रीवा। विंध्य क्षेत्र में श्री जगन्नाथ स्वामी मंदिर मुकुन्दपुर में हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी होली पर्व के अवसर पर आटिका महापर्व का आयोजन किया गया था।
मालूम हो कि श्री जगन्नाथ मंदिर में आटिका पर्व के दौरान आटिका प्रसाद चढ़ाने और कढ़ी-भात का प्रसाद ग्रहण करने के लिए रीवा, सतना, सीधी, सिंगरौली और पन्ना से हजारों श्रृद्धालु यहां उमड़ते हैं। मुकुन्दपुर में जिसमें होलिका का दहन का नाट्य प्रस्तुति कलाकारों द्वारा दी जाती है और होलिका दहन किया जाता है एवं फगुआ को सुबह 11 बजे से आटिका प्रसाद का वितरण प्रारंभ किया जाता है। आयोजन समिति सदस्य हरीश त्रिपाठी ने कहा कि कहावत है कि जगन्नाथ के भात को जगत पसारे हाथ, होली के दिन विंध्य धरा मुकुंदपुर में चरितार्थ होती है। आटिका प्रसाद का अत्यंत महत्व है। पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसी मान्यता है कि जगन्नाथ स्वामी के दर्शन और उनके महाप्रसाद के सेवन से मनुष्य पाप मुक्त हो जाता है उनके भात को लेकर सदियों से जाति पंथ का भेदभाव समाप्त हुआ। उनके प्रसाद के रूप में मानव में एकांकी भाव का प्रकटीकरण होता है और सामाजिक समरसता और भाई चारा को बढ़ावा मिलता है।
आटिका महाप्रसाद का खर्च दो लाख तक
बता दें के आटिका महाप्रसाद चढ़ाने का खर्चा करीब दो लाख रुपया आता है। महाप्रसाद आटिका चढ़ाने वाले व्यक्ति को मंदिर की साज सज्जा, मरम्मतीकरण और फगुआ के दिन जुटने वाली लाखों की भीड़ को कढ़ी-भात का भंडारा कराना होता है।
बता दें के आटिका महाप्रसाद चढ़ाने का खर्चा करीब दो लाख रुपया आता है। महाप्रसाद आटिका चढ़ाने वाले व्यक्ति को मंदिर की साज सज्जा, मरम्मतीकरण और फगुआ के दिन जुटने वाली लाखों की भीड़ को कढ़ी-भात का भंडारा कराना होता है।
महाराजा भाव सिंह जू देव ने कराया था निर्माण
मुकुंदपुर जगन्नाथ मंदिर का इतिहास अत्यंत प्राचीन है, रीवा राज्य के महाराजा भाव सिंह जू देव ने सन् 1680-85 के मध्य यहां मंदिर का निर्माण करवाया था और जगन्नाथपुरी जाकर वहां से भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा माता एवं बलभद्र की विशाल प्रतिमाएं लाकर स्थापित कराई थी ऐसी भव्य और दिव्य प्रतिमाएं कहीं भी देखने को नहीं मिलती। बता दें कि महाराजा भाव सिंह जू देव का विवाह पुरी में हुआ था। रानी ने भगवान जगन्नाथ मंदिर की इच्छा जताई थी महाराजा पुरी गए थे और वहां से तीन मूर्तियां साथ लाए थे। एक मूर्ति मुकुंदपुर में, दूसरी बिछिया और तीसरी किला में प्राण प्रतिष्ठा की थी। महाराजा भाव सिंह जू देव ने पहली आटिका मुकुंदपुर में चढ़ाई थी।
मुकुंदपुर जगन्नाथ मंदिर का इतिहास अत्यंत प्राचीन है, रीवा राज्य के महाराजा भाव सिंह जू देव ने सन् 1680-85 के मध्य यहां मंदिर का निर्माण करवाया था और जगन्नाथपुरी जाकर वहां से भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा माता एवं बलभद्र की विशाल प्रतिमाएं लाकर स्थापित कराई थी ऐसी भव्य और दिव्य प्रतिमाएं कहीं भी देखने को नहीं मिलती। बता दें कि महाराजा भाव सिंह जू देव का विवाह पुरी में हुआ था। रानी ने भगवान जगन्नाथ मंदिर की इच्छा जताई थी महाराजा पुरी गए थे और वहां से तीन मूर्तियां साथ लाए थे। एक मूर्ति मुकुंदपुर में, दूसरी बिछिया और तीसरी किला में प्राण प्रतिष्ठा की थी। महाराजा भाव सिंह जू देव ने पहली आटिका मुकुंदपुर में चढ़ाई थी।
भगवान विष्णु की कल्चुरी कालीन मूर्ति भी यहां
इन प्रतिमाओं के बीच में भगवान विष्णु की कल्चुरी कालीन भारतीय कला दर्शन की एक उत्कृष्ट मूर्ति भी स्थापित है। कहते है कि कल्चुरी काल में यहां भगवान विष्णु का मंदिर था कालांतर में मंदिर के गिर जाने पर महाराजा भाव सिंह ने ईरानी गुम्बद शैली का मंदिर निर्माण कराया और उसी मेंं इन मूर्तियों की स्थापना कराई।
इन प्रतिमाओं के बीच में भगवान विष्णु की कल्चुरी कालीन भारतीय कला दर्शन की एक उत्कृष्ट मूर्ति भी स्थापित है। कहते है कि कल्चुरी काल में यहां भगवान विष्णु का मंदिर था कालांतर में मंदिर के गिर जाने पर महाराजा भाव सिंह ने ईरानी गुम्बद शैली का मंदिर निर्माण कराया और उसी मेंं इन मूर्तियों की स्थापना कराई।
2030 तक आटिका की बुकिंग
श्री जगन्नाथ मंदिर मुकुंदपुर की आस्था का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2030 तक आटिका प्रसाद की बुकिंग हो चुकी है। अगर कोई चाहे इससे पहले आटिका चढ़ाना तो होली के फगुआ के दिन तो संभव नहीं है। इसके लिए पूर्णिमा का विकल्प रखा गया है।
श्री जगन्नाथ मंदिर मुकुंदपुर की आस्था का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2030 तक आटिका प्रसाद की बुकिंग हो चुकी है। अगर कोई चाहे इससे पहले आटिका चढ़ाना तो होली के फगुआ के दिन तो संभव नहीं है। इसके लिए पूर्णिमा का विकल्प रखा गया है।