Sunday, November 24, 2019

देउर कोठार : जहा 2 हजार साल प्राचीन बौद्ध स्तूपो और 5 हजार साल प्राचीन शैल चित्रों की श्रृंखला

रीवा। देउर कोठार का नाम केवल देश के इतिहासकार ही नहीं लेते हैं बल्कि विदेशों में भी इसका पुरातात्विक एवं सांस्कृतिक महत्व है। यहां लगभग 2 हजार वर्ष पुराने बौद्ध स्तूप और लगभग 5 हजार वर्ष प्राचीन शैलचित्रों की श्रृंखला मौजूद है। जो 1982 में प्रकाश में आए थे। ये स्तूप सम्राट अशोक के शासनकाल में ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी के निर्मित हैं।
देउर कोठार स्थान, रीवा-इलाहाबाद मार्ग एचएन-27 पर सोहागी पहाड़ से पहले कटरा कस्बे के समीप स्थित है। यहां मौर्य कालीन मिट्टी ईट के बने 3 बड़े स्तूप और लगभग 46 पत्थरों के छोटे स्तूप बने है। अशोक युग के दौरान विंध्य क्षेत्र में बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार हुआ और भगवान बौद्ध के अवशेषों को वितरित कर स्तूपों का निर्माण किया गया।

बौद्ध स्तूपों की सबसे बड़ी श्रंखला
देउर कोठार के बौद्ध स्तूपों का समूह सबसे बड़ा बौद्ध स्तूप समूह है जिसमें पहला बौद्ध स्तूप ईंटों द्वारा बनाया गया था। एक मौर्यकालीन स्तम्भ भी है जिसमें एक शिलालेख भी है जिसकी शुरुआत भगवतोष् से होती है। पुरातत्ववेत्ता नारायण व्यास बताते हैं कि देउर कोठार में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा खुदाई कराई जा रही थी। जिनकी टीम में वो भी शामिल थे। जिसमें उन्हें मन्नत शिलालेखों के साथ साथ कुछ रेलिंग के टुकड़े भी मिले थे। देउर कोठार पर आधारित एक पुस्तिका का भी प्रकाशन हुआ है।

कभी यहां से था व्यापारिक मार्ग
 यह क्षेत्र कौशाम्बी से उज्जैनी अवंतिका मार्ग तक जाने वाला दक्षिणपक्ष का व्यापारिक मार्ग था। इसी वजह से बौद्ध के अनुयायियों ने यहां पर स्तूपों का निर्माण किया होगा। ऐसा कहा जाता है कि देउर कोठार में भरहुत से अधिक प्राचीन स्तूप है। यहां बौद्ध भिक्षू अत्यात्मिक स्थल बनाकर शिक्षा-दिक्षा और साधना करते रहे होगें। इसके प्रमाण यहां मिलते है। बौद्ध धर्म के अनुयायियों का विंध्य क्षेत्र शिक्षण केन्द्र था। इसके प्रमाण देउर कोठार मे मिलते है। यहां पर खुदाई के दौरान मौर्य कालीन ब्राही लेख के अभिलेख, शिलापट्ट स्तंभ और पात्रखंड बडी संख्या में मिले।
यहां से आते हैं बौद्ध धर्मावलम्बी
श्रीलंका, नेपाल, म्यांमार, भूटान, थाईलैंड, चीन आदि जैसे देशों से बौद्ध धर्मावलम्बी भारी संख्या में देउर कोठार आते हैं। वो सबसे ज्यादा बौद्ध स्तूपों को ही देखना पसंद करते हैं और उन पर शोध भी करते हैं। देउर कोठार सहित सतना में भरहुत, मानपुर के बौद्ध स्तूपों को राष्ट्रीय बौद्ध टूरिज्म सर्किट में शामिल किए जाने की चर्चा है। अगर ऐसा होता है तो इन देशों के बौद्ध धर्मावलम्बी की संख्या बढ़ेगी और पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा।

- पंडित पंकज द्विवेदी  संचालक ब्लॉग
Vindhya pradesh the land of white tiger

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