Monday, November 23, 2020

ईको टूरिज़्म पार्क पर्यटको के आकर्षण का केंद्र होगा-मुकुंदपुर में व्हाइट टाइगर सफारी के पास ईको टूरिज्म एडवेंचर पार्क का शुभारम्भ( Eco tourism park may be the centre of attraction to tourists, mukundpur near white tiger safari in eco tourism adventure park opening now. )

 ईको टूरिज़्म पार्क पर्यटको के आकर्षण का केंद्र होगा-मुकुंदपुर में व्हाइट टाइगर सफारी के पास ईको टूरिज्म एडवेंचर पार्क का शुभारम्भ

ईको पार्क मुकुन्दपुर

Eco tourism park may be the centre of attraction to tourists,  mukundpur near white tiger safari in eco tourism adventure park opening now.


 पर्यटन के लिहाज से विंध्य क्षेत्र ने रविवार को मील का एक और पत्थर पार कर लिया। विंध्य के सतना जिले के मुकुंदपुर  को व्हाइट टाइगर सफारी के बाद अब एडवेंचर पार्क  की सौगात भी मिल गई है। पर्यटकों को आकर्षित करने के साथ ही इको टूरिज्म से जुड़ा यह एडवेंचर पार्क   रीवा , सतना ,सीधी सहित विंध्य क्षेत्र के लोगों के मनोरंजन के लिहाज से एक बेहतर पिकनिक स्थल भी बन गया है। रविवार को एक गरिमामय समारोह में प्रदेश के पंचायत राज्य मंत्री रामखेलावन पटेल ने सतना सांसद गणेश सिंह , रीवा सांसद जनार्दन मिश्रा तथा रीवा के विधायक व प्रदेश के पूर्व मंत्री राजेंद्र शुक्ल की मौजूदगी में मुकुंदपुर में व्हाइट टाइगर सफारी के समीप इस एडवेंचर पार्क का लोकार्पण किया।

  



मौज मस्ती के साथ साहसिक कारनामे


जो अब तक आपने रील लाइफ में देखा है वो अब रियल लाइफ में आप खुद भी कर सकेंगे । अब आप अपने परिवार अथवा दोस्तों के साथ घूमने – फिरने , छुट्टियां और पिकनिक मनाने जा सकेंगे।  मुकुंदपुर में व्हाइट टाइगर सफारी   के साथ साथ अब एडवेंचर्स पार्क में भी मनोरंजन और मौज मस्ती करने की एक ऐसी जगह अस्तित्व में आ गई है जहां बच्चे तो बच्चे बड़ों का भी मन खूब रमेगा। ईको टूरिज्म के तहत विकसित किये गए एडवेंचर्स पार्क में बच्चे झूले झूल सकेंगे, खेलकूद सकेंगे और अब तक फिल्मों और टेलीविजन शो में दिखाई पड़ने वाले साहसिक कारनामों का भी मजा ले सकेंगे। सतना वन मंडल द्वारा बनाया गया यह इको पार्क मुकुंदपुर में व्हाइट टाइगर सफारी एवं जू सेंटर के समीप ही बनाया गया है ताकि टाइगर सफारी का भ्रमण करने आने वाले लोग विंध्य की शान सफ़ेद शेर के दीदार के साथ ही एडवेंचर पार्क में भी मौज मस्ती कर सकें।





रस्सी पर चलिए , तार पर झूल कर नदी पार करिये-






विंध्य क्षेत्र  में अपनी किस्म के इस इकलौते पार्क में रोप वाकिंग, रोप क्लाइम्बिग, टायर वाक, जिप लाइन, कैनोपी वाक, साइकिलिंग व तीरंदाजी आदि जैसी साहसिक गतिविधियों के साथ बच्चों के लिये कई तरह के झूले लगाये गये हैं ताकि बड़े व बच्चे सभी इसका आनंद उठा सकें। वनमंडलाधिकारी राजीव कुमार राय ने बताया कि आने वाले समय में यहां और भी कई एडवेंचर्स गतिविधियां शुरू किये जाने के प्लान पर काम चल रहा है। योजना है कि यहां वाटर स्पोर्ट्स की भी कुछ गतिविधियां शुरू की जाएं। पार्क में औषधीय और ग्रहों – नक्षत्रों से जुड़े वृक्षों – पौधों का उद्यान भी विकसित किया गया है। मुकुंदपुर के जंगलों के प्राकृतिक सौंदर्य को सुरक्षित और संरक्षित रखते हुए विकसित किये गए इस पार्क में ट्री हाउस, वाच टावर्स आदि भी बनाये गए हैं।


मुकुंदपुर से मार्कण्डेय तक बनाएंगे पर्यटन कॉरिडोर –  पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री राम खेलावन पटेल


प्रदेश के पंचायत एवं ग्रामीण विकास राज्य मंत्री रामखेलावन पटेल ने एडवेंचर्स पार्क के लोकार्पण अवसर पर विंध्य की झोली में आई इस एक और सौगात का श्रेय रीवा के विधायक एवं पूर्व मंत्री राजेंद्र शुक्ला को देते कहा कि विंध्य को विकास की ऊंचाइयों तक ले जाने में श्री शुक्ल का विशेष योगदान है। उन्होंने कहा वाइट टाइगर सफारी एवं जू को विंध्य के लिए एक धरोहर बताते हुए कहा कि इको टूरिज्म इसकी पूर्णता सिद्ध करेगा। यह स्थान पर्यटकों को आकर्षित करेगा। मंत्री श्री पटेल ने कहा कि मुकुंदपुर से रामनगर के मार्कण्डेय तक एक पर्यटन कॉरिडोर बनाने के प्रयास किये जा रहे हैं ताकि पर्यटकों को ऐतिहासिक और धार्मिक महत्त्व के स्थलों को देखने – जानने का मौका मिल सके।


उन्होंने मुकुंदपुर तालाब का जीर्णोद्धार कराने , पुलिस चौकी की स्थापना कराने का भरोसा दिलाया तथा टाइगर सफारी का एक गेट मुकुंदपुर की तरफ किये जाने का प्रस्ताव तैयार करने के निर्देश विभागीय अधिकारियों को दिए।


देश – विदेश में बनेगी पहचान –सतना सांसद गणेश सिंह



कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए सांसद सतना गणेश सिंह ने कहा कि व्हाइट टाइगर सफारी ने विश्व में अपनी अलग पहचान स्थापित की है। अब विकास के दूसरे चरण में ईको टूरिज्म पार्क की पहचान भी देश व विदेश में बनेगी। विन्ध्य की धरा में धार्मिक, प्राकृतिक सौंदर्य के साथ खनिज संपदाओं के प्रचुर भण्डार हैं। पार्क के प्रारंभ हो जाने से पर्यटक इन सबका दीदार कर सकेंगे। उन्होंने कहा कि रीवा विधायक श्री शुक्ल के प्रयासों से यह क्षेत्र औद्योगिक कॉरीडोर से जुड़ेगा तथा इसका चहुंमुखी विकास होगा।


संयुक्त प्रयासों का फल – रीवा सांसद जनार्दन मिश्रा



कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि सांसद रीवा जनार्दन मिश्र ने कहा कि रीवा संभाग में पर्यटन के विकास के लिये किये गये संयुक्त प्रयासों का ही फल है कि आज यह क्षेत्र सैलानियों को प्रकृति के सौंदर्य के दर्शन के साथ मनोरंजन के भी संसाधन उपलब्ध करा पा रहा है।


होगी क्षेत्र की तरक्की बढ़ेंगे आय के माध्यम – पूर्व मंत्री व रीवा विधायक  राजेंद्र शुक्ल


इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के तौर पर अपने उद्बोधन में पूर्व मंत्री एवं रीवा विधायक राजेन्द्र शुक्ल ने कहा कि व्हाइट टाइगर सफारी में आने वाले पर्यटकों को ईको टूरिज्म पार्क सोने में सुहागा जैसा है। व्हाइट टाइगर सफारी एवं जू में आने वाले सैलानी वन्य प्राणियों को देखने के साथ पार्क में एडवेंचर का पूरा मौका उठा सकेंगे। भाग दौड़ भरी जिंदगी में लोग वन्य प्राणियों के दीदार के साथ टूरिज्म पार्क में सुकून के दो पल बिता सकेंगे। यहां बच्चों व बड़ों के लिये मनोरंजन के पूरे इंतजाम किये गये हैं जिसमें लोग साहसिक गतिविधि भी कर सकेंगे।


उन्होंने कहा कि पर्यटन आर्थिक गतिविधि को बढ़ाने का सबसे बड़ा माध्यम है। विन्ध्य में देशी एवं विदेशी सैलानियों के आने से क्षेत्र की तरक्की होगी तथा यह समृद्धशाली क्षेत्र के तौर पर विकसित होगा। उन्होंने कहा कि विन्ध्य प्राकृतिक संपदा से सम्पूर्ण क्षेत्र है। इसे पर्यटन का केन्द्र बनाया जायेगा तथा पर्यटन कॉरीडोर से जोड़ने के सभी कार्य कराये जायेंगे। फोरलेन की सड़कों से जुड़ जाने के कारण अब यह मुख्य धारा में शामिल हो चुका है। सिंगरौली तक रेल लाइन से जुड़ जाने पर विकास के नये मापदण्ड स्थापित होंगे तथा रीवा/सतना में हवाई अड्डा बन जाने से पर्यटकों को यहां आने की सुविधा मिल जायेगी।


ये भी रहे उपस्थित –

कार्यक्रम का संचालन सुदामा शरद ने किया। कार्यक्रम के अंत में आभार प्रदर्शन संचालक व्हाइट टाइगर एण्ड जू संजय रायखेड़े द्वारा किया गया। इस अवसर पर कलेक्टर अजय कटेसरिया, जनपद अध्यक्ष अमरपाटन तारा विजय पटेल, सेवानिवृत्त मुख्य वन संरक्षक आरबी शर्मा, एडवोकेट सुशील तिवारी,रूपनारायण पटेल रूपए, राजेश तिवारी, विवेक दुबे, विजय पटेल सहित वन विभाग के अधिकारी-कर्मचारी, पत्रकारगण व बड़ी संख्या में स्थानीय निवासी उपस्थित रहे।




- पंडित पंकज द्विवेदी संचालक ब्लॉग 

VINDHYA PRADESH THE LAND OF WHITE TIGER

Saturday, November 21, 2020

मुकुंदपुर में मनोरंजन से भरा ईको पार्क बनकर तैयार 22 नवंबर 2020 को होगा उद्घाटन


 मुकुंदपुर में मनोरंजन से भरा ईको पार्क बनकर तैयार 22 नवंबर 2020 को होगा उद्घाटन 


मुकुंदपुर व्हाइट टाइगर सफारी के बगल में ईको पार्क बनकर पूरी तरह से तैयार हो गया है। इस पार्क में मनोरंजन   के कई साधन  बनाये गए है। इस पार्क का उद्घाटन 22 नवंबर को पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री रामखेलावन पटेल करेंगे। लिहाजा जू प्रबंधन इसकी तैयारी में जुटा हुआ है।

उल्लेखनीय है कि मुकुंदपुर को पर्यटन क्षेत्र में तेजी के साथ विकसित किया जा रहा है। व्हाइट टाइगर सफारी के बाद अब ईको पार्क बनाया गया है। इस पार्क में कई तरह के झूले, प्राकृतिक सौंदर्य से युक्त पार्क समेत मनोरंजन के कई साधन स्थापित किये गए है। पूरी तरह से बनकर तैयार हो चुका है। उसे अंतिम रूप दिया जा रहा है। इसके शुभारंभ की तिथि भी निर्धारित कर दी गईं है। प्रदेश के पिछड़ावर्ग तथा अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री(स्वतंत्र प्रभार ),पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री रामखेलावन पटेल 22 नवम्बर को ईको पार्क का उद्घाटन करेंगे। कार्यक्रम की अध्यक्षता सांसद सतना गणेश सिंह करेंगे। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि रीवा के सांसद जनार्दन मिश्रा एवं पूर्व मंत्री तथा रीवा विधायक राजेन्द्र शुक्ल होंगे।मुख्य वन संरक्षक ऐ के सिंह एवं डीएफओ सतना राजेश कुमार राय ने कार्यक्रम में उपस्थिति का अनुरोध किया है।

ईको पार्क का निरीक्षण करते हुए पूर्व मंत्री एवं रीवा विधायक  राजेन्द्र शुक्ल जी



30 रुपये होगी इंट्री फीस


कई एकड़ में विकसित ईको पार्क में भीतर जाने के लिए पर्यटकों को 30 रुपये बतौर इंट्री फीस अदा करना होगा । इसमे वह कई तरह के झूले ,पार्क व प्राकृतिक सौंदर्य का लुत्फ उठा सकेंगे। इसके खुलने का समय सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक रहेगा। इस दौरान पर्यटक पार्क में रह सकेंगे।


जिपलाइन , तीरंदाजी और डार्टिंग भी


बताया जा रहा है कि ईको पार्क में मनोरंजन के भरपूर साधन उपलब्ध कराए गए हैं। इसमे तीरंदाजी, डार्टिंग  और जिपलाइन भी है। लेकिन इसके लिए अलग से फीस निर्धारित की गई है। पार्क में भीतर जाने पर पर्यटको को अगर मनोरंजन का  लुफ़्त उठाना है ,तो इसकी फीस देनी होगी। जबकि झूले, पार्क और अन्य सभी साधनो को मुफ्त रखा गया है।


" ईको पार्क बनकर तैयार हो चुका है। 22 नवम्बर को माननीय पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री रामखेलावन पटेल  द्वारा उद्धघाटन किया जाएगा। इसके बाद पार्क पर्यटकों के लिए खोल दिया जाएगा। पार्क में मनोरंजन के कई साधन मौजूद हैं।"

संजय रायखेड़े

जू संचालक



--✍️  पंडित पंकज द्विवेदी  संचालक ब्लॉग

VINDHYA PRADESH THE LAND OF WHITE TIGER 

Sunday, November 1, 2020

विंध्य को नहीं मिला शर्तों के अनुरूप विकास, अलग राज्य की मांग केन्द्र सरकार के पास लंबित


 मध्यप्रदेश स्थापना दिवस : विंध्य को नहीं मिला शर्तों के अनुरूप विकास, अलग राज्य की मांग केन्द्र सरकार के पास लंबित



विंध्य प्रदेश गठन की संभावनाएं अभी भी जिंदा हैं, केन्द्र के पास लंबित है मामला

- आज के दिन ही विंध्य प्रदेश का अस्तित्व समाप्त होकर मध्यप्रदेश का हुआ था गठन

- विधानसभा ने संकल्प पारित कर शासन के पास भेजा था प्रस्ताव

- लगातार होती रही उपेक्षा, अब भी बड़े प्रोजेक्ट से किया जा रहा वंचित



रीवा। मध्यप्रदेश का गठन एक नवंबर 1956 को हुआ था, उसके पहले विंध्य प्रदेश का अपना अस्तित्व था। नए प्रदेश के गठन के बाद से इसका अस्तित्व समाप्त हो गया। इसमें आने वाले बघेलखंड और बुंदेलखंड के साथ अन्य कई क्षेत्र मध्यप्रदेश का हिस्सा हो गए।


उस दौरान विलय के समय इस क्षेत्र में जो संसाधन दिए जाने थे, वह नहीं मिले। जिसकी वजह से फिर विंध्य प्रदेश के पुनर्गठन की मांग उठी, हालांकि विलय का भी व्यापक रूप से विरोध हुआ था, बड़ा आंदोलन हुआ गोलियां चली गंगा, चिंताली और अजीज नाम के लोग शहीद भी हुए, सैकड़ों लोग जेल भी गए लेकिन सरकारी तंत्र ने उस आवाज को शांत कर दिया था। बढ़ती मांग के चलते मध्यप्रदेश विधानसभा ने 10 मार्च 2000 को संकल्प पारित कर 'विंध्य प्रदेश' अलग राज्य गठित करने केन्द्र सरकार से मांग की थी।


यह संकल्प विधानसभा में अमरपाटन के तत्कालीन विधायक शिवमोहन सिंह ने प्रस्तुत किया था। जिसका विंध्य के सभी विधायकों ने समर्थन कर इस क्षेत्र के दावे के बारे में बताया था। उस दौरान कांग्रेस की सरकार थी, इस संकल्प का समर्थन भाजपा के विधायकों ने भी किया था। सर्व सम्मति से पारित किए गए इस प्रस्ताव के बाद तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी ने केन्द्र सरकार से कई बार इस पर विचार करने की मांग की थी।


अब तक करीब 19 वर्ष का समय बीत गया लेकिन विंध्यप्रदेश के पुनर्गठन की संभावनाएं अभी मरी नहीं हैं। केन्द्र सरकार की ओर से इस पर स्वीकृति या अस्वीकृति का कोई निर्णय नहीं दिया गया है। राजनीतिक परिस्थितियां अब फिर उसी तरह आ गई हैं। मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार है तो केन्द्र में भाजपा नेतृत्व की। राजनीतिक विरोधाभाष के बीच विंध्य प्रदेश गठन की संभावनाएं जीवित हैं।



- लोकसभा में संकल्प के अध्ययन का दिया था आश्वासन

लोकसभा में मध्यप्रदेश पुनर्गठन विधेयक 2000 पेश किया गया था, चर्चा में भाग लेते हुए रीवा के तत्कालीन सांसद सुंदरलाल तिवारी ने मांग उठाई थी कि छत्तीसगढ़ के साथ ही विंध्यप्रदेश का भी संकल्प पारित हुआ है, इसके गठन की प्रक्रिया भी अपनाई जाए। उस दौरान गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने कहा था कि यदि जनभावनाओं के आधार पर प्रदेश सरकार ने संकल्प पारित कराया है तो इसका अध्ययन किया जाएगा और संभावनाओं पर विचार होगा। इसके बाद से विंध्यप्रदेश गठन की मांग का मुद्दा धीरे-धीरे कमजोर होता गया।



- टूटते गए विभागों के प्रदेश मुख्यालय

स्टेट रि-आर्गनाइजेशन बिल पर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि जिन राज्यों का विलय हो रहा है, उनका गौरव बनाए रखने के लिए प्रदेश स्तर के संसाधन दिए जाएंगे। विंध्यप्रदेश के विलय के बाद इसकी राजधानी रहे रीवा में वन, कृषि एवं पशु चिकित्सा के संचालनालय खोले गए। पूर्व में यहां हाईकोर्ट, राजस्व मंडल, एकाउंटेंट जनरल ऑफिस भी था। धीरे-धीरे इनका स्थानांतरण होता गया। उस दौरान भी यही समझाया गया कि विकास रुकेगा नहीं, लेकिन उस पर अमल नहीं हुआ। इसी तरह ग्वालियर में हाईकोर्ट की बेंच, राजस्व मंडल, आबकारी, परिवहन, एकाउंटेंट जनरल आदि के प्रदेश स्तरीय कार्यालय खोले गए। इंदौर को लोकसेवा आयोग, वाणिÓयकर, हाईकोर्ट की बेंच, श्रम विभाग आदि के मुख्यालय मिले। जबलपुर को हाईकोर्ट, रोजगार संचालनालय मिला था। रीवा के अलावा अन्य स्थानों पर राज्य स्तर के कार्यालय अब भी संचालित हैं, लेकिन यह केवल संभागीय मुख्यालय रह गया है।



- बड़े संस्थान देने में भी हो रही उपेक्षा

विंध्य क्षेत्र को बड़े संस्थान अन्य क्षेत्रों के तुलना में बहुत कम मिल रहे हैं। विंध्यप्रदेश पुनर्गठन को लेकर माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पूर्व समन्वयक जयराम शुक्ला कहते हैं कि मध्यप्रदेश में आइआइटी, एम्स, युनिवर्सिटी सहित कई बड़े संस्थान इंदौर, भोपाल और जबलपुर को दिए जा रहे हैं। विंध्य में प्रतिभाओं की कमी नहीं है, वह शिक्षा और रोजगार के लिए बाहर जा रहे हैं। यहां उद्योग भी आए तो धुएं और धूल वाले। विंध्यप्रदेश की राजधानी रहे रीवा को स्मार्ट सिटी जैसे प्रोजेक्ट से भी अलग रखा गया। जब रीवा राजधानी था तो यह लखनऊ, पटना, भुवनेश्वर जैसे शहरों के बराबर माना जाता था। उस समय भोपाल से बड़ा इसे माना जाता था। यहां राजनीतिक जागरुकता से सबसे अधिक रही लेकिन क्षेत्र के विकास में इसका फायदा जनप्रतिनिधि नहीं दिला सके।



- ऐसा था विंध्यप्रदेश

विंध्यप्रदेश में रीवा, सीधी(सिंगरौली), सतना, शहडोल(अनूपपुर,उमरिया), पन्ना, छतरपुर, टीकमगढ़(निवाड़ी), दतिया आदि जिले आते थे। 1300 ग्राम पंचायतें और 11 नगर पालिकाएं थीं। विधानसभा की 60 सीटें थीं और लोकसभा की छह सीटें थी। विंध्यप्रदेश की राजधानी रीवा हुआ करती थी।

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अलग प्रदेश होने से तेजी के साथ विकास होता। केन्द्रीय सेवाओं में राज्य का कोटा होता तो अधिक संख्या में अफसर तैयार होते। यहां शिक्षा और रोजगार के अवसर कम होते गए, जिसकी वजह से लोग दूसरे शहरों की ओर जा रहे हैं। सरकारों की उपेक्षा से यहां हताशा का भाव बढ़ता जा रहा है। विधानसभा का संकल्प अभी भी केन्द्र के पास लंबित है। मेरा मानना है कि अवसर जैसे-जैसे कम होते जाएंगे यहां जरूरतें बढ़ेंगी और फिर आवाज उठेगी। अलग प्रदेश का गठन आगे चलकर होगा।

शिवमोहन सिंह, पूर्व विधायक ( विंध्यप्रदेश का संकल्प प्रस्तुत करने वाले)


-पंडित पंकज द्विवेदी, संचालक ब्लॉग

Vindhya Pradesh The Land Of White Tiger 

'विंध्यप्रदेश' की हत्याकथा..! कालचक्र/जयराम शुक्ल

 हरेक को जानना जरूरी है

'विंध्यप्रदेश' की हत्याकथा..!

कालचक्र/जयराम शुक्ल



हर साल 1 नवंबर की तारीख मेरे जैसे लाखों विंध्यवासियों को हूक देकर जाती है।  मध्यप्रदेश के स्थापना दिवस का जश्न  हमें हर साल चिढ़ाता है।


जो इतिहास से सबक नहीं लेता वह बेहतर भविष्य को लेकर सतर्क नहीं रह सकता इसलिए विंध्यप्रदेश का आदि और अंत जानना जरूरी है। 


विंध्यप्रदेश की हत्याकथा में जब भी पं.नेहरू की भूमिका का कोई भी जिक्र होता है तो उन्हें भारतीय लोकतंत्र का आदि देवता मानने वाले लोग बिना जाने समझे टूट पड़ते हैं। कुछ महीने पहले ऐसे ही किसी संदर्भ में यह लिख दिया कि शैशव काल में ही एक प्रदेश की हत्या इसलिए कर दी गई क्योंकि उसके सबसे पिछड़े क्षेत्र ने पंडित नेहरू और उनकी काँग्रेस पार्टी को पूरी तरह खारिज कर दिया था। 


यह मसला अत्यंत पिछड़े सीधी(सिंगरौली सम्मिलित) जिले का था, जहाँ की जनता ने देश के पहले आम चुनाव यानी 1952 में पंडित नेहरू के तिलस्म को खारिज करते हुए उनकी महान कांग्रेस पार्टी को डस्टबिन में डाल दिया। सीधी की सभी विधानसभा सीटों और लोकसभा सीट में काँग्रेस सोशलिस्टों से पिट गई थी।


 यह संदर्भ लिखे जाने के बाद बहुत प्रतिक्रियाएं आईं रही हैं। कोई संदर्भ स्त्रोत जानना चाहता था तो कुछ लाँछन, तंज और गाली की भाषा तक उतर गए। खैर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को भोगने का सभी को बराबर का अधिकार है..इस पर कुछ नहीं कहना..। 


कहते हैं एक तिनगी भी तोप दागने के लिए पर्याप्त होती है। विंध्यप्रदेश के पुनरोदय को लेकर विंध्य से भोपाल-दिल्ली तक कई छोटे-छोटे समूह सक्रिय हैं। वे सभी यह सपना सजोये बैठे हैं कि उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, झारखंड, तेलंगाना जैसे छोटे राज्यों के उदय के बाद विंध्यप्रदेश के पुनरोदय का रास्ता स्वाभाविक रूप से खुल जाता है। विंध्यप्रदेश का जब विलोपन हुआ था तब कहा गया था कि छोटे राज्य सर्वाइव नहीं कर सकते। यह त्थोरी अब उलट गई है। 


उदित हुए नए राज्य कभी अस्तित्व में भी नहीं थे जबकि विंध्यप्रदेश एक भरापूरा प्रदेश रहा है पूरे आठ साल। विंध्य की अलख जगाने वाले ये बेचारे वीरव्रती इस क्षेत्र के सभी अलंबरदार नेताओं से गुहार-जुहार लगा-लगाके थक चुके हैं, नेताओं को फिलहाल यह मुद्दा वोट मटेरियल नहीं लगता। 


अपन लिख सकते हैं सो हर साल इस दिन अपने उस अबोध प्रदेश की हत्याकथा को याद कर शोक मना लेते हैं। हर साल इस दिन अपनी माटी के स्वाभिमान से जुड़ी टीसने वाली बात अवचेतन से  मावाद की तरह फूटकर रिसने लगती है। हर साल ही आक्रोश शब्दों में जाहिर होता हुआ व्यक्त हो ही जाता है।


यह आक्रोश हर उस आहत विंध्यवासी का है जो अक्सर यह कल्पना करता है कि आज विन्धप्रदेश होता तो तरक्की के किस मुकाम पर खड़ा रहता। क्या अपने रीवा की हैसियत भी भोपाल, लखनऊ, पटना, चंडीगढ जैसे नहीं होती..!


विंध्यप्रदेश अपने संसाधनों के बल पर देश के श्रेष्ठ राज्यों में से एक होता...लेकिन उसे आठ साल के शैशवकाल में सजा-ए-मौत दे दी गई। यह एक बार नहीं हजार बार कहूंगा, कहता रहूँगा। क्योंकि नई पीढ़ी को इस त्रासदी का सच जानना जरूरी है। 


जिनको इतिहास से बवास्ता होना है वे पहले वीपी मेनन की पुस्तक unification of indian states पढ़ ले तो पता चलेगा कि कितनी मशक्कत के बाद विंध्यप्रदेश बना था। जान लें, मेनन साहब सरदार पटेल के सचिव थे।


सन् 48 से 52 तक विंध्यप्रदेश को बचाए रखने की लड़ाई भी जान लें। लाठी-गोली खाएंगे धारा सभा बनाएंगे.. के नारे के साथ आंदोलन हुआ और अजीज, गंगा, चिंताली शहीद हुए। ये मरने वाले कोई भी पालटीशियन नहीं सरल-सहज-विंध्यवासी थे। 


तीन मासूमों का लहू रंग लाया और केंद्र शासित होने की बजाय विंध्यप्रदेश एक पूर्णराज्य के तौर पर बच गया। सन् 52 के चुनाव में देश में चल रही नेहरू की प्रचंड आँधी यहां आकर बवंडर मात्र रह गई। विंध्य से उस समय नेहरू को चुनौती दे रहे डा. लोहिया के युवातुर्क चेले बड़ी संख्या में जीतकर विधानसभा पहुंचे।


सीधी जैसे अत्यंत पिछड़े जिले में लोकसभा और सभी विधानसभा सीटों में सोशलिस्ट(एक में जनसंघ) जीते।  पं.नेहरू जी की प्रतिष्ठा के लिए तब यह बड़ा आघात माना गया। बीबीसी, रायटर, एपी जैसे न्यूजएजेंसियों ने दुनिया भर में ये खबरें प्रसारित कीं कि भारत के एक अत्यंन्त पिछड़े इलाके के मतदाताओं ने नेहरू और उनकी काँग्रेस को खारिज कर दिया। तब रीवा में प्रायः सभी बड़े अखबारों व एजेंसियों के पूर्णकालिक दफ्तर थे। 


नेहरू के खिलाफ यदि कहीं से खबरें जनरेट होतीं तो वह रीवा था क्योंकि तब वह जेपी, लोहिया, नरेन्द्र देव, कृपलानी का राजनीतिक शिविर बन चुका था। जो इतिहास जानते हैं उन्हें बताने की जरूरत नहीं कि यही चारों उस वक्त नेहरू के सबसे बड़े प्रतिद्वंदी थे। कांग्रेस में भी जबतक थे इन्हें नेहरू जी के समकक्ष ही माना जाता था।


सन् 52 से लेकर 57 के बीच यहां समाजवादी आंदोलन पूरे उफान पर था। जन-जन की जुबान पर समाजवाद चढ़ा हुआ था। विधानसभा में सोपा के मेधावी विधायकों के आगे सत्तापक्ष की बोलती बंद थी। इसी विधानसभा में श्रीनिवास तिवारी का जमींदारी उन्मूलन के खिलाफ ऐतिहासिक सात घंटे का भाषण हुआ था जिसने लोकसभा में कृष्ण मेनन के भाषण के रेकार्ड की बराबरी की थी। भारतीय संसदीय इतिहास में यहीं पहली बार ..आफिस आफ प्राफिट.. के सवाल पर बहस हुई। समाजवादी युवा तुर्कों ने सत्ता की धुर्रियां बिखेर दी।


57 नजदीक आने के साथ ही योजना बनी कि विंध्यप्रदेश का विलय कर दिया जाए। यह रणनीति नेहरूजी की प्रतिष्ठा को ध्यान पर रखकर बनी कि न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी।


56 में state reorganization commission गठित हुआ। दावे आपत्ति मगाए गए। विंध्यप्रदेश के योजना अधिकारी गोपाल प्रसाद खरे ने प्रदेश की आर्थिक क्षमता के आँकड़े तैयार किए। साक्षरता, प्राकृतिक संसाधनों पर भी एक रिपोर्ट तैयार कर आयोग के सामने यह साबित करने की कोशिश की गई कि विंध्यप्रदेश की क्षमता शेष मध्यप्रदेश से बेहतर है। यह रिपोर्ट विद्यानिवास मिश्र संपादित पत्रिका विंध्यभूमि में भी छपी। विद्यानिवास जी तब विंध्यप्रदेश के सूचनाधिकारी थे।


विडम्बना देखिए, समूचे विंध्यप्रदेश का प्रशासन, उसके अधिकारी यह चाहते थे कि इस प्रदेश की अकाल मौत न हो। इस बात की तस्दीक म.प्र. के मुख्य सचिव व बाद में भोपाल सांसद रहे सुशील चंद्र वर्मा ने हिंदुस्तान टाइम्स में छपे एक लेख के जरिये की। श्री वर्मा विंध्यप्रदेश में प्रोबेशनरी अधिकारी रह चुके थे। 


जब छत्तीसगढ़ बना तो उनकी तीखी प्रतिक्रिया थी- यदि कोई नया राज्य बनता है तो पहला हक विंध्यप्रदेश का है। जबकि तब श्री वर्मा भाजपा के वरिष्ठ नेताओं में से एक थे, और छग अटलजी की सरपरस्ती में बना।


चूंकि नेहरूजी की प्रतिष्ठा कायम करने के लिए बाँसुरी के सर्वनाश हेतु बाँस को ही जड़ से उखाड़ने का फैसला लिया जा चुका था इसलिए न तो सरकार की आर्थिक क्षमता का सर्वेक्षण देखा गया और न ही विंध्यवासियों की आवाज़ सुनी गई। तत्कालीन काँग्रेसियों के सामने तो खैर नेहरू के आगे नतमस्तक रहने के अलावा कोई विकल्प ही नहीं था। 


विधानसभा में  सोपा के विधायकों ने मोर्चा खोला। सभी नेताओं के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट थे फिर भी ये सभी छुपते छुपाते विधानसभा पहुंचे मर्जर के खिलाफ श्रीनिवास तिवारी जी ने फिर छह घंटे का भाषण दिया। बाहर पुलिस हथकड़ी लिए खड़ी थी।


 विधानसभा सभा को छात्रों ने चारों ओर से घेर लिया। रामदयाल शुक्ल(जो बाद में हाईकोर्ट के जस्टिस बने) और ऋषभदेव सिंह(जो संयुक्त कलेक्टर पद से रिटायर हुए) के नेतृत्व में छात्रों ने विधानसभा के फाटक तोड़ दिए व सदन में घुसकर विंध्यप्रदेश के विलय का समर्थन करने वाले सभी मंत्री- विधायकों की जमकर धुनाई की। मुख्यमंत्री व स्पीकर ही बमुश्किल बच पाए।


सभी छात्रों को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया। यह आंदोलन भी कुचल दिया गया। गैर कांग्रेस सरकारों पर पंडित नेहरू का नजला गिरना शुरू हो चुका था। इसी क्रम में बाद में केरल की निर्वाचित साम्यवादी सरकार को बर्खास्त किया गया। लाठी और संगीनों के साए में विंध्यप्रदेश को सजा-ए-मौत सुनाई जा चुकी थी।


 अब भला बताइए एक मासूम राज्य के खून के छीटे से किसका कुरता रंगा हुआ है..? इतिहास के क्रूर सच को सुनने की भी आदत डालनी होगी। 


मैं भी उन वीरव्रतियों के संकल्प के साथ हूँ जो आज भी यह सपना सँजोए बैठे हैं कि एक दिन यह अँधेरा छँटेगा, सुबह होगी और प्राची से विंध्यप्रदेश का पुनरोदय होकर रहेगा।



- जयराम शुक्ल जी

विंध्यप्रदेश का मध्यप्रदेश में कैसे हुआ विलय, जो पूर्व में सोनभद्र से लेकर पश्चिम में दतिया तक फैला था विंध्यप्रदेश,जाने पूरा इतिहास।

 विंध्यप्रदेश का मध्यप्रदेश में कैसे हुआ विलय, जो पूर्व में सोनभद्र से लेकर पश्चिम में दतिया तक फैला था विंध्यप्रदेश, जाने पूरा इतिहास।







विंध्य प्रदेश का कैसे हुआ मध्यप्रदेश में विलय, यहां जानें पूरा इतिहास, रीवा को उपराजधानी की तरह सुविधाएं देने का किया गया था वादा, नेहरू का वादा भी भूल गई राज्य सरकारे, शर्तों के अनुसार नहीं मिले संसाधन, यह पश्चिम में दतिया, पूर्व मेें सोनभद्र, उत्तर में प्रयागराज, दक्षिण मेें बिलासपुर क्षेत्र तक फैला था।




 मध्यप्रदेश का गठन एक नवंबर 1956 को हुआ था, उसके पहले विंध्य प्रदेश का अपना अस्तित्व था। आज हम उसी विंध्य प्रदेश के इतिहास की बात करते हैै। विंध्य प्रदेश, भारत का एक भूतपूर्व प्रदेश था जिसका क्षेत्रफल 23,603 वर्ग किमी. तक फैला था। भारत की स्वतन्त्रता के बाद सेन्ट्रल इण्डिया एजेन्सी के पूर्वी भाग के रियासतों को मिलाकर 1948 में इस राज्य का निर्माण किया गया था। इस राज्य की राजधानी रीवा थी। इसके उत्तर में उत्तर प्रदेश एवं दक्षिण में मध्य प्रदेश था। विंध्य क्षेत्र पारंपरिक रूप से विंध्याचल पर्वत के आसपास का पठारी भाग को कहा जाता है। 1948 में भारत की स्वतंत्रता के बाद मध्य प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश,छत्तीसगढ़ में स्थित कुछ रियासतों को मिलाकर विंध्यप्रदेश की रचना की गई थी। इसमें भूतपूर्व रीवा रियासत का एक बड़ा हिस्सा, बघेलखंड, बुंदेलखंड आदि थे। इसकी राजधानी रीवा थी।

इसके उत्तर में उत्तर प्रदेश तथा दक्षिण में मध्य प्रदेश के दतिया तक फैला हुआ था। 1 नवम्बर 1956 को ये सब मिलाकर मध्यप्रदेश बना दिए गए थे। यह क्षेत्र सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण समझा जाता है। सतना, रीवा विंध्य प्रदेश के बड़े नगर है। यह पश्चिम में दतिया, पूर्व मेें सोनभद्र, उत्तर में प्रयागराज, दक्षिण मेें बिलासपुर क्षेत्र तक फैला था। विंध्य प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री पं॰ शंभुनाथ शुक्ल जी थे, जो शहडोल के रहने वाले थे। उनके नाम पर शहडोल में बड़ा शासकीय विश्वविद्यालय है और रीवा विश्वविद्यालय का सांस्कृतिक हाल भी उन्हीं के नाम पर है। राजधानी भोपाल स्थित मंत्रालय में भी पं॰ शंभुनाथ शुक्ल के नाम पर कई कक्ष स्थापित है।



चार साल तक रहा विंध्य प्रदेश का अस्तित्व

आजादी के बाद रीवा स्टेट विंध्य प्रदेश के रूप में अस्तित्व में आया। एक ऐसा प्रदेश जो प्राकृतिक और ऐतिहासिक संपदाओं से परिपूर्ण था। 1952 में पहली बार विंध्य प्रदेश की विस का गठन किया गया। चार साल तक अस्तित्व में रहे इस प्रदेश के विलय का फरमान भी सरकार ने जारी कर दिया। स्थानीय स्तर पर विरोध शुरू हुआ, आंदोलन छेड़े गए। यह पहला अवसर था जब युवाओं और छात्रों के हाथ में आंदोलन की कमान थी। पुलिस की गोलियों से गंगा, चिंताली नाम के दो आंदोलनकारी शहीद हुए। दर्जनों की संख्या में लोग जख्मी हुए।


राज्य स्तर के कार्यालय दिए जाएंगे: नेहरू

बढ़ते विरोध के चलते तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी कहा कि एकीकृत मध्यप्रदेश में शामिल हो रहे राज्यों को मजबूती दी जाएगी, उन्हें राज्य स्तर के कार्यालय दिए जाएंगे। उस दौर को देखने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता घनश्याम सिंह बताते हैं कि विंध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शंभूनाथ शुक्ला और केन्द्र सरकार के बीच कुछ शर्तों को लेकर समझौते हुए थे। शर्तों बारे में मांग भी उस दौरान उठी कि सार्वजनिक किया जाए पर ऐसा नहीं हुआ।



यह क्षेत्र उपेक्षा का शिकार

भाषणों में आश्वासन दिया गया था कि विंध्य प्रदेश को संसाधन उपलब्ध कराए जाएंगे। एक नवंबर 1956 को विंध्यप्रदेश के विलय के साथ नया मध्यप्रदेश अस्तित्व में आया। जिन क्षेत्रों को इसमें शामिल किया गया, उसमें भोपाल, ग्वालियर, इंदौर, जबलपुर आदि को विकसित करने बड़ी योजनाएं दी गईं। तब से लेकर अब तक लगातार यह क्षेत्र उपेक्षा का शिकार होता रहा है। इसे केवल सुदूर जिले की भांति समझा गया। अब भी सबसे अधिक राजस्व यहीं से जा रहा है। उस समय सिंगरौली, शहडोल से दतिया तक का हिस्सा विंध्य प्रदेश में शामिल था।




राज्य स्तर के ये कार्यालय भी चले गए

विंध्यप्रदेश के विलय के बाद रीवा में वन, कृषि एवं पशु चिकित्सा के संचालनालय खोले गए। पूर्व में यहां हाईकोर्ट, राजस्व मंडल, एकाउंटेंट जनरल ऑफिस भी था। धीरे-धीरे इनका स्थानांतरण होता गया। उस दौरान भी यही समझाया गया कि विकास रुकेगा नहीं, लेकिन उस पर अमल नहीं हुआ। इसी तरह ग्वालियर में हाईकोर्ट की बेंच, राजस्व मंडल, आबकारी, परिवहन, एकाउंटेंट जनरल आदि के प्रदेश स्तरीय कार्यालय खोले गए। इंदौर को लोकसेवा आयोग, वाणिज्यकर, हाईकोर्ट की बेंच, श्रम विभाग आदि के मुख्यालय मिले। जबलपुर को हाईकोर्ट, रोजगार संचालनालय मिला था। रीवा के अलावा अन्य स्थानों पर राज्य स्तर के कार्यालय अब भी संचालित हैं, लेकिन यहां की उपेक्षा लगातार होती रही।



-✍️✍️ पंडित पंकज द्विवेदी, संचालक ब्लॉग

Vindhya Pradesh The Land Of White Tiger





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