त्रेतायुग में चूल्हे से निकला था यह शिवलिंग, मूसल से मारकर अंदरकर देती थी गैवी की मां
- राजा वीर सिंह से जुड़ा है इस मंदिर का इतिहास, यादव के घर में निकला था शिव लिंग, फिर एक दिन आया सपना तो विख्यात हुए गैवीनाथ।
सतना। मध्यप्रदेश के सतना जिला मुख्यालय से तकरीबन 35 किमी. दूर स्थित गैवीनाथ मंदिर है। यह विंध्यभर में आस्था का केन्द्र बना हुआ है। यहां खंडित शिवलिंग की पूजा होती है। इसका वर्णन पदम पुराण के पाताल खंड में मिलता है। जिसके अनुसार त्रेतायुग में यहां राजा वीर सिंह का राज्य हुआ करता था और तब बिरसिंहपुर नगर का नाम देवपुर था।
राजा वीर सिंह प्रतिदिन भगवान महाकाल को जल चढ़ाने घोड़े पर सवार होकर उज्जैन दर्शन करने जाते थे। बताया गया कि लगभग 650 वर्षों तक यह सिलसिला चलता रहा। इस तरह राजा वृद्ध हो गए और उज्जैन जाने में परेशानी होने लगी।
महाकाल ने देवपुर में दर्शन देने की बात कही
एक बार उन्होंने भगवान महाकाल के सामने मन की बात रखी। बताया जाता है, एक दिन भगवान महाकाल ने राजा को स्वप्न में दर्शन दिया और देवपुर में दर्शन देने की बात कही। इसके बाद नगर के गैवी यादव नामक व्यक्ति घर में एक घटना सामने आई। घर के चूल्हे से रात को शिवलिंग रूप निकलता, जिसे यादव की मां मूसल से ठोक कर अंदर कर देती।
राजा ने गैवी यादव को बुलाया
कई दिनों तक यही क्रम चलता रहा। एक दिन महाकाल फिर से राजा को स्वप्न में आए और कहा कि मैं तुम्हारी पूजा व निष्ठा से प्रसन्न होकर तुम्हारे नगर में निकलना चाहता हूं, लेकिन गैवी यादव मुझे निकलने नहीं देता। इसके बाद राजा ने गैवी यादव को बुलाया और स्वप्न की बात बताई। जिसके बाद जगह को खाली कराया गया, जहां शिवलिंग निकला।
उपलिंग के रूप में पहचान
राजा ने भव्य मंदिर का निर्माण कराया, महाकाल के ही कहने पर शिवलिंग का नाम गैवीनाथ रख दिया। तब से भोलेनाथ को गैवीनाथ के नाम से जाना जाता है। स्थानीय स्तर पर उनकी पहचान महाकाल के उपलिंग के रूप में होती है। बोला जाता है, जो व्यक्ति महाकाल के दर्शन करने नहीं जा सकता, वे बिरसिंहपुर के गैवीनाथ भगवान का दर्शन कर लें, पुण्य उतना ही मिलेगा।
चारोधाम का चढ़ता है जल
पौराणिक मन्यताओं के अनुसार यहां चारोधाम से लौटने वाले भक्त भगवान भोलनाथ के दर गैवीनाथ पहुंचकर चारोधाम का जल चढ़ाते है। पूर्वज बतातें है कि जितना चारोधाम में भगवान का दर्शन करने से पुण्य मिलता है। उससे कहीं ज्यादा गवौनाथ में जल चढ़ाने से मिलता है। लोग कहते है कि चारोधाम का अगर जल यहां नहीं चढ़ा तो चारोधाम की यात्रा अधूरी मानी जाती है।
विंध्य क्षेत्र में प्रचलित
मंदिर के पुजारी की मानें तो महाशिवरात्रि के दिन विंध्यभर से भक्त पहुंचते है। इसीतरह मनमास के माह में गैवीनाथ की पूजा का अपना एक महत्व है ही। वैसे तो हर सोमवार को हजारों भक्त पहुंचकर गैवीनाथ की पूजाकर मन्नत मांगते है। गैवीनाथ का प्रताप है कि यहां पर आने वाले हर एक भक्त की मनों कामना पूणज़् होती है।
No comments:
Post a Comment