Friday, March 6, 2020

भगवान जगन्नाथ का महाप्रसाद आटिका महापर्व मुकुन्दपुर , विंध्यप्रदेश


मुकुंदपुर का आटिका महापर्व

रीवा राज्य के 25 वे महाराजा भाव सिंह जूदेव ने सन 1684-85 में पुरी (उड़ीसा) से भगवान जगन्नाथ जी ,बलभद्र एवं सुभद्रा माता की विशाल प्रतिमाएं स्थापित कराकर आटिका महाप्रसाद की परंपरा की सुरुआत की थी । कहा जाता है कि रीवा महाराजा स्वयं उपस्थित होकर यहाँ का महोत्सव संपन्न कराते थे किंतु बाद में आटिका महाप्रसाद की परंपरा बीच में बंद हो गयी थी । वर्ष 1947 में देश आजाद होने के बाद मुकुंदपुर के स्थानीय निवासी  पंडित ब्रजवासी राम शुक्ल , बिहारीलाल गुप्त एवं मुखिया श्यामसुंदर त्रिपाठी ने एक आटिका कमेटी का गठन आसपास के ग्रामो का जनसहयोग लेकर पुनः विधिवत आटिका महाप्रसाद महोत्सव मनाने का कार्यक्रम प्रारम्भ कराया तब से यह उत्सव निरंतर उत्तरोत्तर विकासोंन्मुख है ।
फाल्गुन की पूर्णमासी एवं चैत्र मास की प्रतिपदा को दो दिवसीय इस महोत्सव में यहाँ मेला लगता है । भक्त प्रहलाद के नाटक के साथ विविध मनोरंजक कार्यक्रम होते है तथा दोपहर 12 बजे भगवान को भोग लगाने के बाद आटिका महाप्रसाद का वितरण प्रारम्भ होता है जो रात्रि 12 बजे तक चलता है ।

अब आटिका महाप्रसाद चढाने का जिम्मा व्यक्तिशः हो गया है। धनी -मानी लोग प्रबंधन समिति में आवेदन लगाकर इसका पूरा खर्च उठा लेते है ।
इस वर्ष 10 मार्च 2020 को आटिका महाप्रसाद महापर्व मनाया जायेगा जिसमे आटिका महाप्रसाद चढाने का सौभग्य मुकुंदपुर के श्री दया गुप्ता पिता स्व. यज्ञनारायण गुप्ता को प्राप्त हुआ है । इसके पूर्व प्रबंधन समिति के सहयोग से दिनाँक 2 मार्च 2020 से साप्ताहिक भागवत महापुराण ज्ञान यज्ञ भी आयोजित किया गया है ।


व्यक्तिशः आटिका महाप्रसाद चढ़ाने वालो की सूची -

1. श्री शिवदीन गुप्ता सतना वर्ष 1952
2. श्री हीरालाल चिकवा मुकुंदपुर वर्ष-1982
3. श्री रामनिवास गुप्ता रामनगर वर्ष- 1989,90,93,95
4. श्रीमती लल्ली देवी पति सौखिलाल  गुढ़  वर्ष-1996
5. श्री गंगा प्रसाद गुप्ता रामपुर नैकिन  वर्ष- 1997
6. साधूलाल गुप्ता रायपुर कर्चुलियान वर्ष-1998
7.बघेल परिवार जमुना,कस्तरा, सुकुलगंवा  वर्ष -1999
8. विजयकुमार गुप्त हिनौती (सतना) वर्ष-2000,2001,2002
9.गंगा सिंह बुढगौना (सीधी)वर्ष- 2003
10. बद्री प्रसाद त्रिपाठी मुकुंदपुर  वर्ष- 2004
11. मंदिर प्रबंधन समिति मुकुंदपुर , वर्ष- 2005
12. रामाधार गुप्ता न्यू रामनगर , वर्ष-2006
13. जगदीश प्रसाद गुप्ता कोठीवाल सीधी , वर्ष-2007
14. महादेव प्रसाद तिवारी मुकुंदपुर , वर्ष-2008
15. डॉ. राजेंद्र कुमार सिंह (पूर्वमंत्री) अमरपाटन, वर्ष-2009
16.बघेलपरिवर जमुना, कस्तरा,शुक्लगवाँ वर्ष 2010
17.बड़ा अखाडा मैहर +प्रतीक त्रिपाठी मुकुंदपुर , वर्ष -2011
18.सुरेंद्र ताम्रकार (पान वाले ) फोर्ट रोड रीवा, वर्ष-2012
19.मुन्नालाल गुप्ता रिमड़ा अमरपाटन, वर्ष-2013
20.हनुमान समिति कृष्णम भइया भीषमपुर, वर्ष-2014
21.श्रीमती रामसखी पत्नी रामहित्त गुप्त सतना,वर्ष-2015
22.जयपाल सिंह तिवारी मढ़ी मुकुंदपुर, वर्ष 2016
23. धर्मेंद्र सिंह तिवारी मढ़ी (मुकुंदपुर) वर्ष-2017
24. हरीश त्रिपाठी नकटी(वर्तमान- नायनपुर) , वर्ष-2018
25.मोहन लाल ताम्रकार , वर्ष-2019
26.दया गुप्ता  मुकुंदपुर , वर्ष-2020

2030 तक आटिका की बुकिंग-

श्री जगन्नाथ मंदिर मुकुंदपुर की आस्था का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2030 तक आटिका प्रसाद की बुकिंग हो चुकी है । अगर कोई चाहे इससे पहले आटिका चढ़ता तो होली के फगुआ के दिन तो संभव नहीं है। इसके लिए पूर्णिमा का विकल्प रखा गया है ।
जगन्नाथ भगवान के आटिका का महाप्रसाद लेने   बड़ी दूर-दूर से लोग आते  है रीवा,सतना, सीधी,सिंगरौली ,शहडोल,गोविन्दगढ़,मैहर, इतियादि जगह से आते है


✍✍✍✍----- पंडित पंकज द्विवेदी
संचालक ब्लॉग- Vindhya pradesh the land of white tiger

Wednesday, March 4, 2020

यहाँ विस्तार से जानिए, बाघो की पहली पसंद क्यों रहे विंध्य के जंगल

Vindhya pradesh the land of White Tiger


World wildlife Day ;  यहाँ विस्तार से जानिए, बाघों की पहली पसंद क्यों रहे, विंध्य के जंगल

विंध्य में वनों की विविधता से जंगल बने रहे बाघों का बसेरा
- दूसरे हिस्सों से आकर अब भी विंध्य के जंगलों में भ्रमण कर रहे हैं बाघ

world wildlife Day, Vindhya forests are the first choice of tigers
रीवा. विंध्य के जंगलों से बाघों का गहरा नाता रहा है। लंबे समय से यहां पर इनका बसेरा रहा है। इन जंगलों में वह सभी संसाधन मौजूद रहे हैं जो बाघों एवं अन्य जानवरों को आकर्षित करते रहे हैं। यहां का भौगोलिक परिदृश्य ऐसा रहा है कि बाघों को उनकी इ'छा के अनुरूप ठहरने और टहलने में कोई रुकावट नहीं होती थी। अब से करीब पांच दशक पहले तक बाघों को मारने में कोई प्रतिबंध नहीं था, इस वजह से बड़ी संख्या में इनका शिकार भी होता था, इसके बावजूद देश के अलग-अलग हिस्सों से यहां पर आते रहे हैं। इस क्षेत्र के जंगलों की संरचना ऐसी रही है कि ऊंचे पहाड़ों में घने वन रहे और उनके नीचे नदियों की श्रृंखला रही है। कुछ जगह तो जलप्रपात भी हैं, जिसकी वजह से पानी की जरूरत भी पूरी हो जाती थी। देश में घटती बाघों की संख्या के चलते साठ के दशक से ही जंगल एवं बाघों की सुरक्षा की चर्चा शुरू हो गई थी। इसे कानूनी रूप देने में करीब दस वर्ष का समय लगा और बाघों को विशेष दर्जा देते हुए इनके संरक्षण की शुरुआत की गई। लगातार घटती संख्या का असर विंध्य में भी पड़ा, यहां के जंगलों से बाघ गायब हो गए। लगातार प्रयास होते रहे, जिसकी वजह से अब नेशनल पार्क, ह्वाइट टाइगर सफारी और चिडिय़ाघर स्थापित कर फिर से बाघों की वापसी की गई है। साथ ही अन्य जानवरों की संख्या बढ़ाने के प्रयास शुरू हुए हैं।


- दूसरे जंगल छोड़कर यहां भागकर आ रहे बाघ
पहले देश भर में विंध्य बाघों को लेकर चर्चा रहा है। इनदिनों एक बार फिर यह क्षेत्र बाघों की पसंद का क्षेत्र बनता जा रहा है। पन्ना के नेशनल पार्क से जो बाघ निकलते हैं वह इसी ओर आते हैं। पन्ना से निकलकर सतना के सरभंगा से लेकर रीवा के सेमरिया के जंगल तक बाघ पहुंच रहे हैं। इनदिनों इसी क्षेत्र में ही छह से आठ के बीच में बाघों ने अपना डेरा जमा रखा है। इसी तरह बांधवगढ़ के नेशनल पार्क से निकलने वाले बाघ सीधी के मझौली, सतना के रामनगर, रीवा के गोविंदगढ़ के जंगल तक पहुंच रहे हैं। बीते साल ही करीब आधा दर्जन ऐसी घटनाएं हुई जिसमें गांवों तक बाघ पहुंचे हैं। रीवा जिले के डढ़वा गांव में करीब आठ घंटे तक बाघ की मौजूदगी से पूरे जिले में हड़कंप मच गया था। कई टीमों ने इसे रेस्क्यू कर सीधी के नेशनल पार्क में छोड़ा। इससे यह साबित होता है कि अब भी यहां के जंगल बाघों के अनुकूल हैं, जिसकी वजह से दूसरे क्षेत्रों से आकर यहां पर बाघ ठहरने का प्रयास कर रहे हैं।
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बाघों को मारने पर लगाया प्रतिबंध
वाइल्ड लाइफ संरक्षण को लेकर रीवा लंबे समय से प्रमुख केन्द्र के रूप में जाना जाता रहा है। 1951 में एक ऐसा घटनाक्रम हुआ कि उसके बाद से इस क्षेत्र में बाघों का संरक्षण शुरू हो गया। महाराजा मार्तण्ड सिंह को सीधी के कुसमी के जंगल में शिकार के दौरान बाघ का शावक मिला जो सफेद रंग का था। उसे पकड़वाकर गोविंदगढ़ लाया गया और किले में रखा गया। उस दौर में बाघों का जो जितना अधिक शिकार करता था, उसी के अनुरूप उसका वैभव भी माना जाता था। रीवा, सतना एवं सीधी के जंगलों में शिकार करने के लिए दूसरे राÓयों के राजा-महाराजा भी बुलाए जाते थे। साथ ही अन्य शिकारी भी चोरी-छिपे मारते रहे हैं। कुछ वर्षों के बाद मार्तण्ड सिंह ने बाघों का शिकार नहीं करने की घोषणां की और विंध्य के आम लोगों से भी इसकी अपील की। विंध्य प्रदेश के समय इन्हें विशेष शक्तियां भी मिली हुई थी, इस वजह से बाघों का शिकार धीरे-धीरे बंद होने लगा। बाद में केन्द्र सरकार ने वन एवं वन्यप्राणी संरक्षण अधिनियम बनाया, जिसमें बाघों के साथ ही जंगल के सभी जानवरों को मारने पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
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- इंसान से अधिक सम्मान बाघ को मिला
वन्य जीवों के संरक्षण को लेकर अब दुनियाभर में प्रयास शुरू किए जा रहे हैं। इसकी शुरुआत अब से 70 वर्ष पहले ही रीवा में हो गई थी। यहां गोविंदगढ़ किले में रखे गए पहले जीवित सफेद बाघ मोहन को लोगों की ओर से ऐसा सम्मान दिया गया, जो इंसान से भी अधिक था। महाराजा मार्तण्ड सिंह ने सफेद बाघ मोहन को आप कहकर संबोधित करते थे। इसका असर किले के व्यक्ति पर हुआ और यहां पर आने वाला हर कोई मोहन को उसी तरह का सम्मान देता था। कहा जाता है कि उस समय मोहन के सम्मान में उसके बाड़े के पास कोई तेज आवाज से नहीं बोलता था। इसी से वन्यजीवों के प्रति लगाव भी क्षेत्र के लोगों का बढ़ा। मोहन की जब मौत हुई थी तो उसका राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। इतना ही नहीं कई दिनों तक रीवा के साथ ही आसपास के जिलों में भी शोक सभाएं आयोजित की गई। कुछ समय पहले दिल्ली के एक प्रोफेसर ने शोध में यह बताया था कि देश में वन्य जीवों में जितना सम्मान मोहन को मिला, दूसरे जानवरों को नहीं मिला है।
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सफेद बाघों को खुले जंगल में छोडऩे का प्रयोग
सफेद बाघों को लेकर देश के साथ ही दुनिया के कई हिस्सों में शोध हुए हैं। दावा है कि वर्तमान में जहां पर भी सफेद बाघ मौजूद हैं, वह रीवा से भेजे गए पहले सफेद बाघ मोहन के वंशज हैं। लंबे अंतराल के बाद विंध्य के मुकुंदपुर जंगल में एक प्रयोग किया गया और दुनिया की पहली ह्वाइट टाइगर सफारी बनाई गई। यहां पर पहले एक सफेद बाघिन को छोड़ा गया, इसके बाद एक बाघ भी छोड़ा गया। इनदिनों सफेद बाघ का जोड़ा सफारी के खुले जंगल में विचरण कर रहा है। अब तक जहां पर भी सफेद बाघ रहे हैं, उन्हें चिडिय़ाघरों में ही रखा जाता रहा है। लेकिन इनके वंश को बढ़ाने की लगातार उठ रही मांगों के बीच खुले जंगल में छोडऩे की योजना भी सरकार की ओर से बनाई जा रही है। मिली जानकारी के अनुसार मध्यप्रदेश की सरकार ने वर्ष 2012 में ही एक प्रस्ताव नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथारिटी को प्रस्ताव भेजा था। उस दौरान भारतीय वन्यजीव संस्थान ने अनुमति नहीं दी थी। कुछ समय पहले ही संस्थान की ओर से नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथारिटी को कहा गया है कि सफेद बाघों को जंगल में बसाया जा सकता है। अब तक यह कहा जाता रहा है कि चिडिय़ाघरों में रहने की वजह से इन बाघों को खुले जंगल में नहीं रखा जा सकता, इनके लिए खुला जंगल उपयुक्त नहीं होगा। लेकिन मुकुंदपुर के ह्वाइट टाइगर सफारी में लगातार करीब चार वर्षों से रह रहे बाघों की रिपोर्ट के साथ ही अन्य कई स्थानों पर अध्ययन के बाद माना गया है कि खुले जंगल में सफेद बाघों को रखा जा सकता है। प्रदेश सरकार ने भी विंध्य क्षेत्र में ही यह प्रयोग करने की तैयारी की है। जिसमें सीधी जिले के संजयगांधी नेशनल पार्क को चिन्हित किया जा रहा है। यहां पर अब रायल बंगाल टाइगरों के बीच ही सफेद बाघ को भी जंगल में छोड़ा जाएगा। इसमें सीधे चिडिय़ाघर के बाघ नहीं छोड़े जाएंगे बल्कि सफारी में कुछ दिन पहले के बाद ही जंगल में छोड़ा जाना है।
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वन्यप्राणियों के प्रति लगाव बढ़ाने का माध्यम बना चिडिय़ाघर
विंध्य क्षेत्र के जंगलों में बाघों के साथ ही हिरणों की प्रजाति के बड़ी संख्या में जानवरों का ठिकाना रहा है। यहां लोगों में जानवरों के प्रति जानने की जिज्ञासा भी रही है। पहले बांधवगढ़ और पन्ना में नेशनल पार्क बनाया गया, इसके बाद सीधी जिले में सबसे बड़े भौगोलिक क्षेत्र का संजयगांधी नेशनल पार्क स्थापित किया गया। बाद में छत्तीसगढ़ राÓय के गठन के चलते बड़ा हिस्सा सरगुजा और कोरिया जिलों में चला गया। सीधी जिले में ही काले मृगों का संरक्षण करने के लिए बगदरा अभयारण्य भी बनाया गया है। इतना ही नहीं कि विंध्य केवल बाघों और हिरणों तक सीमित रहा हो, सोन नदी में मगरों के लिए भी क्षेत्र आरक्षित किया गया है। कुछ समय पहले ही विंध्य क्षेत्र के मुकुंदपुर में चिडिय़ाघर और ह्वाइट टाइगर सफारी की शुरुआत हुई है। इसकी वजह से वन्यजीवों के प्रति क्षेत्र के लोगों को जानकारी भी हो रही है। दूर-दूर से लोग चिडिय़ाघर के जानवरों को देखने के लिए आते हैं। बाड़ों के बाहर से ही जानवरों की तस्वीरें लेकर लोग इनके बारे में अपनी प्रतिक्रियाएं सोशल मीडिया पर व्यक्त कर रहे हैं। वन्यजीवों के प्रति जानकारी लोगों तक पहुंचाने में यह कारगर साबित हो रहा है। वर्तमान में महाराजा मार्तण्ड सिंह जूदेव चिड़ियाघर एवं टाइगर सफारी मुकुंदपुर में जानवरों की संख्या -
 सफेद बाघ चार, सिंह तीन, रायल बंगाल टाइगर 6, तेंदुआ चार, भालू तीन, करीब आधा सैकड़ा की संख्या में चीतल, बाइल्डबोर तीन, ब्लैक बक पंद्रह, सांभर आठ, नील गाय तीन, चौसिंघा एक,थामिन डिअर 8 सहित अन्य जानवर हैं।
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वन्यजीव विशेषज्ञ की नजर में.............

वन्यजीव ही शान हैं, इनके बिना अस्तित्वहीन हो जाएंगे जंगल
मनुष्य का अस्तित्व वन्यजीवों के अस्तित्व से जुड़ा है, जंगलों में रह रहे सभी वन्यजीवों का इकालाजिकल बैलेेंस स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यदि किसी जंगल से बाघों या अन्य मांसाहारी जीवों को अलग कर दिया जाए तो कालांतर में वह जंगल अपने आप नष्ट हो जाएगा। मांसाहारी जंतुओं के न रहने से शाकाहारी जंतुओं की संख्या में वृद्धि होने के कारण शाकाहारी पौधे धीरे-धीरे खत्म हो जाएंगे। ठीक इसी तरह यदि किसी जंगल से सभी पक्षियों को हटा दिया जाए तो भी जंगल अपने आप समय के साथ नष्ट हो जाएंगे। क्योंकि जंगलों में पौधों में फूलों के परागण करने एवं बीज निर्माण तथा फलों को खाकर बीजों के वितरण में पक्षी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जिस कारण पौधों की जैव विविधता बनी रहती है। पौधों एवं वन्य जीवों की जैव विविधता परस्पर एक-दूसरे पर निर्भर रहती है। जंगलों में पाए जाने वाले बहुत से कीटों की गांव के खेतों में उगने वाले पौधों के परागण एवं बीज निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। इस प्रकार देश के जंगल अपने वन्यजीवों द्वारा समाज को सेवाएं दे रहे हैं। इन कीटों के न रहने से संबंधित फसलों की पैदावार अपने आप खत्म हो जाएगी। मधुमक्खियों द्वारा शहद निर्माण कर समाज को प्रदान करना एक-दूसरा इको सिस्टम सर्विसेस का उदाहरण है। विंध्य क्षेत्र के जंगलों में से रीवा-सतना के चित्रकूट, मझगवां, ककरेड़ी, गोविंदगढ़ एवं अंतरैला क्षेत्र के जंगलों का अपना अलग महत्व है। देश के मैदानी क्षेत्रों में पाए जाने वाले जंगल या तो साल प्रभावी जंगल होते हैं या सागौन प्रभावी, लेकिन विंध्य के उपरोक्त क्षेत्रों में पाए जाने वाले जंगल न तो साल प्रभावी हैं और न ही सागौन प्रभावी। विध्ंय क्षेत्र की खूबसूरत भौगोलिक संरचना के कारण ही यहां पर बांधवगढ़, पन्ना एवं संजयगांधी नेशनल पार्क के साथ कई अभयारण्य तथा अमरकंटक का अचानकमार बायोस्फियर रिजर्व स्थापित है। देश का शायद ही ऐसा कोई भूखंड होगा, जहां इस प्रकार वन्यजीवों से धनी वास स्थान होगा। विंध्य के तीनों नेशनल पार्क, अभयारण्य एवं बायोस्फियर रिजर्व आपस में कारीडोर से जुड़े होने के कारण वन्यजीवों की प्रचुरता को बढ़ाते हैं। अत: इन कारीडोर्स को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी विंध्य के सभी लोगों की होती है। कभी-कभी पन्ना नेशनल पार्क के बाघों का चित्रकूट, ककरेड़ी एवं बरदहा घाटी के जंगलों में विचरण करना इस बात की पुष्टि करता है कि यह क्षेत्र एक प्रमुख कारीडोर है, इसको सुरक्षित रखते हुए रीवा के तराई क्षेत्र में नीलगाय की जनसंख्या विस्फोट पर नियंत्रण किया जा सकता है।
प्रो. रहस्यमणि मिश्रा, पर्यावरण एवं जीव विज्ञान विशेषज्ञ
(अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय रीवा के पूर्व कुलपति

वन्यजीवों की संख्या एक नजर में

रीवा

तेंदुआ- 8
भालू- 42
नीलगाय- 3852
जंगली सूअर- 1374
भेड़िया- 25
लकड़बग्गा- 128
चीतल- 108
सांभर- 186
हिरण-76
चौसिंगा-11
चिंकारा-92
लोमड़ी-147
सियार- 779
मोर-330
बाघ- 3


सतना-

टाइगर- 5
इंडियन वोल्फ-40
हाइना-128
हिरन-145
वाइल्ड डॉग-09
लेपर्ड-122
इंडियन फॉक्स-169
गोल्डन जैकाल-696

सीधी

बाघ- 21
तेंदुआ-10
भालू-340
जंगली सूअर-3005
लकड़बग्गा-118

✍✍✍✍---  पंडित पंकज द्विवेदी
संचालक ब्लॉग- vindhya pradesh the land of white tiger

रीवा_एयरपोर्ट के निर्माण से विन्ध्य के विकास को मिलेगा नया आयाम

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