Sunday, November 1, 2020

विंध्यप्रदेश का मध्यप्रदेश में कैसे हुआ विलय, जो पूर्व में सोनभद्र से लेकर पश्चिम में दतिया तक फैला था विंध्यप्रदेश,जाने पूरा इतिहास।

 विंध्यप्रदेश का मध्यप्रदेश में कैसे हुआ विलय, जो पूर्व में सोनभद्र से लेकर पश्चिम में दतिया तक फैला था विंध्यप्रदेश, जाने पूरा इतिहास।







विंध्य प्रदेश का कैसे हुआ मध्यप्रदेश में विलय, यहां जानें पूरा इतिहास, रीवा को उपराजधानी की तरह सुविधाएं देने का किया गया था वादा, नेहरू का वादा भी भूल गई राज्य सरकारे, शर्तों के अनुसार नहीं मिले संसाधन, यह पश्चिम में दतिया, पूर्व मेें सोनभद्र, उत्तर में प्रयागराज, दक्षिण मेें बिलासपुर क्षेत्र तक फैला था।




 मध्यप्रदेश का गठन एक नवंबर 1956 को हुआ था, उसके पहले विंध्य प्रदेश का अपना अस्तित्व था। आज हम उसी विंध्य प्रदेश के इतिहास की बात करते हैै। विंध्य प्रदेश, भारत का एक भूतपूर्व प्रदेश था जिसका क्षेत्रफल 23,603 वर्ग किमी. तक फैला था। भारत की स्वतन्त्रता के बाद सेन्ट्रल इण्डिया एजेन्सी के पूर्वी भाग के रियासतों को मिलाकर 1948 में इस राज्य का निर्माण किया गया था। इस राज्य की राजधानी रीवा थी। इसके उत्तर में उत्तर प्रदेश एवं दक्षिण में मध्य प्रदेश था। विंध्य क्षेत्र पारंपरिक रूप से विंध्याचल पर्वत के आसपास का पठारी भाग को कहा जाता है। 1948 में भारत की स्वतंत्रता के बाद मध्य प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश,छत्तीसगढ़ में स्थित कुछ रियासतों को मिलाकर विंध्यप्रदेश की रचना की गई थी। इसमें भूतपूर्व रीवा रियासत का एक बड़ा हिस्सा, बघेलखंड, बुंदेलखंड आदि थे। इसकी राजधानी रीवा थी।

इसके उत्तर में उत्तर प्रदेश तथा दक्षिण में मध्य प्रदेश के दतिया तक फैला हुआ था। 1 नवम्बर 1956 को ये सब मिलाकर मध्यप्रदेश बना दिए गए थे। यह क्षेत्र सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण समझा जाता है। सतना, रीवा विंध्य प्रदेश के बड़े नगर है। यह पश्चिम में दतिया, पूर्व मेें सोनभद्र, उत्तर में प्रयागराज, दक्षिण मेें बिलासपुर क्षेत्र तक फैला था। विंध्य प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री पं॰ शंभुनाथ शुक्ल जी थे, जो शहडोल के रहने वाले थे। उनके नाम पर शहडोल में बड़ा शासकीय विश्वविद्यालय है और रीवा विश्वविद्यालय का सांस्कृतिक हाल भी उन्हीं के नाम पर है। राजधानी भोपाल स्थित मंत्रालय में भी पं॰ शंभुनाथ शुक्ल के नाम पर कई कक्ष स्थापित है।



चार साल तक रहा विंध्य प्रदेश का अस्तित्व

आजादी के बाद रीवा स्टेट विंध्य प्रदेश के रूप में अस्तित्व में आया। एक ऐसा प्रदेश जो प्राकृतिक और ऐतिहासिक संपदाओं से परिपूर्ण था। 1952 में पहली बार विंध्य प्रदेश की विस का गठन किया गया। चार साल तक अस्तित्व में रहे इस प्रदेश के विलय का फरमान भी सरकार ने जारी कर दिया। स्थानीय स्तर पर विरोध शुरू हुआ, आंदोलन छेड़े गए। यह पहला अवसर था जब युवाओं और छात्रों के हाथ में आंदोलन की कमान थी। पुलिस की गोलियों से गंगा, चिंताली नाम के दो आंदोलनकारी शहीद हुए। दर्जनों की संख्या में लोग जख्मी हुए।


राज्य स्तर के कार्यालय दिए जाएंगे: नेहरू

बढ़ते विरोध के चलते तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी कहा कि एकीकृत मध्यप्रदेश में शामिल हो रहे राज्यों को मजबूती दी जाएगी, उन्हें राज्य स्तर के कार्यालय दिए जाएंगे। उस दौर को देखने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता घनश्याम सिंह बताते हैं कि विंध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शंभूनाथ शुक्ला और केन्द्र सरकार के बीच कुछ शर्तों को लेकर समझौते हुए थे। शर्तों बारे में मांग भी उस दौरान उठी कि सार्वजनिक किया जाए पर ऐसा नहीं हुआ।



यह क्षेत्र उपेक्षा का शिकार

भाषणों में आश्वासन दिया गया था कि विंध्य प्रदेश को संसाधन उपलब्ध कराए जाएंगे। एक नवंबर 1956 को विंध्यप्रदेश के विलय के साथ नया मध्यप्रदेश अस्तित्व में आया। जिन क्षेत्रों को इसमें शामिल किया गया, उसमें भोपाल, ग्वालियर, इंदौर, जबलपुर आदि को विकसित करने बड़ी योजनाएं दी गईं। तब से लेकर अब तक लगातार यह क्षेत्र उपेक्षा का शिकार होता रहा है। इसे केवल सुदूर जिले की भांति समझा गया। अब भी सबसे अधिक राजस्व यहीं से जा रहा है। उस समय सिंगरौली, शहडोल से दतिया तक का हिस्सा विंध्य प्रदेश में शामिल था।




राज्य स्तर के ये कार्यालय भी चले गए

विंध्यप्रदेश के विलय के बाद रीवा में वन, कृषि एवं पशु चिकित्सा के संचालनालय खोले गए। पूर्व में यहां हाईकोर्ट, राजस्व मंडल, एकाउंटेंट जनरल ऑफिस भी था। धीरे-धीरे इनका स्थानांतरण होता गया। उस दौरान भी यही समझाया गया कि विकास रुकेगा नहीं, लेकिन उस पर अमल नहीं हुआ। इसी तरह ग्वालियर में हाईकोर्ट की बेंच, राजस्व मंडल, आबकारी, परिवहन, एकाउंटेंट जनरल आदि के प्रदेश स्तरीय कार्यालय खोले गए। इंदौर को लोकसेवा आयोग, वाणिज्यकर, हाईकोर्ट की बेंच, श्रम विभाग आदि के मुख्यालय मिले। जबलपुर को हाईकोर्ट, रोजगार संचालनालय मिला था। रीवा के अलावा अन्य स्थानों पर राज्य स्तर के कार्यालय अब भी संचालित हैं, लेकिन यहां की उपेक्षा लगातार होती रही।



-✍️✍️ पंडित पंकज द्विवेदी, संचालक ब्लॉग

Vindhya Pradesh The Land Of White Tiger





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