घिनौची धाम पियावन: जहां झरना करता है शिव का जलाभिषेक
रीवा। घिनौची धाम, जिसे पियावन के नाम से जाना जाता है। यह अतुलनीय ऐतिहासिक, प्राकृतिक एवं धार्मिक पर्यटन स्थल मध्य प्रदेश के रीवा जिले से 42 किलोमीटर दूर सिरमौर की बरदहा घाटी में है। प्रकृति की अनुपम छटा के बीच यह धाम धरती से 200 फीट नीचे और लगभग 800 फीट चौड़ी प्रकृति की सुरम्य वादियों से घिरा हुआ है। यहां प्राकृतिक झरने का श्वेत जल भगवान भोलेनाथ का 12 महीने निरंतर जलाभिषेक करता है। जिसे देखना रोमांचकारी है।
यहां की खास बात जो इसे विशेष बनाती है वो है धरती से 200 फीट नीचे दो अद्भुत जल प्रपातों का संगम। जिसका आनंद जुलाई से सितंबर माह के मध्य लिया जा सकता है। साथ ही अति प्राचीन शिवलिंग और यहां पहाडिय़ों में उकेरे प्राचीन शैल चित्र भी हैं। चट्टानों में उकेरे गए प्रागैतिहासिक शैल चित्र, जो इस क्षेत्र की गौरव गाथा भी बताते हैं। दो अद्भुत सर्पिलाकार चट्टानें अपने आप में अद्भुत हैं। इसके आलावा मां पार्वती की साक्षात दिव्य प्रतिमा भी मौजूद है।
ब्रिटिश काल में हुई थी खोज
पावन घिनौची धाम की खोज का श्रेय जाता है सर गैरिक को। जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पहले डायरेक्टर जनरल अलेक्जेंडर कोनिन्घ्म के सहायक थे। कहानी थोड़ा रोचक है। सन 1883-84 में अलेक्जेंडर कोनिन्घ्म रीवा आए तो उन्होंने पावन घिनौची धाम का भी सर्वेक्षण किया। उन्होंने अपनी किताब रिपोर्ट ऑफ ए टूर इन बुंदेलखंड एण्ड रीवा इन 1883-84 एण्ड ए टूर इन रीवा, बुंदेलखंड, मालवा, ग्वालियर इन 1884-85Ó में पावन घिनौची धाम का उल्लेख दो पेजों में किया है। साथ ही उन्होंने ही पावन घिनौची धाम का नामकरण पियावनÓ किया था। वो लिखते हैं कि पियावन जो एक पवित्र स्थल है। छोटी सी घाटी में है। कैठुला से 6 मील की दूरी पर दक्षिण-पूर्व की तरफ एवं रीवा से 25 मील उत्तर-पूर्व की तरफ स्थित है
पियावन का बघेली भाषा में शाब्दिक अर्थ होता है, पानी पीने का स्थान। करीब एक मील की लम्बाई, 800 फीट की चौड़ाई एवं 200 फीट की उंचाई एवं दोनों तरफ प्राचीन चट्टानों से घिरा हुआ है।
अध्र्य का व्यास 14 इंच, लिखे थे अभिलेख
अलेक्जेंडर कोनिन्घ्म आगे लिखते हैं कि अध्र्य के ऊपर 6 लाइनों में कुछ अभिलेख लिखे हुए थे। जो कि मौसम के कारण बुरी तरह से खुदे हुए अक्षर के रूप में प्रतीत हो रहे थे। गैरिक ने इस अभिलेख का एक बड़ा फोटोग्राफ बनाया। यह अभिलेख बहुत कीमती एवं अतुलनीय था क्योंकि यह कल्चुरी राजकुमार गांगेय देव का एक मात्र अभिलेख था।जो महमूद गजनवी के समकालीन थे। यह अभिलेख इसलिए भी महत्वपूर्ण रूप से बहुत कीमती था क्योंकि यह चेदि वंश के कल्चुरी राजाओं का अधिराज्य भी प्रदर्शित करता था। जिनका राज्य विन्ध्य पर्वत श्रंखलाओं के उत्तर तक इलाहाबाद से सिर्फ 50 मील की दूरी तक था।
अंग्रेजो के जाने के बाद फिर सर्वेश सोनी जी के जूनून और अथक प्रयासों के बाद आज घिनौची धाम पियाबन में पर्यटन के लिए अपना नयी पहचान बना रहा है जो रीवा का प्रथम विकसित मनोरंजन क्षेत्र बन गया है।
ऐसे पहुंचा जा सकता है यहां
रीवा रेलवे स्टेशन पर उतरने के बाद पुराने बस स्टैंड से जवा जाने के लिए बस मिलती है। जो सिरमौर होते हुए बरदहा घाटी पहुंचाती है। यहां से करीब एक किमी. पैदल चलने के बाद घिनौचीधाम पहुंचा जा सकता है। यह स्थान पहाड़ों पर आच्छादित हरियाली के बीच पर्यटन का रोमांच पैदा करता है।
रीवा। घिनौची धाम, जिसे पियावन के नाम से जाना जाता है। यह अतुलनीय ऐतिहासिक, प्राकृतिक एवं धार्मिक पर्यटन स्थल मध्य प्रदेश के रीवा जिले से 42 किलोमीटर दूर सिरमौर की बरदहा घाटी में है। प्रकृति की अनुपम छटा के बीच यह धाम धरती से 200 फीट नीचे और लगभग 800 फीट चौड़ी प्रकृति की सुरम्य वादियों से घिरा हुआ है। यहां प्राकृतिक झरने का श्वेत जल भगवान भोलेनाथ का 12 महीने निरंतर जलाभिषेक करता है। जिसे देखना रोमांचकारी है।
यहां की खास बात जो इसे विशेष बनाती है वो है धरती से 200 फीट नीचे दो अद्भुत जल प्रपातों का संगम। जिसका आनंद जुलाई से सितंबर माह के मध्य लिया जा सकता है। साथ ही अति प्राचीन शिवलिंग और यहां पहाडिय़ों में उकेरे प्राचीन शैल चित्र भी हैं। चट्टानों में उकेरे गए प्रागैतिहासिक शैल चित्र, जो इस क्षेत्र की गौरव गाथा भी बताते हैं। दो अद्भुत सर्पिलाकार चट्टानें अपने आप में अद्भुत हैं। इसके आलावा मां पार्वती की साक्षात दिव्य प्रतिमा भी मौजूद है।
ब्रिटिश काल में हुई थी खोज
पावन घिनौची धाम की खोज का श्रेय जाता है सर गैरिक को। जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पहले डायरेक्टर जनरल अलेक्जेंडर कोनिन्घ्म के सहायक थे। कहानी थोड़ा रोचक है। सन 1883-84 में अलेक्जेंडर कोनिन्घ्म रीवा आए तो उन्होंने पावन घिनौची धाम का भी सर्वेक्षण किया। उन्होंने अपनी किताब रिपोर्ट ऑफ ए टूर इन बुंदेलखंड एण्ड रीवा इन 1883-84 एण्ड ए टूर इन रीवा, बुंदेलखंड, मालवा, ग्वालियर इन 1884-85Ó में पावन घिनौची धाम का उल्लेख दो पेजों में किया है। साथ ही उन्होंने ही पावन घिनौची धाम का नामकरण पियावनÓ किया था। वो लिखते हैं कि पियावन जो एक पवित्र स्थल है। छोटी सी घाटी में है। कैठुला से 6 मील की दूरी पर दक्षिण-पूर्व की तरफ एवं रीवा से 25 मील उत्तर-पूर्व की तरफ स्थित है
पियावन का बघेली भाषा में शाब्दिक अर्थ होता है, पानी पीने का स्थान। करीब एक मील की लम्बाई, 800 फीट की चौड़ाई एवं 200 फीट की उंचाई एवं दोनों तरफ प्राचीन चट्टानों से घिरा हुआ है।
अध्र्य का व्यास 14 इंच, लिखे थे अभिलेख
अलेक्जेंडर कोनिन्घ्म आगे लिखते हैं कि अध्र्य के ऊपर 6 लाइनों में कुछ अभिलेख लिखे हुए थे। जो कि मौसम के कारण बुरी तरह से खुदे हुए अक्षर के रूप में प्रतीत हो रहे थे। गैरिक ने इस अभिलेख का एक बड़ा फोटोग्राफ बनाया। यह अभिलेख बहुत कीमती एवं अतुलनीय था क्योंकि यह कल्चुरी राजकुमार गांगेय देव का एक मात्र अभिलेख था।जो महमूद गजनवी के समकालीन थे। यह अभिलेख इसलिए भी महत्वपूर्ण रूप से बहुत कीमती था क्योंकि यह चेदि वंश के कल्चुरी राजाओं का अधिराज्य भी प्रदर्शित करता था। जिनका राज्य विन्ध्य पर्वत श्रंखलाओं के उत्तर तक इलाहाबाद से सिर्फ 50 मील की दूरी तक था।
अंग्रेजो के जाने के बाद फिर सर्वेश सोनी जी के जूनून और अथक प्रयासों के बाद आज घिनौची धाम पियाबन में पर्यटन के लिए अपना नयी पहचान बना रहा है जो रीवा का प्रथम विकसित मनोरंजन क्षेत्र बन गया है।
ऐसे पहुंचा जा सकता है यहां
रीवा रेलवे स्टेशन पर उतरने के बाद पुराने बस स्टैंड से जवा जाने के लिए बस मिलती है। जो सिरमौर होते हुए बरदहा घाटी पहुंचाती है। यहां से करीब एक किमी. पैदल चलने के बाद घिनौचीधाम पहुंचा जा सकता है। यह स्थान पहाड़ों पर आच्छादित हरियाली के बीच पर्यटन का रोमांच पैदा करता है।
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