Saturday, October 31, 2020

विंध्यवासियों को विंध्यप्रदेश राज्य वापस किया जाये

 विंध्यवासियों को विंध्यप्रदेश राज्य वापस किया जाये 



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आज के दिन ही 1 नवंबर 1956 को विंध्यप्रदेश राज्य का विलीनीकरण मध्यप्रदेश मे कर विंध्यवासियों के साथ कुठाराघात किया गया था । विंध्यभारती परिषद् के संयोजक हरिहर प्रसाद तिवारी ने कहा कि विंध्यप्रदेश विंध्य वासियों का है।

  विंध्यप्रदेश राज्य की वापसी विंध्यवासियों का नैतिक अधिकार है । देश की आजादी के बाद लगभग 4 वर्षों तक विंध्य प्रदेश राज्य अस्तित्व में रहा ,और उस दौरान विंध्य के विकास की आधारशिला रखी गयी ,परंतु राजनैतिक षडयंत्रों के तहत अकारण विंध्य प्रदेश राज्य का विलय 1-11-1956 को मध्यप्रदेश राज्य में कर दिया गया । इस विलीनीकरण के दुष्परिणाम और अपमान का दंश विंध्य वासी लगभग 65वर्षों से झेल रहे हैं।  विंध्य प्रदेश राज्य वापसी के लिए  मार्च 2000 में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित होकर केन्द्र सरकार को भेजा गया था , लेकिन उक्त प्रस्ताव को राजनैतिक द्वेश भावना के कारण  संभवतः कूड़ेदान में फेंक दिया गया। जबकि छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तराखंड, तेलंगाना जैसे राज्य पूर्णतः अस्तित्व में आ गये और विकास कार्यो को उंचाइयों तक पहुँचा रहे हैं। 

          हम विंध्यवासियों का विंध्य प्रदेश हमसे छीन लिया गया और हम दूसरे का मुंह निहारते उपेक्षा का दंश झेल रहे हैं। जबकि विंध्य क्षेत्रफल के दृष्टि से बृहद, राजस्व प्राप्ति के मामले में समृद्ध, प्राकृतिक संसाधनों और खनिज संसाधानो का विपुल भंडार है। पर्याप्त उद्योग धंधे है, शिक्षा के समुचित विस्तार के अवसर है। विंध्य के आय से मध्यप्रदेश के अन्य क्षेत्र में विकास कार्य हो रहे हैं, जबकि विंध्यांचल के साथ सौतेला व्यवहार हो रहा है, जिसके कारण विंध्य क्षेत्र विकास के मामले अपेक्षाकृत बहुत पीछे है। 

     

                   आदरणीय हरिहर प्रसाद तिवारी जी


    

विंध्य भारती परिषद् के संयोजक हरिहर प्रसाद तिवारी ने कहा कि  विंध्यप्रदेश का विलय मध्यप्रदेश मे करना विंध्यवासियों के साथ घोर अन्याय था,अब यह अन्याय विंध्य वासी और बर्दास्त नही करेंगे , विंध्यभारती परिषद् के संयोजक हरिहर तिवारी ने कहा कि विंध्यप्रदेश वापसी के लिये हस्ताक्षर अभियान विग वर्ष 2018 से चलाया जा रहा है, अब तक रीवा,सतना सीधी अनूपपुर, शहडोल जिले के लगभग एक लाख लोगों के हस्ताक्षर प्राप्त हो चुके हैं अभी यह जागरूकता अभियान निरंतर गति पर है ।हरिहर प्रसाद तिवारी ने केन्द्र सरकार से आग्रह किया है कि अब विंध्यांचल को मध्यप्रदेश से पृथक कर मार्च 2000 में पारित विधानसभा प्रस्ताव पर समुचित निर्णय ले तथा  विंध्यप्रदेश राज्य विंध्यवासियों को वापस करें ।


 विंध्य प्रदेश राज्य, विंध्यवासियों की सशक्त आवाज है। खास वजह है कि विंध्यप्रदेश राज्य के बिलीनीकरण के 65 साल हो गये आज भी सबसे अधिक गरीबी,भुखमरी और कुपोषण पूर्व विन्ध्य प्रदेश क्षेत्र में है।सबसे अधिक पलायन भी विन्ध्यांचल से ही है, विन्ध्य के अधिकांशं इलाके में सिंचाई और पीने के पानी का संकट है।मध्यप्रदेश में  मध्य भारत, महाकौशल, भोपाल और तत्कालीन  विन्ध्य प्रदेश का तुलनात्मक अध्ययन किया जाय तो सबसे अविकसित क्षेत्र विन्ध्य प्रदेश ही है।यह मांग राजनीतिक नहीं है।इस क्षेत्र का विकास बिना राज्य बने संभव ही नहीं है।



-पंडित पंकज द्विवेदी , संचालक ब्लॉग

Vindhya pradesh the land of white tiger

Saturday, October 24, 2020

माँ बिरासिनी देवी की जो मन से भक्ति करता है उसकी मनोकामना मईया पूरी करती है




10वी शताब्दी में कलचुरी काल के राजा वीर सिंह ने मंदिर का निर्माण किया था। विंध्य क्षेत्र के उमरिया जिले में स्थित बिरसिंहपुर पाली में माँ बिरासिनी देवी का भव्य मंदिर स्थापित है।


नवरात्रि के पर्व में यहां भक्तों का तांता लगा हुआ है। माँ की भव्य आरती देख सुन कर ही चित्त में आत्म शुद्धि का अनुभव होता है।

ऐसी मान्यता है कि जो भी सच्चे मन से मां की भक्ति करता है उसकी मनोकामना मैय्या पूरी करती हैं। माँ अपने भक्तों को कभी निराश नहीं करतीं।

बिरासिनी माता मंदिर बीरसिंहपुर  पाली | birasini mata mandir birsinghpur pali-

बिरासिनी मंदिर में आदिशक्ति स्वरूपा बिरासिनी माता की  10 वीं सदी की  कल्चुरी कालीन काले पत्थर से निर्मित भव्य मूर्ति विराजमान है | यह  पूरे भारत में  माता  काली की उन गिनी चुनी प्रतिमाओं में से एक है । मंदिर के गर्भ गृह में माता के  पास ही भगवान् हरिहर बिराजमान हैं जो आधे  भगवान्  शिव और आधे  भगवान्   विष्णु के रूप हैं | मंदिर के गर्भ गृह के चारो तरफ अन्य देवी देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित हैं | मंदिर परिसर में राधा-कृष्ण , मरही माता, भगवान् जगन्नाथ और शनिदेव के छोटे-छोटे मंदिर भी स्थित हैं | मंदिर सफेद संगमरमर से निर्मित  है |माता की  अलौकिक शक्तियों के कारण लोगों की मनोकामनाएं हमेशा पूरी होती हैं और यहां साल भर लोगों की भीड़ रहती है |

                                 


बिरासिनी माता मन्दिर से जुडी मान्यता -

मान्यतानुसार बिरासिनी माता ने सैंकड़ों वर्ष पूर्व पाली निवासी धौकल नामक व्यक्ति को सपना दिया कि उनकी मूर्ति एक खेत में है जिसे लाकर नगर में स्थापित करो | धौकल नामक व्यक्ति ने मूर्ति लाकर एक छोटी सी मढिया बनाकर माता को बिराजमान कराया | बाद में नगर के राजा बीरसिंह ने एक मंदिर का निर्माण कराकर माता की स्थापना की | 



बिरासिनी माता  मंदिर का पुनर्निर्माण | Rebuilding Of Birasini Mata Temple -

बीरसिंहपुर पाली बिरासिनी माता के प्राचीन मंदिर का पुनर्निर्माण का प्रारंभ जगतगुरु शंकराचार्य द्वारका  शारदा पीठाधीश्वर स्वामी श्री स्वरूपानन्द  सरस्वती जी के पावन करकमलों द्वारा माघ शीर्ष कृष्ण पक्ष गुरुवार विक्रम संवत २०४६ ( दिनांक 23 नवम्बर 1989 ) को किया गया और बीरसिंहपुर कालरी /SECL/सभी दानदाताओं के सहयोग से लगभग सत्ताईस लाख रूपये में माता के संगमरमर के भव्य मंदिर पूर्ण हुआ | मंदिर का वास्तुचित्र , वास्तुकार श्री विनायक हरिदास NBCC नई दिल्ली द्वारा निशुल्क प्रदान किया गया |  बिरासिनी माता देवी मंदिर का जीर्णोद्धार का समापन कार्यक्रम , पुनः प्राण प्रतिष्ठा, कलश शिखर प्रतिष्ठा गुरूवार वैशाख शुक्र सप्तमी संवत् २०५६ (22 अप्रेल 1999 ) जगतगुरु शंकराचार्य पुरी पीठाधीश्वर स्वामी श्री निश्चलानंद सरस्वती जी के शुभाशीष से संपन्न हुआ |

माता बिरासिनी देवी के मंदिर परिसर में दो मुख्य प्रवेश द्वार है और एक द्वार पीछे के तरफ है | मंदिर पूरी तरह संगमरमर से निर्मित है | मंदिर के गर्भ गृह में माता बिरसिनी (काली माता)  बिराजमान हैं  | मंदिर के गर्भ गृह के चारो तरफ अन्य देवी देवताओं के छोटे-छोटे मंदिर भी हैं | मंदिर के बाजू में मुंडन स्थल है | मुंडन स्थल के सामने ज्योति कलश स्थल है जो एक विशाल तलघर रूपी हाल है जिसमें नवरात्र में लोगों द्वारा हजारों घी और तेल के ज्योति कलशों की स्थापना की जाती है | मंदिर परिसर  में ही मंदिर का समिति  कार्यालय , छोटी धर्मशाला  और भण्डारा स्थल है |



नवरात्र और जवारा विसर्जन 

बीरसिंहपुर पाली बिरासिनी माता के  मंदिर में वर्ष में दो बार शारदेय और चैत्र  में नवरात्र पूजा बड़े ही धूम-धाम से मनाई जाती है | जिसमें ना केवल आस-पास के लोग अपितु देश-विदेश  से लोग अपनी मनोकामनायें मांगने के लिए आते हैं और मनोकामनायें पूरी होने पर विभिन्न प्रकार के धार्मिक अनुष्ठान भी करते हैं | नवरात्र के पहले दिन कलश स्थापना की जाती है | यहां हजारों कि संख्या में घी,तेल और जवारे के कलश स्थापित किये जाते हैं | ज्योति कलश हेतु एक विशाल हाल की व्यवस्था है | जवारे हेतु दो मंजिला व्यवस्था की जाती है | श्रध्दालुओं द्वारा मनोकामना कलश स्थापित करने हेतु मंदिर प्रबंध संचालन समिति द्वारा बहुत अच्छी व्यवस्था की जाती है जिसमेंकोई भी व्यक्ति निश्चित राशि जमा करके घी जवारे कलश, तेल जवारे कलश , मनोकामना कलश,आजीवन घी जवारे कलश ,आजीवन तेल जवारे कलश स्थापित कर सकते हैं  | पूरे नवरात्र में मंदिर परिसर में बच्चो के मुंडन , कर्ण छेदन की व्यवस्था की जाती है | सांथ ही मंदिर समिति और अन्य लोगों द्वारा भण्डारे भी करवाये जाते हैं  और पुरे नौ दिन माता का श्रृंगार , भोग ,पूजा अर्चना बड़े ही श्रध्दा भक्ति से की जाती है | माता बिरासिनी के दरवार सोने-चांदी  के जेवरात सहित लाखो का चढ़ावा चढ़ाया जाता है |

बिरासिनी माता के जवारे विसर्जन बहुत ही प्रसिद्ध है जिसमें हजारों के संख्या  में महिला/पुरुष  जवारे विसर्जन में सम्मिलित होते हैं |


2 मंजिल में बोई जाती है ज्वार

जवारों और प्राचीन प्रतिमा को लेकर प्रसिद्ध इस मां बिरासिनी मंदिर में इस बार २७ हजार से ज्यादा जवारे बोए जा सकते हैं। दो मंजिला में जवारों को बोया जाता है। अभी एक मंजिला पूरा जवारों से भर गया है।दूसरे मंजिल में भी जवारे बोने शुरू किया जाएगा। माता बिरासिनी के दरबार मे श्रद्धालुओ द्वारा मनोकामना कलश स्थापित करने के लिए मन्दिर प्रबन्ध संचालन समिति के द्वारा बेहतर व्यवस्था की गई है। इसके साथ ही मंदिर परिसर में जवारे बोना शुरू कर दिया गया है। भक्तिमय माहौल के बीच जवारों का विसर्जन किया जाता है। इस साल भी १५ हजार से ज्यादा जवारे बोए जा रहे हैं।


बीरसिंहपुर पाली कैसे पहुंचें | How to Reach Birsinghpur Pali - 

रेल मार्ग -   बीरसिंहपुर पाली बिलासपुर – कटनी ट्रेन रूट पर स्थित है | बीरसिंहपुर पाली स्टेशन से बिरसिनी माता मंदिर की दूरी 1/2 (आधा) किलोमीटर है |

सड़क मार्ग-  बीरसिंहपुर पाली  की सड़क मार्ग से जिला मुख्यालय उमरिया से दूरी- 40 किमी० ,शहडोल से दूरी- 38 किमी० ,नौरोजाबाद से -9 किमी० , डिन्डोरी से 77 किमी० , जबलपुर से 150 किमी० , अमरकंटक और बांधवगढ़ से दूरी क्रमशः 70 किमी० और 144 किमी० है | 

वायु मार्ग- निकटतम एयरपोर्ट जबलपुर 150 किलोमीटर है |

#विंध्यप्रदेश , #विंध्य , #बिरासिनीमन्दिर 


-✍️✍️ पंडित पंकज द्विवेदी, संचालक ब्लॉग
VINDHYA PRADESH THE LAND OF WHITE TIGER

Tuesday, October 20, 2020

जलजलिया माँ भक्तों की करती है मनोकामना पूरी ,पहाड़ से हुई थी प्रकट




जलजलिया माँ

सिंगरौली के माड़ा में मौजूद है देवी मंदिर, आदिमानव काल से जुड़ा है इतिहास। श्रृंगी ऋषि की तपोभूमि मध्य प्रदेश के सिंगरौली में वैसे तो कई दर्शनीय स्थल हैं पर माड़ा की जलजलिया मां की बात ही निराली है।


 श्रृंगी ऋषि की तपोभूमि मध्य प्रदेश के सिंगरौली में वैसे तो कई दर्शनीय स्थल हैं पर माड़ा की जलजलिया मां की बात ही निराली है। कहते हैं मां जलजलिया पहाड़ से प्रकट हुई हैं और हर भक्त की मनोकामना पूरी करती हैं। इस स्थान को आदि मानवकाल से जोड़कर भी देखा जाता है। सिंगरौली रेलवे स्टेशन से करीब 60 किमी. पर स्थान है।


ऊंचे पहाड़ों हरे-भरे जंगलों से आच्छादित यह स्थान बड़ा ही रमणीय है। माड़ा की आदिमानव काल की गुफाओं की श्रृंखला के बीच मां जलजलिया का मंदिर है। पुजारी बताते हैं मां जलजलिया पहाड़ तोड़कर अवतरित हुई हैं।


निर्मल धारा सदा प्रवाहित

विशाल पहाड़ के नीचे से जल की अविरल निर्मल धारा सदा प्रवाहित होती है। इस जलधारा के बारे में कहा जाता है कि पहाड़ के नीचे क्षीर सागर है जहां से यह जलधारा आती है। सदियों पहले देवी की मूर्ति स्थापित कर मां जलजलिया के नाम से लोग उपासना करने लगे। धीरे-धीरे मां की कृपा से लोगों के दुख दर्द दूर हुए और यहां आस्था का मेला लगने लगा।

©vindhyapradeshthelandofwhitetiger


पहाड़ों को काटकर बनाई गई गुफाएं

यहां देशभर से श्रृद्धालू मां के दर्शन के लिए आते हैं। मन्नतें रखते हैं। मां को चुनरी भेंट करते हैं। नारियल रेवड़ी का प्रसाद चढ़ाते हैं। माथा टेक मां से आशीर्वाद लेते हैं। इस स्थान को आदिमानव काल से जोड़ कर देखा जाता है। इसकी वजह माड़ा की गुफाएं हैं। जो आदिमानव काल की हैं। पहाड़ों को काटकर बनाई गई हैं। इन्हीं गुफाओं की श्रृंखला के बीच यह देवी स्थान हैं।


पर्यावरण की दृष्टि से बहुत ही रमणीय स्थल

उसी पहाड़ में है जिसमें माड़ा की 'रावण' गुफा है। इस स्थान की खूबी यह है कि धार्मिक केंद्र तो है ही, पर्यावरण की दृष्टि से भी बहुत रमणीय स्थल है। यहां चहुंओर घनघोर जंगल है। पक्षियों का कलरव सुन आनंद की अनुभूति होती है तो सदानीरा झरने देख मन शीतल हो जाता है। हरी-भरी वादियों के बीच शांति और सुकून मिलता है। इस स्थान तक पहुंचने के लिए बस और आटो मुख्य साधन हैं। बैढऩ बस अड्डे से माड़ा तक बसें चलती हैं तो सिंगरौली रेलवे स्टेशन और बस अड्डे से आटो कर भी जाया जा सकता है।

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शेषनाग करते हैं यहां शिव का जलाभिषेक

वाकई अद्भुत दृश्य है यहां। मां जलजलिया के स्थान से कुछ ही कदम पर शिवलिंग स्थापित है। जिनके ऊपर शेषनाग के फन से जलधारा निरंतर गिरती रहती है अर्थात शेषनाग भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं। यह जलधारा मां जलजलिया के स्थान से निकलकर शेषनाग के शरीर में प्रवेश करती है। स्थानीय लोगों का कहना है कि कई पीढिय़ों से सुनते हैं कि यह जलधारा कभी रुकी नहीं। यह चमत्कार सदियों से बरकरार है।

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मकर संक्रांति को जुटता है आस्था का सैलाब

यूं तो हर रोज श्रद्धालू यहां पहुंचते हैं लेकिन मकर संक्रांति को यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालू आते हैं। पुजारी पं. रामानुह बताते है कि इस दिन आस्था चरम पर होती है। यह दिन मां जलजलिया का विशेष दिन है। हवन, यज्ञ, अनुष्ठान और कई तरह के संस्कार यहां पर संपन्न कराए जाते हैं। इसके अलावा श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन भी श्रद्धालू पूजन-अर्चन करते है। महिलाएं इस दिन अधिक संख्या में पहुंचती हैं। सावन में भी श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है।

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छत्तीसगढ़ में मां के अपार भक्त

मां जलजलिया जिस स्थान पर विराजीं हैं वहां से छत्तीसगढ़ की सीमा महज कुछ किमी. दूर है। पहाड़ पार करते ही मध्य प्रदेश की सीमा समाप्त और छत्तीसगढ़ की सीमा शुरू हो जाती है। इसलिए छत्तीसगढ़ की सीमावर्ती गांवों मेंं मां के अपार भक्त हैं। मां की महिमा का गुणगान वहंा खूब होता है।

-✍️✍️पंडित पंकज द्विवेदी  संचालक ब्लॉग
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रीवा_एयरपोर्ट के निर्माण से विन्ध्य के विकास को मिलेगा नया आयाम

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