Monday, November 25, 2019

बांधवगढ़: शयन मुद्रा में भगवान विष्णु


ये है शिवपुराण का रहस्यमयी पहाड़
सिर्फ किला ही नही ये पूरा का पूरा पहाड़ ही रहस्यमय और अद्भुत है। आज हम आपको इसी किले, पहाड़ के बारे में बता रहे हैं।


अब तक आपने भगवान विष्णु की अनेक प्रतिमाएं देखी होंगी। क्षीर सागर में विश्राम मुद्रा में उनका स्वरूप कम ही देखने मिलता है। आज हम आपको ऐसे ही स्थान पर ले जा रहे हैं। जो है तो एक किले में लेकिन राष्ट्रीय उद्यान के लिए पहचाना जाता हैै। भगवान विष्णु की विशालकाय प्रतिमा अति आकर्षक एवं रहस्यात्मक है। मध्यप्रदेश उमरिया जिले में स्थित बांधवगढ़ में। जिसे आमतौर पर लोग नेशनल पार्क के लिए जानते हैं। इस अद्भुत किले बांधवगढ़ का नाम यहां मौजूद एक पहाड़ के नाम पर ही रखा गया है और इस पहाड़ पर ही स्थित है ये रहस्यमयी किला जिसका निर्माण करीब 2 हजार साल पहले कराया गया था। सिर्फ किला ही नही ये पूरा का पूरा पहाड़ ही रहस्यमय और अद्भुत है। आज हम आपको बांधवगढ़ के इसी किले, पहाड़ के बारे में बता रहे हैं।

राजा व्याघ्रदेव रीवा रियासत के महाराज द्वारा इसके निर्माण की जानकारी सामने आती है। इसका उल्लेख नारद-पंच और शिव पुराण में भी मिलता है। इस किले के अंदर जाने के लिए एक ही मार्ग है, जो घने जंगलों से होकर जाता है। इसके अंदर एक सुरंग बनी हुई थी जो सीधे रीवा निकलती थी।



राजा गुलाब सिंह और उनके पिता मार्तण्ड सिंह जुदेव इसका इस्तेमाल खूफिया किले के रूप में करते थे। यहां कई गुप्त रणनीतियां बनायीं जाती थीं। किले की सीमा में ही भगवान विष्णु के 12 अवतारों की प्रतिमाएं पत्थरों को तलाशकर बनाई गई हैं। इनमें कच्छप स्वरूप और शेष शैया पर आराम की मुद्रा में भी भगवान विष्णु के दर्शन होते हैं।



कहते हैं कि भगवान राम ने लंका से लौटकर लक्ष्मण के लिए यहां एक किला बनवाया था। इसमें कितना सत्य और कितना मिथक है ये नही कहा जा सकता। अब किले के आस-पास जंगलों में टाइगर और दूसरे खतरनाक जानवर घूमते हैं। बताते हैं कि बांधवगढ़ में माघ, मौर्य, वाकाटक, सेंगर, कलचुरी और बघेलों ने राज किया।

Bandhavgarh fort




इस किले का इतिहास टीपू सुल्तान से जुड़ा होना भी बताया जाता है। कहते हैं कि 6 माह के लगातार प्रयास के बाद भी वह इस पर विजय प्राप्त नहीं कर सका था। यही नही यहां अंदर सात ऐसे तालाब हैं जो अब तक कभी भी सूखे नही हैं। किसी भी मौसम में इनमें पानी लबालब भरा रहता है। अब यहां की देखरेख शासन द्वारा की जाती है। घने जंगल और सघन मार्ग होने की वजह से अब किले के अंदर जाने पर रोक लगा दी गई है।


-पंडित पंकज द्विवेदी  संचालक ब्लॉग
Vindhya pradesh the land of white tiger

Sunday, November 24, 2019

देउर कोठार : जहा 2 हजार साल प्राचीन बौद्ध स्तूपो और 5 हजार साल प्राचीन शैल चित्रों की श्रृंखला

रीवा। देउर कोठार का नाम केवल देश के इतिहासकार ही नहीं लेते हैं बल्कि विदेशों में भी इसका पुरातात्विक एवं सांस्कृतिक महत्व है। यहां लगभग 2 हजार वर्ष पुराने बौद्ध स्तूप और लगभग 5 हजार वर्ष प्राचीन शैलचित्रों की श्रृंखला मौजूद है। जो 1982 में प्रकाश में आए थे। ये स्तूप सम्राट अशोक के शासनकाल में ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी के निर्मित हैं।
देउर कोठार स्थान, रीवा-इलाहाबाद मार्ग एचएन-27 पर सोहागी पहाड़ से पहले कटरा कस्बे के समीप स्थित है। यहां मौर्य कालीन मिट्टी ईट के बने 3 बड़े स्तूप और लगभग 46 पत्थरों के छोटे स्तूप बने है। अशोक युग के दौरान विंध्य क्षेत्र में बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार हुआ और भगवान बौद्ध के अवशेषों को वितरित कर स्तूपों का निर्माण किया गया।

बौद्ध स्तूपों की सबसे बड़ी श्रंखला
देउर कोठार के बौद्ध स्तूपों का समूह सबसे बड़ा बौद्ध स्तूप समूह है जिसमें पहला बौद्ध स्तूप ईंटों द्वारा बनाया गया था। एक मौर्यकालीन स्तम्भ भी है जिसमें एक शिलालेख भी है जिसकी शुरुआत भगवतोष् से होती है। पुरातत्ववेत्ता नारायण व्यास बताते हैं कि देउर कोठार में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा खुदाई कराई जा रही थी। जिनकी टीम में वो भी शामिल थे। जिसमें उन्हें मन्नत शिलालेखों के साथ साथ कुछ रेलिंग के टुकड़े भी मिले थे। देउर कोठार पर आधारित एक पुस्तिका का भी प्रकाशन हुआ है।

कभी यहां से था व्यापारिक मार्ग
 यह क्षेत्र कौशाम्बी से उज्जैनी अवंतिका मार्ग तक जाने वाला दक्षिणपक्ष का व्यापारिक मार्ग था। इसी वजह से बौद्ध के अनुयायियों ने यहां पर स्तूपों का निर्माण किया होगा। ऐसा कहा जाता है कि देउर कोठार में भरहुत से अधिक प्राचीन स्तूप है। यहां बौद्ध भिक्षू अत्यात्मिक स्थल बनाकर शिक्षा-दिक्षा और साधना करते रहे होगें। इसके प्रमाण यहां मिलते है। बौद्ध धर्म के अनुयायियों का विंध्य क्षेत्र शिक्षण केन्द्र था। इसके प्रमाण देउर कोठार मे मिलते है। यहां पर खुदाई के दौरान मौर्य कालीन ब्राही लेख के अभिलेख, शिलापट्ट स्तंभ और पात्रखंड बडी संख्या में मिले।
यहां से आते हैं बौद्ध धर्मावलम्बी
श्रीलंका, नेपाल, म्यांमार, भूटान, थाईलैंड, चीन आदि जैसे देशों से बौद्ध धर्मावलम्बी भारी संख्या में देउर कोठार आते हैं। वो सबसे ज्यादा बौद्ध स्तूपों को ही देखना पसंद करते हैं और उन पर शोध भी करते हैं। देउर कोठार सहित सतना में भरहुत, मानपुर के बौद्ध स्तूपों को राष्ट्रीय बौद्ध टूरिज्म सर्किट में शामिल किए जाने की चर्चा है। अगर ऐसा होता है तो इन देशों के बौद्ध धर्मावलम्बी की संख्या बढ़ेगी और पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा।

- पंडित पंकज द्विवेदी  संचालक ब्लॉग
Vindhya pradesh the land of white tiger

Wednesday, November 13, 2019

TAMRA Rewa

TAMRA REWA-
 Tamra is a village in huzur tehsil,Rewa district madhya pradesh india.its a Rewa division,located 12 km south of Rewa city by Nipania-Tamra Road,satna 51 km to the east of district and 478 km from the state capital bhopal.tamra pincode is 486006.the head post office is at chorahta.

The nearest village are bansi(2km),amiri ti(3km),mukundpur(1.5km),govind garh(10km),rausar(6km),nipaniya(11 km),

The nearest cities are Rewa,satna,sidhi,singrauli,shahdol, allhabad,govindgarh,maihar,chitrakoot etc. The local language are hindi and bagheli

TOURIST PLACE
1. Padui hanuman mandir Tamra

2. Devi dai mata mandir

3.world first  White tiger safari mukundpur(near1.5 km)


रीवा_एयरपोर्ट के निर्माण से विन्ध्य के विकास को मिलेगा नया आयाम

👉#रीवा_एयरपोर्ट के निर्माण से विन्ध्य के विकास को मिलेगा नया आयाम 👉प्रधानमंत्री श्री Narendra Modi बनारस से वर्चुअली करेंगे रीवा एयरपोर्ट ...