Friday, August 31, 2018

रीवा किला की रोचक जानकारी

रीवा राजघराने में लक्ष्मण को मानते है कुल देवता, गद्दी के बगल में बैठकर चलता है राज पाठ

यहां अब भी राजाधिराज ही होते हैं दशहरे में मुख्य अतिथि, मध्यप्रदेश का रीवा राजघराना अपनी विशिष्ट पहचान के लिए जाना जाता रहा है। यहां का दशहरा अपने आप में मशहूर है। जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं।




 रीवा। 
मध्यप्रदेश का रीवा राजघराना अपनी विशिष्ट पहचान के लिए जाना जाता रहा है। यहां का दशहरा अपने आप में मशहूर है। जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। दशहरे के दिन निकलने वाला चल समारोह प्रमुख आकर्षण होता है, जिसमें शदियों से परंपरा चली आ रही है कि यहां का राजा नहीं बल्कि राजाधिराज (भगवान श्रीराम) मुख्य अतिथि के रूप में निकलते हैं।

यहां के राजाओं ने कभी प्रमुख गद्दी पर बैठकर शासन नहीं किया, मान्यता है कि मुख्य गद्दी राजाधिराज की ही होती है। अब भी दशहरे के दिन किले में पहले गद्दी का पूजन किया जाता है और फिर रथ में सवार किया जाता है।

साथ में यहां के राजघराने के लोग और विशिष्ट अतिथि चल समारोह में निकलते हैं। रीवा राज्य में बाघेल वंश के राजाओं ने 35 पुस्त तक शासन किया। यहां के राजा भगवान राम के अनुज लक्ष्मण को अपना अग्रज मानते रहे हैं।

लक्ष्मण के नाम पर ही शासन
उनके कुल देवता लक्ष्मण माने जाते हैं। इस कारण यहां के राजा लक्ष्मण के नाम पर ही शासन करते रहे हैं। मान्यता है कि लक्ष्मण ने अपने शासनकाल में भगवान श्रीराम को आदर्श माना और गद्दी पर स्वयं नहीं बैठे।



यह गद्दी राजाधिराज की

इसी परंपरा को कायम रखते हुए रीवा राजघराने की जो गद्दी है उसमें अब तक कोई राजा नहीं बैठा है। यह गद्दी राजाधिराज(भगवान श्रीराम) की मानी जाती है। गद्दी के बगल में बैठकर शासक राज करते रहे हैं। इस बार दशहरे में रॉयल राजपूत संगठन ने दोपहर में भगवान श्रीराम की भव्य शोभायात्रा निकालने की तैयारी की है।

बांधवगढ़ में भी थी परंपरा
राजघराने की गद्दी में राजाधिराज को बैठाने की परंपरा शुरुआत से रही है। पहले राघराने की राजधानी बांधवगढ़ (उमरिया) ही थी। सन् 1618 में शताब्दी में महाराजा विक्रमादित्य रीवा आए तब भी यहां पर परंपरा वही रही। शासक की गद्दी में राजाधिराज को बैठाया जाता रहा और उनके सेवक की हैसियत से राजाओं ने शासन चलाया। यह परंपरा रीवा राजघराने को देश में अलग पहचान देती रही।

लक्ष्मण का बनवाया मंदिर
राजघराने के कुलदेवता लक्ष्मण थे इस वजह से अवसर विशेष पर पूजा-पाठ के लिए बांधवगढ़ जाना पड़ता था। महाराजा रघुराज सिंह ने लक्ष्मणबाग संस्थान की स्थापना की और वहां पर लक्ष्मण मंदिर बनवाया। देश के कुछ चिन्हित ही ऐसे स्थान हैं जहां पर लक्ष्मण के मंदिर हैं उनकी पूजा होती है।

गद्दी का निकलता है चल समारोह
रीवा किले से अभी भी राजाधिराज की गद्दी का पूजन किया जाता है और दशहरे के दिन चल समारोह निकलता है। गद्दी का दर्शन करने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। राजघराने के प्रमुख पुष्पराज सिंह, उनके पुत्र दिव्यराज सिंह एवं बाघेल खानदान के लोग पहले गद्दी का पूजन करते हैं और बाद में पूरे शहर में चल समारोह निकलता है। शदियों की परंपरा अभी भी यहां जीवित है।


राजाधिराज ने हर समय संकट से बचाया
पुजारी महासभा के अध्यक्ष अशोक पाण्डेय कहते हैं कि राजाधिराज को गद्दी में बैठाने का यह फायदा रहा कि रीवा राज विपरीत परिस्थतियों से हर बार उबरता रहा। कई बार संकट की स्थितियां पैदा हुई लेकिन उनका सहजता से निराकरण हो गया। यहां की पूजा पद्धतियां भी अन्य राज्यों से अलग पहचान देती रही हैं।

मैसूर के बाद रीवा का प्रसिद्ध है दशहरा
देश में मैसूर का दशहरा प्रसिद्ध है, इसके बाद रीवा का माना जाता है। पहले राजघराने द्वारा ही पूरी व्यवस्था की जाती थी लेकिन अब प्रशासन और दशहरा उत्सव समिति व्यवस्था संभालती है। आयोजन की रूपरेखा में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है।

शस्त्र पूजन का कार्यक्रम
किले में गद्दी पूजन और शस्त्र पूजन का कार्यक्रम संपन्न होने के बाद चल समारोह निकलता है और एनसीसी मैदान में सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ ही भव्य आयोजन के बीच रावण, कुंभकरण और मेघनाथ के पुतले जलाए जाते हैं। 

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