालन किया गया . “यूनाइटेड स्टेट ऑफ विंध्य प्रदेश” के राजप्रमुख को उच्च विधिकारी अधिकार दिए गए जो संघटित होने वाली देशी रियासतों के शासकों ने प्रसंविदा के अनुसार स्वीकार किया था.राज प्रमुख ने इस प्रदत्त अधिकार को अमल में लाते हुए राजस्व कानून को छोड़कर, रीवा रियासत के अन्य सभी क़ानून पूरे विंध्य प्रदेश में लागू कर दिए.सन १९४८ और १९४९ में ७२ आर्डिनेंस भी,जिन्हें क़ानून की मान्यता दी गयी,विंध्य प्रदेश में लागू हुए.
           “यूनाइटेड स्टेट ऑफ विंध्य प्रदेश” अधिक समय तक अपना कार्य नहीं कर सका .दिनांक २६ सितम्बर सन १९४९ को भारत सरकार और विंध्य प्रदेश की रियासतों के शासकों के मध्य एक एग्रीमेंट हुआ जिसके अनुसार १२ मार्च १९४८ का प्रसंविदा (covenant ) रद्द कर दिया गया और यूनाइटेड स्टेट ऑफ विंध्य प्रदेश १ जनवरी १९५० से समाप्त कर दिया गया .सभी ३५ रियासतों ने अपनी सत्ता,सारी शक्तियां और क्षेत्राधिकार  भारत सरकार को सौंप दिए .
          केंद्रीय सरकार ने विंध्य प्रदेश (एडमिनिस्ट्रेशन )आर्डर १९५० पारित किया जिसके तहत वह सभी क़ानून जो ३१ दिसंबर १९४९ तक विंध्य प्रदेश में लागू थे यथावत लागू रखे गए, जब तक वह सक्षम विधान सभा द्वारा संशोधित या निरसित न किये जायें . १६ अप्रैल १९५० से विंध्य प्रदेश पार्ट ‘‘सी’’ स्टेट हो गया और केन्द्रीय शासित प्रदेश बना. जनवरी ५० से जनवरी ५२ तक यह चीफ कमिश्नर के आधीन रहा..पार्ट सी स्टेट्स (लॉज) एक्ट १९५० के अनुसार २६० केन्द्रीय अधिनियम और अध्यादेश विंध्य प्रदेश में लागू कर दिए गए .इससे मिलते जुलते या तदनुरूप पहले से ही लागू अधिनियम निरस्त कर दिए गए तथा पार्ट ए स्टेट के ८ अधिनियम भी लागू कर दिए गए . १ मार्च १९५२ को श्री के. संथानम विंध्य प्रदेश के उपराज्यपाल हुए. पार्ट ‘‘सी’’ एक्ट में विधान सभा गठित करने का अधिकार था. अतः विंध्य प्रदेश में  अप्रैल १९५२ में विधान सभा बनी, जिसकी प्रथम बैठक दिनांक २१ अप्रैल १९५२ से  प्रारम्भ हुई.



          विंध्य प्रदेश विधान सभा ने अपने कार्यकाल में कुल ४४ अधिनियम बनाए . विंध्य प्रदेश में छोटी बड़ी जागीरें मिलाकर कुल २२०० जागीरें थीं. पवाईदार काश्तकारों और शिकमी काश्तकारों को सीर की जमीन से मनमाने ढंग से बेदखल कर देते थे और उन्हें बहुत परेशान करते थे.राज्य शासन के पास इस प्रकार की हजारों शिकायतें थीं .विधान सभा में सन १९५२ में विंध्य प्रदेश सीर  (बेदखली रोकने के लिए) विधेयक १९५२  पारित हुआ ,जिसके अनुसार पवाईदारों पर रोक लगाईं गयी जिससे किसानों को राहत मिली. इसी वर्ष जागीरदारी उन्मूलन एवं भूमि सुधार अधिनियम बना जिसने इस भू-भाग में एक सामाजिक क्रान्ति की. कृषि व्यवस्था में आमूल परिवर्तन हुआ .किसान तथा सरकार  के बीच सीधा संपर्क स्थापित हुआ .भूमि को जोतने वाला भूमि का मालिक बना .जागीरदारी तथा पवाईदारी व्यवस्था उचित प्रतिकार देकर समाप्त कर दी गयी.१ जुलाई १९५४ से सभी २२०० छोटी बड़ी जागीरें समाप्त कर सरकार ने अपने आधीन में ले लीं.
        विधान सभा ने सन १९५५ में भूमि राजस्व और काश्तकारी अधिनियम स्वीकार किया . इसके अनुसार राजस्व और कृषि व्यवस्था में सुधार हुआ .काश्तकारों को अधिकार मिले .प्रदेश के विभिन्न भागों में प्रचलित कानूनों में एकरूपता आई और किसानों की हालत सुधरी.
     विधान सभा ने प्राथमिक शिक्षा विधेयक स्वीकार किया और राज्य शासन को प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य कर देने को अधिकृत किया .स्वायत्त शासन के क्षेत्र में ग्राम पंचायत और नगर पालिका अधिनियम बने तथा १९५६ में भूदान यज्ञ अधिनियम बना जिसने आचार्य विनोबा भावे के भूदान आंदोलन को विधिमत मान्यता प्रदान कर दान में प्राप्त हुई भूमि की कानूनी व्यवस्था की.
       सदन की कुल १७० बैठकें हुईं. विधान सभा ने समितियों के माध्यम से प्रशंसनीय कार्य किया. विशेषाधिकार समिति,प्रार्थना पत्र समिति,आश्वासन समिति, सार्वजनिक लेखा समिति,प्राक्कलन समिति,वित्त समिति और नियमावली समिति  ने अत्यंत परिश्रम से समय समय पर अपने प्रतिवेदन प्रस्तुत किये.
        विधान सभा में कुछ अविस्मरणीय घटनाएं हुईं . राज्य शासन ने सन १९५२ में विधान सभा के सदस्यों को जिला सलाहकार समिति का सदस्य मनोनीत किया और उन्हें दैनिक भत्ता व  यात्रा व्यय मिलने लगा . विधान सभा में प्रश्न उठाया गया और यह लाभ का पद माना गया और अधिकाँश सदस्य निर्योग्य होने की स्थिति में आ गए . लोक सभा ने विंध्य प्रदेश लेजिस्लेटिव एसेम्बली प्रेवेंशन आफ डिस्क्वालिफिकेशन एक्ट १९५३ दिनांक २८-५-१९५३ को पारित कर उसे २६ अप्रैल १९५२ से लागू किया और सदस्य निर्योग्य होने से बच गए .
        विधान सभा में १६ नवंबर १९५४ को जब काश्तकारी क़ानून पर बहस चल रही थी , प्रदर्शनकारियों की भीड़ विधान सभा के अहाते में पुलिस का घेरा तोड़ कर घुस आयी. दिनांक २३-११-१९५५ को जब  विधान सभा में राज्य पुनर्गठन आयोग के प्रतिवेदन पर विचार हो रहा था , विन्ध्य विलय विरोधी प्रदर्शनकारी न केवल विधान सभा के अहाते में आ गए बल्कि वह सब सदन में भी प्रवेश पा गए और सदस्यों के साथ मारपीट की . इन दोनों घटनाओं पर विशेषाधिकार समिति का निर्णय तथा प्रतिवेदन संसदीय इतिहास में सदैव अमर रहेगा .
         विधान सभा की सभी बैठकें सजीव व सफल रहीं . विवाद का स्तर ऊंचा और सदन की मर्यादा के अनुकूल रहा .सभी सदस्यों ने सदन की कार्यवाही में रूचि ली और उसकी गरिमा रखी तथा अनुशासन में बंधे रहे. लोगों को भ्रम था कि विंध्य प्रदेश में घोर अशिक्षा और सामंतवादी परम्पराओं के कारण प्रजातांत्रिक शासन चलना संभव न होगा परन्तु सदस्यों ने अपनी योग्यता , लगन और परिश्रम से इस भ्रम को झुठला दिया .
         सदन में प्रजातांत्रिक परम्पराओं को बनाने और कायम रखने में पंडित शम्भूनाथ शुक्ल , सरदार नर्मदा प्रसाद सिंह , श्री जगदीशचंद्र जोशी , श्री श्रीनिवास तिवारी , श्री रामकिशोर शुक्ल , श्री चंद्रप्रताप तिवारी , श्री दशरथ जैन, श्री रामाधार पांडे और श्री सरस्वती प्रसाद पटेल आदि ने अपना महान योगदान दिया . विधान सभा सचिवालय को श्री रमेशचंद्र श्रीवास्तव के रूप में कुशल सचिव प्राप्त हुए थे . उन्होंने सचिवालय का संगठन और संचालन बड़ी दक्षता से किया तथा सदन के कार्य में सहायता दी .
           विधान सभा में कई बार कठिन समस्याएँ उत्पन्न हो गयीं जिसका हल निकालने में विंध्य प्रदेश के उपराज्यपाल श्री के. संथानम और भारत के प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने स्वयं दिलचस्पी लेकर सदन की मदद की .
           संसदीय प्रणाली की सफलता इस बात पर निर्भर है कि अध्यक्ष को सदन में बिना किसी पक्षपात और भय के अपना कर्तव्य पालन करना चाहिए . उसे किसी दबाव में न आना चाहिए .सदस्यों को अध्यक्ष के आदेश का तत्काल पालन करना चाहिए .उसके साथ विवाद में उलझना नहीं चाहिए . तभी सदन में अनुशासन रहेगा और वह प्रजातंत्र का पवित्र भवन कहलायेगा.
                                                 ( मध्य प्रदेश विधान सभा रजत जयन्ती स्मारक ग्रन्थ १९८१ से )
लेखक- श्री शिवानंद जी पूर्व विधानसभा अध्यक्ष, विंध्यप्रदेश 
साभार- शिवानंद सतना आरकाईब (Dr. P.N. Shrivastava)
--✍️✍️✍️  पंडित पंकज द्विवेदी   संचालक ब्लॉग
Vindhya pradesh the land of white tiger

3 comments:

  1. जातिवाद के लड़ाई मा विकास गुम हो गया

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    1. महोदय,मेरे ब्लॉग शिवानंद सतना आरकाईव से उपरोक्त लेख कापी पेस्ट करने का धन्यवाद.इस लेख के लेखक मेरे पिताजी श्री शिवानंद जी , विन्ध्य प्रदेश के पूर्व विधान सभा अध्यक्ष, हैं.कृपया इसका भी उल्लेख करें.

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    2. आदरणीय Dr.P.N.shrivastava सर आदरणीय श्री शिवानंद जी पूर्व विधानसभा अध्यक्ष विंध्यप्रदेश जी का उल्लेख कर दिया गया है। मार्गदर्शन करने के लिए धन्यवाद, अगर कोई गलती हुई हो हमें क्षमा करें। 🙏🙏🙏

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