जलजलिया माँ
सिंगरौली के माड़ा में मौजूद है देवी मंदिर, आदिमानव काल से जुड़ा है इतिहास। श्रृंगी ऋषि की तपोभूमि मध्य प्रदेश के सिंगरौली में वैसे तो कई दर्शनीय स्थल हैं पर माड़ा की जलजलिया मां की बात ही निराली है।
श्रृंगी ऋषि की तपोभूमि मध्य प्रदेश के सिंगरौली में वैसे तो कई दर्शनीय स्थल हैं पर माड़ा की जलजलिया मां की बात ही निराली है। कहते हैं मां जलजलिया पहाड़ से प्रकट हुई हैं और हर भक्त की मनोकामना पूरी करती हैं। इस स्थान को आदि मानवकाल से जोड़कर भी देखा जाता है। सिंगरौली रेलवे स्टेशन से करीब 60 किमी. पर स्थान है।
ऊंचे पहाड़ों हरे-भरे जंगलों से आच्छादित यह स्थान बड़ा ही रमणीय है। माड़ा की आदिमानव काल की गुफाओं की श्रृंखला के बीच मां जलजलिया का मंदिर है। पुजारी बताते हैं मां जलजलिया पहाड़ तोड़कर अवतरित हुई हैं।
निर्मल धारा सदा प्रवाहित
विशाल पहाड़ के नीचे से जल की अविरल निर्मल धारा सदा प्रवाहित होती है। इस जलधारा के बारे में कहा जाता है कि पहाड़ के नीचे क्षीर सागर है जहां से यह जलधारा आती है। सदियों पहले देवी की मूर्ति स्थापित कर मां जलजलिया के नाम से लोग उपासना करने लगे। धीरे-धीरे मां की कृपा से लोगों के दुख दर्द दूर हुए और यहां आस्था का मेला लगने लगा।
पहाड़ों को काटकर बनाई गई गुफाएं
यहां देशभर से श्रृद्धालू मां के दर्शन के लिए आते हैं। मन्नतें रखते हैं। मां को चुनरी भेंट करते हैं। नारियल रेवड़ी का प्रसाद चढ़ाते हैं। माथा टेक मां से आशीर्वाद लेते हैं। इस स्थान को आदिमानव काल से जोड़ कर देखा जाता है। इसकी वजह माड़ा की गुफाएं हैं। जो आदिमानव काल की हैं। पहाड़ों को काटकर बनाई गई हैं। इन्हीं गुफाओं की श्रृंखला के बीच यह देवी स्थान हैं।
पर्यावरण की दृष्टि से बहुत ही रमणीय स्थल
उसी पहाड़ में है जिसमें माड़ा की 'रावण' गुफा है। इस स्थान की खूबी यह है कि धार्मिक केंद्र तो है ही, पर्यावरण की दृष्टि से भी बहुत रमणीय स्थल है। यहां चहुंओर घनघोर जंगल है। पक्षियों का कलरव सुन आनंद की अनुभूति होती है तो सदानीरा झरने देख मन शीतल हो जाता है। हरी-भरी वादियों के बीच शांति और सुकून मिलता है। इस स्थान तक पहुंचने के लिए बस और आटो मुख्य साधन हैं। बैढऩ बस अड्डे से माड़ा तक बसें चलती हैं तो सिंगरौली रेलवे स्टेशन और बस अड्डे से आटो कर भी जाया जा सकता है।
शेषनाग करते हैं यहां शिव का जलाभिषेक
वाकई अद्भुत दृश्य है यहां। मां जलजलिया के स्थान से कुछ ही कदम पर शिवलिंग स्थापित है। जिनके ऊपर शेषनाग के फन से जलधारा निरंतर गिरती रहती है अर्थात शेषनाग भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं। यह जलधारा मां जलजलिया के स्थान से निकलकर शेषनाग के शरीर में प्रवेश करती है। स्थानीय लोगों का कहना है कि कई पीढिय़ों से सुनते हैं कि यह जलधारा कभी रुकी नहीं। यह चमत्कार सदियों से बरकरार है।
मकर संक्रांति को जुटता है आस्था का सैलाब
यूं तो हर रोज श्रद्धालू यहां पहुंचते हैं लेकिन मकर संक्रांति को यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालू आते हैं। पुजारी पं. रामानुह बताते है कि इस दिन आस्था चरम पर होती है। यह दिन मां जलजलिया का विशेष दिन है। हवन, यज्ञ, अनुष्ठान और कई तरह के संस्कार यहां पर संपन्न कराए जाते हैं। इसके अलावा श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन भी श्रद्धालू पूजन-अर्चन करते है। महिलाएं इस दिन अधिक संख्या में पहुंचती हैं। सावन में भी श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है।
छत्तीसगढ़ में मां के अपार भक्त
मां जलजलिया जिस स्थान पर विराजीं हैं वहां से छत्तीसगढ़ की सीमा महज कुछ किमी. दूर है। पहाड़ पार करते ही मध्य प्रदेश की सीमा समाप्त और छत्तीसगढ़ की सीमा शुरू हो जाती है। इसलिए छत्तीसगढ़ की सीमावर्ती गांवों मेंं मां के अपार भक्त हैं। मां की महिमा का गुणगान वहंा खूब होता है।
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